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जीडीपी के 23.9 फीसदी गिरने का मतलब क्या है ?

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जीडीपी के 23.9 फीसदी गिरने का मतलब क्या है ?

बहुत से मित्रों ने पूछा है कि जीडीपी के 23.9 फीसदी गिरने का मतलब क्या है और मुझ पर इसका किस तरह से असर पड़ेगा ? दैनिक भास्कर के नेशनल न्यूज रूम में कभी रिसर्च टीम का सदस्य होने के नाते मेरा काम जटिल बातों को सरल तरीके से पाठकों तक पहुंचाने का था.

जीडीपी के माइनस 23.9 फीसदी होने का मतलब है कि पिछले साल की अप्रैल-जून तिमाही के मुकाबले माल और सेवाओं के सकल उत्पादन का मूल्य करीब 24 फीसदी घट जाना.

नीचे दो चार्ट हैं। दूसरा वाला चार्ट देखेंगे तो पता चलेगा कि पिछले साल की अप्रैल तिमाही के मुकाबले किन माल व सेवाओं में कितनी गिरावट आई है ?


अब दूसरे सवाल पर आएं. एनएसएसओ ने कल साफ कर दिया है कि कोविड लॉकडाउन के कारण जीडीपी की असली तस्वीर सामने लाने के पूरे आंकड़े नहीं मिल पाएं. एक बार फिर इस बात का ध्यान रखें कि कल के आंकड़ों में अनौपचारिक क्षेत्र के आंकड़े नहीं हैं.

अनौपचारिक क्षेत्र, यानी छोटे उद्यम. आप जान लें कि कोविड ने इनका खात्मा कर दिया है. यह भी तय है कि कोरोना काल में भारत की 15 फीसदी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो चुकी है, हमेशा के लिए.

जुलाई की तिमाही में आंकड़ों का यह गैप भरने की कोशिश होगी. तब यकीनन भारत की अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर सामने आएगी और तब यह अनुमान लगाया जा सकेगा कि भारत की इस वित्त वर्ष में ग्रोथ कितनी होगी ? अभी का अनुमान यह है कि भारत की ग्रोथ माइनस 7-8 प्रतिशत रहेगी.

यानी 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद भारत साल-दर-साल करीब 7 फीसदी की आर्थिक प्रगति के साथ आगे बढ़ रहा था. इस साल, यानी 2020 में यह माइनस 7 प्रतिशत हो सकती है.

लॉकडाउन से पहले भारत में माल और सेवाओं की निजी खपत जीडीपी का 56.4 प्रतिशत थी. निजी क्षेत्र की मांग 32 प्रतिशत थी. माल और सेवाओं की सरकारी मांग 11 प्रतिशत थी. किसी भी देश की जीडीपी को बढ़ाने वाले ये तीन इंजन हैं. चौथा यानी इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का अंतर सबसे कमजोर इंजन है. (अब चौथा चार्ट देखें)

भारत को लॉकडाउन से निजी खपत के रूप में 5.31 लाख करोड़, व्यापारिक निवेश के रूप में 5.33 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है. दोनों मिलकर जीडीपी के 88 प्रतिशत को पूरा करते हैं.

मैंने पहले भी कहा था कि जब तक मोदी सरकार इस नुकसान की भरपाई के लिए अपनी तरफ से खर्च नहीं करेगी, जीडीपी नहीं बढ़ सकती लेकिन मोदी सरकार ने मूर्खता दिखाते हुए केवल 66,387 करोड़ रुपए ही खर्च किए.

एक बार फिर यह मोदी सरकार पर निर्भर है कि वह देश की गिरती हुई अर्थव्यवस्था को कैसे संभालती है ? एकमात्र रास्ता वही है, सरकारी खर्च में भारी बढ़ोतरी. रोड, पुल, अस्पताल कुछ भी बनाएं या फिर लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए पैसा दें लेकिन मोदी सरकार के पास खर्च करने के लिए अब पैसा नहीं है. बाहर से उधारी भी बहुत हो चुकी है. राजकोषीय घाटा आसमान पर है.

फिर भी अगर मोदी सरकार खर्च बढ़ाती है तो भी जीडीपी को माइनस सात से माइनस 3.5 प्रतिशत तक ही उठाना अभी संभव है. यकीनन भारत की अर्थव्यवस्था भयानक मंदी में है और शायद अगले कुछ साल इससे उबरना बहुत ही मुश्किल है.

  • सौमित्र राय

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ROHIT SHARMA

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