लो अतीत से उतना ही, जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह, मृत्यु का ही द्योतक है.
– द्वारिका प्रसाद माहे
राम चन्द्र शुक्ल
राष्ट्र की भौगोलिक अवधारणा तथा आरएसएस की जीवन व मनुष्यता विरोधी तथाकथित हिन्दूवादी अवधारणा में फर्क है. आज जिस राष्ट्रवाद का प्रवक्ता आरएसएस अपने आप को मानता व कहता है- फासिज्म पर आधारित उस ‘नेशनलिज्म’ को अधम व घृणित ही कहा जाना चाहिए.
‘ग्लोबल विलेज’ या ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ आज का सच है. हजारों अमेरिकन, अफ्रीकी, चीनी, जापानी, कोरियाई, वर्मी, बांग्लादेशी, अफगानी, रूसी व यूरोपीय देशों के नागरिक भारत में रह रहे हैं तथा लाखों की संख्या में भारतीय नागरिक दुनिया के सैकड़ों अलग-अलग देशों में रह रहे हैं.
ऐसे में वर्तमान सत्ताधारियों का राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद नहीं अंधराष्ट्रवाद है. तथा यह अंधराष्ट्रवाद भारत जैसे बहुधर्मी व बहुभाषी तथा विविध संस्कृति वाले देश के लिए बहुत घातक है तथा इस पर बहस के कोई मायने नही हैं.
देश के जिन बीस करोड़ से अधिक मुसलमानों के विरुद्ध वर्तमान सत्ताधारी शासक नफ़रत फैलाने का काम देश भर में कर रहे हैं, उन्ही मुसलमानों के शासन वाले बीसों इस्लामी देशों में भारत के बीस लाख से अधिक हिंदू, मुस्लिम, सिख व इसाई रोजी-रोटी कमा कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार उन्ही की कमाई से दिनों दिन बढ़ रहा है. इन प्रवासियों की भारत की अर्थव्यवस्था के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है, और है तथा आगे भी रहेगी. देश के मुसलमानों के विरुद्ध नफ़रत फैलाकर ये तथाकथित अंधराष्ट्रवादी शासक पूरे देश को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं.
अब समय आ गया है कि विश्व नागरिकता पर बहस केंद्रित हो. जरूरत यह है कि एक ही पासपोर्ट व बीजा के आधार पर पर दुनिया के किसी भी देश का नागरिक दूसरे देश में जा सके तथा वहां रहकर नौकरी व रोजगार-धंधा कर सके.
जैसी पारगमन संधि व कामन मुद्रा का चलन यूरोपीय देशों के लिए शुरू हुआ है, वैसा ही पूरी दुनिया के लिए होना चाहिए. पूरी दुनिया के किसी भी देश में आने व जाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय कार्ड तथा खर्च करने के एक अंतर्राष्ट्रीय कामन मुद्रा (करेंसी) का होना, आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत है.
पूरी दुनिया के सभी देशों में काम आने वाली एक मुद्रा, एक पहचान व विश्व नागरिकता कार्ड जारी होना चाहिए तथा पूरे विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के नियंत्रण वाली सेना भी एक ही होनी चाहिए. अलग-अलग देशों में अलग-अलग सेनाओं व हथियारों के जखीरों की कोई जरूरत नहींं.
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