टैम्पो से वे छः सात ठसाठस लोग एक साथ नीचे उतरे. हाय-हाय और तालियों के अलग अन्दाज ने बता दिया कि वे आ गये हैं. आसपास के घरों के लोग अपने अपने छज्जों से किसी तमाशे झगडे और नंग-नाच की उम्मीद में झांंकने लगे थे.
सुरेश फटाफट दौड़कर नीचे गया. उसने मुस्कराते हुये उनमें से कुछ से हाथ मिलाया और कुछ से हाथ जोड़कर नमस्ते की. और सुरेश के बेटे ने बड़ों के नाते सबके पांंव छुए. उन्होंने पूछा क्या इसी की शादी हुई है. सुरेश के ‘हांं’ कहते ही सबने बेटे का हाथ और माथा चूमते हुये बहुत दुआएंं दीं.
सुरेश सबको सम्मान से ऊपर घर में लाए. उनके घर में आते ही पूरे घर ने खड़े होकर उनका सम्मान किया. बहू ने कुछ सगुन दे देकर सबके पांंव छुए और जी-भर उनकी दुआएंं ली. सब साथ बैठे, जमकर पूरे परिवार के साथ चाय नाश्ता हुआ. इसके बाद सुरेश, सुरेश के बेटे-बेटी और बहू सब इनके साथ देर तक नाचे और जमकर मस्ती की, फिर सबने साथ खाना खाया.
आख़िर में पान खाकर जब ये सब वापस चलने को हुये तो सुरेश ने इनके हाथ पर एक लिफाफा रख दिया, लेकिन बहुत अनुनय-विनय और आग्रह के बाद भी इन्होंने यह कहते हुये लिफाफा वापस कर दिया कि ‘सर जी, हम सब जिन्दगी भर जहांं गये हिजड़े ही बनकर गये. आज पहली बार आपने अपने बच्चे की शादी में हमें कार्ड देकर इन्सान की तरह बुलाया है. बहू ने शगुन दे दिया अब कुछ भी लेना बाकी न रहा.’
इसके बाद वे सब जाने के लिये नीचे उतर आये और वे अपने परचित टैम्पो वाले को कॉल करने लगे तो सुरेश ने उनका हाथ पकड़ लिया. इसी समय सुरेश का बेटा इनोवा के दरवाजे खोलते हुये बोला, ‘चलिये बैठिये, मैं आपको घर तक पहुंंचाकर आता हूंं.’
वे हतप्रभ से सुरेश को देखते हुये इनोवा में बैठने लगे. तभी किसी ने अपने छज्जे से सामने वाले छज्जे पर खड़े व्यक्ति को आवाज लगाई, ‘ओए, देख हिजड़े इनोवा से जा रहे हैं.’
अचानक सबसे आगे की सीट पर बैठने वाला शख्स गाड़ी से नीचे उतरा और छज्जों की ओर सर उठाकर अपना सीना ठोंकते हुये दहाड़ा, ‘ओए सुन … हांं हम हिजड़े हैं … हैं हिजड़े … लेकिन तुम सब भी मर्द नहीं हो … मर्द तो बस ये हैं सुरेश जी, इन्होंने हमें इन्सान समझा … इन्सान की तरह कार्ड देकर बेटे की शादी में बुलाया और इन्सान की तरह ही इनका बच्चा हमें भेजने जा रहा है.
‘और सुन हम तो वो हिजड़े हैं, जो कहीं भी दुआएंं देने के लिये जाते हैं लेकिन तुम सब तो वो हिजड़े हो जो इंसानियत के नाम पर बददुआ होते हैं. थू है तुम सब पर..’.
फिर वे गाड़ी में बैठकर चले गये थे और अपने पीछे असली हिजड़े छोड़ गये थे.
- यशपाल कुशवाहा
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]