मुसलमान ये समझता था कि अगर दूसरे मज़हब के बहुसंख्यकों के साथ रहा जाएगा तो उसका जीवन ख़तरे में रहेगा, मार काट होगी और उन्हें दबाया जाएगा. इसी डर में अलग देश मांग लिया. शिफ्ट हो गए और अब मारकाट, बम, गोली, दमन, बलात्कार, आतंक उनके समाज में कहीं ज़्यादा है, जितना वो वहां मर रहे हैं उतना यहां सबके साथ कभी न मारे जाते और न मरते.
सोचिये अगर दूसरे धर्मों के लोगों से अलग होने में सुकून होता तो पाकिस्तान आज बहुत खुशहाल होता और भारत से कहीं छोटा है तो इस अनुपात में उसे अपने धर्म के लोगों के जीवन से सारी समस्याओं का अंत कर देना चाहिए था. सब सुखी होते जैसे दूसरे यूरोपीय देशों में हैं. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. भारत से भी ज़्यादा वो वहां दुःख, गरीबी, भुखमरी और मौत झेल रहे हैं. तो समस्या कहांं थी और समस्या कहांं है ?
ये पूरी तरह से फ़ेल, बेसलेस और घटिया मान्यता है कि चौदह सौ साल पहले जो क़ाफ़िर, यहूदी, ईसाई और दूसरे तुम्हारे दुश्मन थे, वो आज भी हैं. दरअसल अब आपकी कोई लड़ाई धर्म पर आधारित हो ही नहीं सकती क्यूंकि धर्म का अब जीवन मे वैसा कोई रोल है ही नहीं जो हज़ार साल पहले था. अब साइंस है, टेक्नोलॉजी है और इंसानियत का अलग दर्शन है. जो सोच चौदह सौ साल पहले वालों की थी उस सोच के आधार पर अगर आप आज अपने समाज का डिज़ाइन बनाएंगे तो आपका वो डिज़ाइन बुरी तरह से फ़ेल होगा.
यही हाल यहां भारत के बहुसंख्यकों का हो गया है अब. इनकी नफ़रत बाबर, औरंगज़ेब और तुग़लक़ पर आधारित है, जो कि उतनी ही घटिया और बसेलेस है जितनी यहूदी और ईसाई वाली दुश्मनी. यहां का बहुसंख्यक इस ख़्वाब में जी रहा है कि उसके आसपास से मुसलमान, ईसाई और ये सब खत्म हो जाएंगे तो उसका जीवन स्वर्ग हो जाएगा. शेर और बकरी एक तालाब में पानी पीने लगेंगे और ये सारे भाई-भाई होंगे. अप्सराएं शाम को डांस दिखाएंगी. अभी वो मुसलमानों की वजह से नहीं नाच रही हैं और ये उनके डांस से महरूम हैं.
आपकी असल समस्या जाति, छुवा छूत और इस जैसी बातें हैं. हिन्दू मुसलमान वाले मुद्दे पर अब हिन्दू ख़ुद थक गए हैं क्यूंकि उस नफ़रत का कोई बेस है नहीं. बस थोड़े ही दिनों में ये धुवाँ हो जाएगा. मगर चूंकि अब आपने अपनी कम्युनिटी को दिन रात नफ़रत करना सिखा दिया है, ठीक वैसे ही जैसे मौलानाओं ने क़ाफ़िर और मुशरिकों से नफ़रत सिखाई थी, तो अब वो नफ़रत करने वालों को कोई न कोई चाहिए जिस से वो नफ़रत करें. पाकिस्तानी लोग अहमदिया, शिया, बरेलवी, देवबंदी, बोहरा आदि पंथ वालों से नफ़रत करने लगे क्योंकि ईसाई यहूदी और हिन्दू बचे नहीं वहां. वैसे ही अब आपने जिन्हें यहां नफ़रत सिखाई है वो आज नहीं तो कल आपस मे ही नफ़रत की बीस वजह ढूंढ लेंगे.
देखिये कंगना शुरू हुई थीं एक पार्टी के ख़िलाफ़, फिर मुद्दे को हिन्दू-मुस्लिम बनाने लगी, मगर वो चला नहीं. फिर राजपूत और मराठा मुद्दा बन गया. फिर अब सारे बॉलीवुड के पीछे लग गयी हैं. सब हिन्दू हैं जिस से वो लड़ रही हैं और सारे हिन्दू ही हैं, जो उनसे लड़ रहे हैं. ऐसे ही वो चाहे अर्णब हों या रवीश, गुट अब बन चुका है हिंदुओं का हिंदुओं के ख़िलाफ़. अब बस लड़ाई ये है कि कौन ज़्यादा बड़ा हिन्दू हैं. अब सब धीरे-धीरे ऐसे ही गुटों में बटेंगे क्योंकि जो नफ़रत इन्हें सिखा दी गयी है, वो ये निकालेंगे ही कहीं न कहीं. अब हिंदुओं में अहमदिया, बरेलवी, शिया गुट बनेंगे यहां.
असल मुद्दे अब निकालकर आ रहे हैं, और वो है हिंदुओं की आपसी भीतरी नफ़रत. इन्होंने सोचा था कि योगी जी से बड़ा हिन्दू कौन होगा, आख़िर जो इनकी रक्षा करेगा ? मगर योगी जी की सरकार हिंदुओं को हिंदुओं के ख़िलाफ़ ही न्याय नहीं दिला पा रही है. दमन हो रहा है. एनकाउंटर हो रहा है और अब जाति का असल मुद्दा उभर कर सामने आ चुका है. सवर्ण लामबंद हो रहे हैं दलितों के ख़िलाफ़ और दलित सवर्णों के ख़िलाफ़. और यही अब असल मुद्दा है और यही आपकी भीतरी नफ़रत है, जिस पर आपको सदियों पहले काम करना चाहिए था.
मुसलमानो को डिटेंशन कैम्प में डालने से आपकी समस्या का कोई समाधान नहीं होगा और न ही अलग देश बना लेने से आप सुखी होंगे. ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका बहुत पहले समझ चुके हैं कि उन्हें किस मुद्दे पर और किस तरह से राज करना है. वो चाहें तो अपने देशों को ईसाई मुल्क बना दें, मगर वो इन बेवकूफियों से आगे निकल चुके हैं. वो अपनी नस्लों को मार्स से लेकर दूसरे ग्रहों तक बसाने में फ़िक्रमंद हैं और आप हज़ारों साल पुरानी आदिम सोच को लागू करने पर आमादा हैं.
आप अपनी असल नफ़रत और मुद्दों पर काम नहीं करेंगे तो चाहे आप पचास हिन्दू राष्ट्र बना लें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा. बस कुछ ही सालों में सब ख़त्म हो जाएगा. और वो कोई और नहीं करेगा, आपकी अपनी नस्ल और अपने लोग ही करेंगे और इल्ज़ाम बाबर से लेकर औरंगज़ेब पर मढेंगे, जैसे वो यहूदियों और ईसाईयों पर मढ़ते हैं. ऐसे धीरे-धीरे आप तबाह और बर्बाद होते जाएंगे
- सिद्धार्थ ताबिश
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