Home गेस्ट ब्लॉग राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका सही स्थान दिलाने के लिए देशव्यापी आंदोलन की जरूरत

राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका सही स्थान दिलाने के लिए देशव्यापी आंदोलन की जरूरत

7 second read
0
2
893

राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका सही स्थान दिलाने के लिए देशव्यापी आंदोलन की जरूरत

Ram Chandra Shuklaराम चन्द्र शुक्ल
राजभाषा हिंदी को उसका सही स्थान दिलाने तथा अंग्रेजी की अनिवार्यता को सभी क्षेत्रों से हटाने के लिए एक देशव्यापी बड़े आन्दोलन की दरकार है. साथ ही यह भी आवश्यक है कि राजभाषा मंत्रालय को गृह मंत्रालय से हटाकर एक अलग व स्वतंत्र राजभाषा मंत्रालय बनाया जाए.

‘हिन्दी राष्ट्रभाषा बन सकती है मेरी समझ में हिन्दी भारत की सामान्य भाषा होनी चाहिए, यानी समस्त हिन्दुस्तान में बोली जाने वाली भाषा होनी चाहिए.’ –लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

जिस तरह से बंगला, उड़िया तथा असमिया भाषा व लिपि में समानता है तथा इन तीनों भाषाओं में बंगला भाषा सर्वाधिक समृद्ध है, उसी प्रकार चीनी, जापानी तथा कोरियाई भाषाओं में भी काफी साम्य है. तीनों के उच्चारण तथा लिपि में भी साम्य है. तीनों भाषाएं चित्र लिपि में लिखी जाती हैं. इन तीनों भाषाओं में चीनी भाषा सर्वाधिक समृद्ध भाषा है – साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा अन्य कारणों से भी.

चित्र लिपि में होते हुए भी ये तीनों भाषाएंं अपने-अपने देश की शिक्षा, साहित्य, विज्ञान, न्याय तथा बोलचाल की समर्थ भाषाएं हैं. फिर अक्षरों व शब्दों से समृद्ध हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएंं किस मामले में कमजोर हैं, जो कि उनके ऊपर अंग्रेजी भाषा थोपकर रखी गई है ? अंग्रेजी,जो देश की जनसंख्या के 01% से भी कम लोगों की भाषा है, का पूरे देश पर जबर्दस्ती थोपे रखना देश की जनता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है.

अंग्रेजी साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा ज्ञान की भाषा के रूप में एक महत्वपूर्ण भाषा है- इससे किसी को कोई इंकार नही है, पर 130 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले भारत देश में शासन-प्रशासन, रोजी-रोजगार, तकनीकी व चिकित्सा शिक्षा तथा विधि शिक्षा व उच्चतम तथा उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी की अनिवार्यता देश की सामान्य व ग्रामीण जनता की प्रगति व विकास में बहुत बड़ी बाधा है. इस बाधा को खत्म करना ही होगा, इसके सिवा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है. अंग्रेजी को देश, समाज व जीवन के सभी क्षेत्रों से हटाने के लिए एक देशव्यापी बड़े आन्दोलन की आवश्यकता है तथा इसे 2024 के लोकसभा चुनाव का एजेंडा बनाया जाना चाहिए.

अंग्रेजी को थोपने या बनाए रखने का सीधा-सा कारण तो यही समझ में आता है कि किसी देश के शासकों की भाषा ही उस देश की राजभाषा व राष्ट्रभाषा होती है. अंग्रेजी लगभग 150 से 200 साल तक भारत के शासकों की भाषा रही है, पर अब तो नही है. अब तो अंग्रेजों को इस देश से गए 72-73 साल हो चुके हैं.

14 सितम्बर, 1949 को भारत की 50 से 60% जनता द्वारा बोली, लिखी व पढ़ी जाने वाली हिन्दी को संविधान में राजभाषा का दर्जा दिया जा चुका है, पर अब तक हिंदी भाषा न तो सही मायनों में राजभाषा का दर्जा हासिल कर सकी है और न ही राष्ट्रभाषा का.

आज भी दिल्ली स्थित केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों व मंत्रालयों द्वारा देश की राज्य सरकारों 90% से अधिक मात्रा में पत्राचार अंग्रेजी भाषा में होता है. भारत के 10 राज्यों की सरकारी (आफीशियल) भाषा हिंदी है तथा 2011 की जनगणना के अनुसार अब तक इसके बोलने समझने तथा लिखने-पढ़ने वाले 60 करोड़ से अधिक है, इसलिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि हिंदी व भारतीय भाषाओं को उनका वाजिब स्थान हासिल हो क्योंकि देश की बहुसंख्यक आम जनता की भाषा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएं हैं.

