भूख

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भूख

मेरी मां
जो अब नहीं रही
खुश है
कि मेरी भूख बरकरार है
ठीक वैसे ही
जैसे पहली क्रंदन के वक्त

मेरी पत्नी खुश है
कि मेरी भूख बरकरार है
सुहाग रात की तरह नहीं
फिर भी

मेरे बच्चे खुश हैं
कि बाबा को अब भी लगती है भूख
नियत समय पर

सिर्फ़ तुम्हें ऐतराज़ है मेरी भूख पर
तलाशी लेते हो मेरी
भूख की वजह की
तुम्हें मिलती है
भूखे बदन पर लेटी हुई
जांघो को पसारी हुई एक बेवा
जनती हुई असंख्य भूख

मिट्टी के कोख़ थक चुके हैं
आसमान के कोख़ थक चुके हैं
नदियों के कोख़ थक चुके हैं
हवाओं के कोख़ थक चुके हैं
आग के कोख़ थक चुके हैं
सदर्भ विहीन समय के कोख से उपजा मैं
मरूंगा तुम्हारी क्लांति के हाथों

हममें से कोई
हो भी सकता था
भीष्म का काल
और नई सृष्टि का पांचजन्य
उदघोष कर भी सकता था
नये युग का आरंभ.

  • सुब्रतो चटर्जी

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