Home गेस्ट ब्लॉग अयोग्य शासकों ने कोरोना के नाम पर आम जनता को ही एक दूसरे का दुश्मन बना दिया

अयोग्य शासकों ने कोरोना के नाम पर आम जनता को ही एक दूसरे का दुश्मन बना दिया

20 second read
0
0
607

अयोग्य शासकों ने कोरोना के नाम पर आम जनता को ही एक दूसरे का दुश्मन बना दिया

कोरोना के नाम पर किये गये लॉकडाऊन में दवाई लाने गए किशोर की बर्बर पिटाई

Ram Chandra Shuklaराम चन्द्र शुक्ल

1984 से पाजिटिव व निगेटिव का खेल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शुरू हुआ था एड्स के संदर्भ में. पर वहां एक दूसरे को छूने से कोई रोक नहीं थी, पर उस प्रायोजन में असुरक्षित यौन सम्बन्धों के लिए मनाही की गयी थी.

पर इस बार के पाजिटिव-निगेटिव के खिलाडी बहुत ज्यादा चालाक व शातिर हैं. इन्होंने तो एक तीर से इतने शिकार कर लिए हैं कि उसकी गिनती करना आसान नहीं है. इन्होंने खुद आम जनता को ही एक दूसरे का दुश्मन बना दिया है. हर पहला आदमी के दिमाग में दूसरे आदमी के बारे में यह संदेह से भर दिया गया है कि अगला आदमी कहीं पाजिटिव तो नहीं है.

भय का जितना प्रायोजन 1984 में एड्स के सिलसिले में किया गया था उसका हजार गुना भय इस बार मीडिया, सोशल मीडिया तथा हर हाथ में आ चुके स्मार्ट फोन द्वारा फैलाया गया है या जा रहा है.

पंजाब के एक गांव के जागरूक लोगों ने गांव में कोरोना की जांच करने गयी सरकारी टीम को संगठित होकर गांव से भगा दिया.

यह भय देश व दुनिया के हर इंसान के जेहन में इस कदर भर दिया गया है कि वह इस भय के दबाव में कुछ और सोच ही नहीं पा रहा है. भारत में यह काम सर्वाधिक व बड़े पैमाने पर किया गया है या जा रहा है. दुनिया में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहां आम जनता को बिना मास्क उपलब्ध कराए उसे मुंह व नाक पर न लगाने वालों से पुलिस द्वारा ₹100 से ₹500 तक जुर्माना वसूल किया जा रहा है.

पिछले लगभग 05 महीनों में इस प्रायोजित भय के दबाव के कारण भारत में जितनी मौतें हुई हैं तथा हो रही हैं, इतने मौतें 1947 के बाद शायद ही किसी साल में हुई होंगी. मेरे संज्ञान में मेरे मुहल्ले में 10-12 लोगों की मौत इस दौरान हुई है, पर इनमें से अधिकांश मौतें उन वरिष्ठ नागरिकों की हुई हैं जो पहले से किसी बीमारी के शिकार थे तथा कोरोना काल में उन्हें न तो समय से चिकित्सा सुविधा हासिल हुई और न ही उनकी ठीक से देखभाल हो सकी, क्योंकि हर आदमी खुद को बचाने के लिए मुंह व नाक पर मास्क लगाकर बंदर बनकर कमरे में छिपा कर बैठा दिया गया था या है.

कोरोना की आड़ में बहुत बड़े फासीवादी खेल को खेल रहे हैं देश के वर्तमान दक्षिणपंथी शासक. यह सब सच देर सबेर जनता के सामने आकर रहेगा परंतु तब तक वे अपना काम कर चुके होंगे.

देश व्यापी सीएए व एनआरविरोधी आंदोलन को खत्म करना, शहरों में रहकर अपनी मेहनत के बल बूते पर रोजी-रोटी कमा रहे करोड़ों मजदूरों को शहरों से अमानवीय हालत में भागने पर मजबूर करना.

