मालिक लोग आते हैं, जाते हैं
कभी तिरंगा, कभी भगवा कुर्ता पहनकर,
कभी सफेद, कभी हरा, कभी नीला
तो कभी लाल कुर्ता पहनकर.
मालिक लोग चले जाते हैं
तुम वहीं के वहीं रह जाते हो
आश्वासनों की अफीम चाटते
किस्मत का रोना रोते
धरम-करम के भरम में जीते.
आगे बढ़ो.
मालिकों के रंग-बिरंगे कुर्ते को नोचकर
उन्हें नंगा करो.
अपनी बेबसी और उनकी
देशी-विदेशी पूंजी की सौदेबाजी का
हिसाब लो.
तभी तुम उनकी असलियत जान सकोगे.
तभी तुम्हें इस मायाजाल से मुक्ति मिलेगी.
तभी तुम्हें दिखाई देगा
अपनी मुक्ति का रास्ता.
- संजय श्याम
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