लॉकडाऊन में मेरे एक मित्र को अखबार की नौकरी, जहां वह 30 हजार रुपये प्रतिमाह के वेतन पर नियुक्त था, से निकाल दिया गया और अब वह अपने घर पर एक दुकान खोलकर बैठ गया. अब रोज के दो सौ रुपया कमा रहा है. मगर वह सच्चा देशभक्त है, मजाल है जो उसके सामने कोई मोदी के खिलाफ कुछ बोल सकता है. मरने-मारने पर उतारु हो जायेगा. मेरा एक स्टाफ जो लॉकडाऊन के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ और फाका कर रहा था, कहता है- ‘बाल-बच्चों समेत भूख से मर जायेंगे, पर वोट मोदी को देंगे.’ इसे कहते हैं सच्ची भक्ति. जब तक ऐसे भक्त रहेंगे मोदी का बाल तक बांका नहीं हो सकता. बहरहाल मित्र तनवीर अल हसन फरीदी ने देश के वर्तमान काल में व्यवस्थित विभिन्न वर्गों का बेहतरीन विश्लेषण किये हैं. जिसकी कुछ बानगियांं यहां प्रस्तुत है.
1. टैक्स चोर
छोटे बनिये, छोटे व्यापारी, छोटे व्यवसायी, छोटे उद्योग वाले. हालांकि इन सभी ने अपनी गाढ़ी कमाई से भाजपा को चंदा दिया था, झंडा उठाया था, शाखाएं लगाई थी और वोट दिए थे. वही नोटबंदी और जीएसटी से अच्छे से पेले जा रहे हैं. इंस्पेक्टर राज के हवाले किये जा चुके हैं. जेटली और मोदी ने अनेकों बार अपने वक्तव्यों में इन्हें खुल्लम खुल्ला टैक्स चोर कहा. जीएसटी के ज़रिए इस समुदाय की चोरी पर नियंत्रण करने का प्रयास किया जा रहा हैं.
2. कामचोर यौनरोगी एवम मनोरोगी
छोटे, मंझोले किसान जिन्हें यौनरोगी, मानसिक रोगी और सब्सिडी की भीख पर पलने वाला कामचोर कहा गया. हालांकि मस्जिद-मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम और गाय रक्षा के नाम पर मूर्ख और साम्प्रदायिक बन इस समुदाय ने थोक में वोट भजपा को दिए, आज विकास के नाम पर उनकी ज़मीनें छीन कारपोरेट के लिए सस्ता मज़दूर बनाया जा रहा है. विरोध करने पर, फसल के वाजिब दाम मांगने पर, बिजली पानी मांगने पर, प्राकृतिक आपदा से बर्बाद फसल का उचित मुआवज़ा मांगने पर पर उन्हें नक्सली, विकास विरोधी और राष्ट्रद्रोही का तमगा दे लाठी, डंडा और गोली मारी जा रही है.
3. असामाजिक एवं राष्ट्रद्रोही
18 से 35 तक की उम्र वाले छात्र जो विश्वविद्यालयों, डिग्री कॉलेजों में थे या नौकरी की तलाश में मार्किट में आये थे. इन सबको नौकरी और कैरियर के लुभावने सपने दिखाकर इनके वोट लूटे गए थे, अब नौकरी तो दूर उनकी छात्रवृतियांं भी छीन ली गई. शिक्षा का बजट बुरी तरह काट दिया गया. शिक्षिकों की भर्ती और शोध पर खर्च को शून्य कर दिया गया. कैंपस में गुंडों की रेलमपेल कर दी गई. शैक्षिक संस्थानों पर गजेन्द्र चौहान और त्रिपाठी जैसे छदम शिक्षाविद् थोप दिए गए. अब ये वर्ग हाथ में डिग्री लिए कैम्पसों से सड़कों तक धक्के खा रहा है.
4. मौक़ापरस्त मध्यम वर्ग
बड़े शहरों में रहने वाला, कारपोरेट के यहां नौकरी करने वाला, मंझोले सरकारी पदों पर बाबूगिरी करने वाला मौक़ापरस्त समुदाय जो पी. वी. नरसिंह राव और मनमोहन सिंह की आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के फलस्वरूप ओला और उबेर में चलता था, Macdonald और KFC में खाता था, मॉल्स में शॉपिंग करता था, मात्र दिल्ली-बम्बई जैसे मेट्रो सिटी को सारा देश समझता था, ये समुदाय 2013-14 में राष्ट्रभक्ति की आड़ में साम्प्रदायिक हो गया, उसे किसान कामचोर लगते हैं, गरीब सब्सिडीखोर, छोटा दुकानदार टैक्सचोर, विद्यार्थियों की स्कलरशिप फ़िज़ूल खर्च लगने लगी थी. उसे बस मुसलमानों को सबक सिखाना था. पाकिस्तान से युद्ध चाहिए था, एटम बम चाहिए था, मंदिर चाहिए था, लव जिहाद का उन्मूलन चाहिए था, गौमाता रक्षा चाहिए थी. ऐसे खाये पिये अघाये चर्बी से मोटाए समुदाय ने और अधिक जीडीपी और अधिक मौजमस्ती के लिए दक्षिणपंथ का हाथ थामा. अब जब प्राइवेट सेक्टर नौकरियों से बाहर फेंक रहा है और सरकारी सेक्टर का बाबू महंगाई से चारों खाने चित हो गया है, तो ये मौक़ापरस्त समुदाय वर्तमान अच्छे दिनों के दौर में पुराने बुरे दिन याद कर खुद के ठगे जाने पर अपनी झेंप मिटा रहा है.
5. सब्सिडी खोर
मिड डे मील खाने वाले मासूम बच्चे. उनके लिए ज़बरदस्ती की हद तक आधारकार्ड आवश्यक.
6. देश के ईमानदार साहूकार
मुकेश, नीता, अनिल, अदानी और दूसरे कार्पोरेट. इनके कर्ज़ माफ़ किये गए, सस्ती ज़मीनें और सस्ते स्रोत उपलब्ध कराए गए ताकि चंद लोग और अमीर होकर नंबर दो का पैसा राजनीतिक चंदे के रूप में दे सकें. नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक सबसे एक विशेष अभिजात्य प्रकार्र की Immunity पाया. पार पाया समुदाय जो जल, जंगल, ज़मीन और स्रोत के साथ रक्षा और अन्य ठेके तो subsidised रेट पर भारत में पा रहा है लेकिन खराब अर्थव्यवस्था के बावजूद इन्वेस्टमेंट विदेशों में कर रहा है.
7. देश के आदर्श अभिनेता
अमिताभ बच्चन जी. सरकारी योजनाओं का भोंपू बजाते रहें इसलिए दुनिया के सबसे बड़े टैक्स चोरी घोटाले पनामा लीक्स में उनका नाम होने के बावजूद उन्हें व अन्य कॉरपोरेट्स और अन्य राजनेताओं को बचा लिया गया.
वर्तमान सरकार की नज़र में वोट देने वाला चोर, कामचोर, सब्सिडी खोर, असामाजिक, नक्सल, राष्ट्र विरोधी और देशद्रोही है जबकि चंद बड़े कारपोरेट, चाटुकार सेलिब्रिटी, बिकाऊ मीडिया देश के लिए उपयोगी हैं. आप कौन से वर्ग में आते हैं भाई साहब ? विभिन्न समुदायों की हालत देख पूरा यक़ीन हो गया है कि बागों में वास्तविक बहार तो अब आई है. अतः निराशा से बचें और देशहित में राष्ट्रवादी false happiness एन्जॉय करें.
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