पिछले पांच महीने से देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद रखकर शिक्षा का सत्यानाश कर देना तथा यात्री रेल परिवहन सेवाओं को पिछले चार से अधिक महीनों से बंद रखकर भारतीय परिवहन सेवा की रीढ़ की हड्डी तोड़ देना

भारतीय रेल को घाटे में पहुंंचा कर उसके निजीकरण का रास्ता साफ करना तथा डीजल के दामों में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी कर किसानों को बरबाद करना व खुदरा वस्तुओं के दामों में बेतहाशा मंहगाई बढ़ाकर जनता की कमर तोड़ देना कोरोना के ही साइड इफेक्ट हैं.

अभी तो खेल चल रहा है. इस खेल के अंपायर बहुत ज्यादा शातिर हैं. इन शातिर लोगों ने इंसान को जिस तरह से अकेला कर दिया है, उस अकेलेपन से लड़ पाने में लाखों क्या करोड़ों लोग अक्षम साबित हो रहे हैं. यह अकेलापन व चौबीसों घंटे का दबाव उन्हें मानसिक तौर पर रोगी बना रहा है और उनकी जान ले रहा है.

यह (कोरोना) जनता पर पुलिस राज लागू करने, उसकी आवाज को दबाने तथा उसके संगठन एवं एकता को तोड़कर उसे घरों के भीतर कैद रखने का एक बहुत बड़ा विश्व व्यापी षडयंत्र है – यह बात मैं शुरू से ही कह रहा हूंं.

इस षडयंत्र के पीछे बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियां, पीपीई किट बनाने वाली कंपनियां तथा अल्कोहल (सेनेटाइजर) निर्माता कंपनियों की मुनाफाखोरी की योजना उसी तरह काम कर रही है, जैसे कि 1990 के दशक में अमेरिका व फ्रांसीसी फार्मा कंपनियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय दलाल संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के माध्यम से एड्स का प्रायोजन किया गया था, जिसके लिए दुनिया भर के पूंजीवादी शासकों द्वारा अपने देश के सालाना बजट में हजारों करोड़ रूपये की बजट व्यवस्था की जाती है.

कुछ दिन बाद यही बजट व्यवस्था आपको कोरोना के नाम पर दुनिया भर के देशों में होती दिखाई पड़ेगी. मास्क, सेनेटाइजर तथा पीपीई किट को आपके जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना दिया जाएगा.

यह सारा खेल मुनाफा कमाने का है – यह जल्दी ही लोगों की समझ में आ जाएगा, पर तब तक काफी देर हो चुकी होगी और दुनिया भर के पूंजीवाद व कारपोरेटपरस्त शासक अपने मकसद में कामयाब हो चुके होंगे. किसी शायर की लिखी पंक्तियांं याद आ रही हैं कि ‘सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ.’

बताते हैं कि संवत 1675 (1618 ई.) में काशी में महामारी फैली थी. इस महामारी के फलस्वरूप समाज में फैली भयावह गरीबी के कारण किसान तथा व्यापारी सभी परेशान थे. लोग जीविकाविहीन होकर घर में बैठने को मजबूर हो गये थे. लोगों को रोजगार उपलब्ध नहीं था. यहां तक कि मांगने से भीख भी नहीं मिलती थी. इन स्थितियों का वर्णन तुलसीदास ने अपनी रचना कवितावली के कुछ पदों में किया है, जिन्हें आप पढ़ सकते हैं :

‘राम-नाम-महिमा-4

(97)

खेती न किसान को, भिखारी केा न भीख ,बलि,
बनिकको बनिज, न चाकरको चाकरी।

जीविकाबिहीन लोग सीद्यमान सोचबस,
कहैं एक एकन सों ‘कहाँ जाई , का करी?’,

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।

दारिद-दसानन दबाई दुनी , दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।।

(98)