देश के कूढमगज वामपंथी दलों के नेता भाषा के मामले में शुतुरमुर्गी रवैया रखते हैं, संभवतः यही कारण है कि अब तक वामपंथी विचारधारा का सम्यक् रूप से जनता के बीच प्रचार-प्रसार नहीं हो सका है. वाम दलों के सभी बड़े नेता अंग्रेजी में ही अपनी बात कहने को अपना बड़प्पन समझते हैं, जो कि उनकी कम अक्ली व जन भावना का सही आंंकलन न कर पाने का उदाहरण है.

हिंदी की सबसे बड़ी शक्ति इसका संख्या बल है, जिसके आधार पर ही 14 सितम्बर, 1949 को इसे भारत देश की राजभाषा के रूप में अंगीकृत किया गया था, पर अब इस संख्या बल को तोड़कर कमजोर करने की शुरुआत देश के दक्षिणपंथी शासकों द्वारा की जा चुकी है.

1999 से 2004 तक सत्ता में विराजमान रही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्य काल में हिंदी की उप भाषा मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर हिंदी से अलग एक स्वतंत्र भाषा का दर्जा दे दिया गया, जिसकी अपनी अलग से न तो कोई लिपि है और न ही साहित्य है तथा यह भाषा देवनागरी लिपि में ही लिखी- पढ़ी जा रही है. यह हिंदी की शक्ति को देश में कमजोर करने की शुरुआत थी.

वर्ष 2000 ई0 में भाजपा सरकार के कार्यकाल में नया छत्तीसगढ़ राज्य बना तो वहां के संकीर्ण दृष्टिकोण तथा निहित स्वार्थ वाले कुछ नेताओं, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों
तथा लेखकों द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा को इस नये राज्य की भाषा बनाने की बात की जाने लगी और 2007 में इसे छत्तीसगढ़ राज्य की राज्य भाषा का दर्जा दे दिया गया, तथा इस भाषा में बीए व एमए तक की पढाई होने लगी. अभी तक छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर हिंदी से अलग एक स्वतंत्र भाषा का दर्जा भारत सरकार द्वारा नहीं दिया गया है तथा यह प्रस्ताव भारत सरकार के स्तर पर निर्णय हेतु लंबित है.

अब हिंदी की उपभाषा भोजपुरी तथा राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर हिंदी से अलग एक स्वतंत्र भाषा का दर्जा देने की मांग जोर पकड़ रही है. आश्चर्य नही होना चाहिए कि ‘बांटो तथा राज्य करो’ की नीति में विश्वास रखने वाले देश के वर्तमान दक्षिणपंथी शासक हिंदी की इन दोनों उपभाषाओं को अपने वर्तमान कार्यकाल में ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर इन्हें हिंदी से अलग एक स्वतंत्र भाषा का दर्जा प्रदान कर दें. इससे हिंदी का संख्या बल और कमजोर होगा तथा वह अपना राजभाषा का दर्जा भी खो सकती है.

इस सब के बावजूद हर साल ‘हिन्दी दिवस’ के नाम पर वैसा ही कर्मकाण्ड भारत सरकार के विभिन्न विभागों व मंत्रालयों द्वारा किया जाता है, जैसे हर साल पितृपक्ष में हमारे देश में इस संसार से विदा हो चुके पितरों को याद कर उन्हें तर्पण अर्पित किया जाता है. राजभाषा हिंदी को उसका सही स्थान दिलाने तथा अंग्रेजी की अनिवार्यता को सभी क्षेत्रों से हटाने के लिए एक देशव्यापी बड़े आन्दोलन की दरकार है. साथ ही यह भी आवश्यक है कि राजभाषा मंत्रालय को गृह मंत्रालय से हटाकर एक अलग व स्वतंत्र राजभाषा मंत्रालय बनाया जाए.

Read Also –

‘कादम्बिनी’ और ‘नंदन’ आखिर लॉकडाउन की बलि चढ़ गई
भगत सिंह के लेख ‘पंजाब की भाषा और लिपि की समस्या’ के आलोक में हिन्दी
आर्थिक खबरों को लेकर असंवेदनशील हिन्दी क्षेत्र के लोग

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…