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हां, मैं भी अरबन नक्सल हूं

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हां, मैं भी अरबन नक्सल हूं

तुम्हें बंदूक और पिस्टल से नहीं मारुंगा
तुम्हें मारुंगा शब्दों के भाले गड़ांसे से
कुदाल फावड़ा हंसिया हथौड़ा
बेलचा बारी झूड़ी गैंता से
कलम की नीब और उसमें भरी
नीली काली भूरी स्याही के बारुद से
जितना भी लाल सफेद काले पीले कानून बना लो
तुम्हें तब भी मारुंगा

लाइन में खड़ा कर उड़ाने की धमकियां मत दो
तुम किसी सूरत बच नहीं सकते
शब्दों के इस बीहड़ में शब्दों का कोई पिट्ठू सौदागर
तुम्हें बचा नहीं पाएगा
कलुषित आत्मा एक न एक दिन जागेगी जरुर
गेरुआ वस्त्र पहने आज के इन अंधभक्तों पर चढ़े
तुम्हारे चश्मे का रंग उतरेगा जरूर
यह गाय गोबर और तुम्हारी छद्म देशभक्ति का षड्यंत्र
देर सबेर समझेंगे ये भोले गुमराह चेहरे जरुर
एक न एक दिन उतरेगा
उनकी आंखों पर पड़ा भ्रम का जाला
तुम इतिहास में जितना भी फेर बदल कर लो
अंग्रेजों से तुम्हारी सांठ गांठ और
उनके लिए की गयी तुम्हारी मुखबरी का
काला सच का यह काला अध्याय
न बदला है न बदलेगा
तुम्हारा यह कलंक युगों युगों तक
तुम्हें कलंकित करता रहेगा

अपने किस पतित मुंह से
आजाद चंद्रशेखर का नाम लेते हो ?
किस चाल और चरित्र से
भगत सिंह को अपने खामे में रखते हो ?
जब कि तुम्हारी जमात की मुखबरी से ही
गोरे अंग्रेज उन्हें घेर पाये थे और
उन्हें अपनी शहादत देनी पड़ी
उस लखनऊ के आजाद पार्क में उस आजाद को
अपने काले कानून की कैद में
कैद करने से फिर भी नाकाम रहे
यह शर्म तुम्हें शर्मशार नहीं करती,
न जुटा पाए आज तक तुम
अपने इस पापाचार कुकृत्य की
आत्मस्वीकृति की हिम्मत

सुभाष को तो तुम ने खंगाल लिया,
भुना लिया जितना कमाना था कमा लिया
हम सब समझते हैं तिलक और पटेल के पीछे का
तुम्हारा षड्यंत्रकारी मक़सद
उस आदमकद प्रतिमा के पीछे
तुम्हारे काले सियासी मनसूबे
नीलामी पर तुले देश की आजादी और
संप्रभुता की तुम्हारी कुटिल चाल
मंदिर मस्जिद की आड़ में यह
कौन सा देशद्रोही खेल खेल रहे हो

तुम सरकार नहीं एक जख्म हो,
देश के माथे पर उभरता एक काला कलंक
भारतीय समाज का लिखित
एक कलंकित इतिहास का स्याह अध्याय
हम अपने शब्दों के बुलेट और हथगोलों से लैस
अपने प्रतीक और बिंबों के लाव लश्कर के साथ
तुम्हारे तोपों, तुम्म्हारे मिसाइलों के सामने
निर्भय निडर खड़े हैं
तुम चाहो तो हमें उड़ा सकते हो
फर्जी मुठभेड़ में
सलाखों के पीछे बंद तुम रख सकते हो
यह भौतिक शरीर
तुम से और तुम्हारे सामने
आज और अभी
हम युद्धघोष करते हैं

हां, मैं भी अरबन नक्सल हूं

  • राम प्रसाद यादव

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ROHIT SHARMA

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