कुल-करतुति -भूति-कीरति -सुरूप-गुन-
जौबन जरत जुर, परै न कल कहीं।

राजुकाजु कुपथु , कुसाज भोग रोग ही के,
बेद-बुध बिद्या पाइ बिबस बलकहीं।।

गति तुलसीकी लखै न कोउ , जो करत,
पब्बयतें छार, छारै पब्बय पलक हीं ।ं

कासों कीजै रोषु , दोषु दीजै काहि, पाहि राम!
कियो कलिकाल कुलि खललु खलक हीं।।’

1605 में अकबर की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी जोधा बाई के गर्भ से जन्म लेने वाला जहांगीर (सलीम) बादशाह बना. यह एक तरह से अयोग्य मुगल शासक था. इसका शासन काल भी मात्र 22 साल (1605-1627) का रहा. 1627 में शाहजहांं अपने अन्य भाइयों को पराजित कर बादशाह बना.

तुलसीदास ने कवितावली की रचना संभवतः काशी में 1618 ई. में फैली महामारी व अकाल के समय अथवा इसके कुछ बाद की, जिस समय हिंदुस्तान का बादशाह एक अयोग्य शासक जहांगीर था.

जो तथ्य उपलब्ध होते हैं उनके अनुसार जहांगीर ने अकबर के नवरत्नों में से अधिकांश को राजकाज से तथा सलाहकार के पदों से हटा दिया था. यहांं तक कि उसने रहीम को भी अपमानित कर उनसे सभी तरह के अधिकार छीन लिए थे, जबकि बैरम खां की मृत्यु के बाद अकबर ने रहीम को पुत्र की तरह पाला-पोसा था तथा उनकी शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था.

आप सभी जानते हैं कि अकबर जब बेहद कम उम्र के थे तभी उनके पिता हुमायूं की मृत्यु हो गयी थी, तब बैरम खां, जो कि रिश्ते में हुमायूंं के साढू लगते थे, ने अपने संरक्षण में अकबर को 1556 में हिंदुस्तान के बादशाह की गद्दी पर आसीन किया था. इन्हीं बैरम खां के पुत्र थे रहीम. अपनी मृत्यु के समय बैरम खां ने रहीम को अकबर के हाथों सौंपते हुए उनसे यह वचन लिया था कि वे रहीम का पालन-पोषण व शिक्षा-दीक्षा की उचित व्यवस्था करेंगे.

अकबर ने इस कौल को बखूबी निभाया और रहीम को अपने धर्मपुत्र का दर्जा प्रदान किया. अकबर के जीवन भर रहीम की स्थिति अकबर के दत्तक पुत्र जैसी ही रही. रहीम ने एक सेनापति के रूप में भी अपनी योग्यता साबित की थी.

वीर, बहादुर, कवि, दार्शनिक व संत जैसे हृदय वाले रहीम को अपमानित कर आगरा से निकाल देने वाले जहांंगीर को एक योग्य शासक कदापि नही माना जा सकता है. इसी अवधि में रहीम ने कुछ काल तक चित्रकूट में निवास किया था.

कवितावली के दो तीन पदों में देश व समाज का जैसा वर्णन तुलसीदास ने किया है, उसका मिलान देश की आज की स्थिति से की जाए तो आपको कई सारी समानताएं मिलेंगी. आज की तारीख में हिंदुस्तान का शासन अयोग्य शासकों के हाथ में है. महामारी के झूठे बहाने से लाखों करोड़ों जनता का रोजगार छीन लिया गया है.

Read Also –

कोरोना एक बीमारी होगी, पर महामारी राजनीतिक है
सेना, पुलिस के बल पर आम जनता को कुचलने की निःशब्द और क्रूर कोशिश का नाम है – कोरोना महामारी
अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत कोरोना के नाम पर फैलाई जा रही है दहशत
प्रतिरक्षण प्रणाली और कोरोना टेस्ट
कोरोना की नौटंकी : मास्क, टेस्ट और दिशानिर्देश..

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…