राम चन्द्र शुक्ल
चीन के मजदूरों द्वारा बनाए गये सस्ते व उत्तम गुणवत्ता वाले मोबाइल सेट, लक्ष्मी गणेश, डिजाइनर दियों, सस्ते फोर व फाइव जी सिमों/मोबाइल सेटों, पेटीएम, चीनी कंपनी द्वारा बनाए जा रहे मेट्रो प्रोजेक्टों,पटेल की मूर्ति तथा चीनी कंपनी अली बाबा द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले सामानों से अंध भक्तों तथा अंध राष्ट्रवादियों को बहुत प्यार है पर चीनी जनता तथा वहां के सैनिकों व मजदूरों व उनकी शारीरिक बनावट से उन्हें बेतरह नफ़रत है.
चीनी साहित्य, वहां की फिल्मों तथा नाटकों, वहां की जनता की विचारधारा, वहां की कला व संस्कृति से भी अंधभक्त तथा अंधराष्ट्रवादी बहुत ज्यादा नफ़रत करते हैं. उनके सामने चीन तथा उससे जुड़ी किसी बात की चर्चा भी उनकी बर्दाश्त की सीमा से बाहर है.
पर वही चीनी जब ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदकों का सैकड़ा लगाते हैं तो भक्त गण अपने भगवान से एक कांसे या चांदी के पदक के दुआ तथा प्रार्थना करते रहते हैं. जब चीनी इंजीनियर तिब्बत की राजधानी ल्हासा तथा नेपाल की राजधानी काठमांडू एवं पाकिस्तान की औद्योगिक राजधानी करांची को जोड़ने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले राजमार्गों तथा रेल नेटवर्क का निर्माण करते हैं तो वहीं भारतीय कंपनियां तथा यहांं के इंजीनियर अपने देश के पहाड़ी, अर्ध पहाड़ी समुद्र तटीय व रेगिस्तानी इलाकों के लिए राजमार्गों व रेल नेटवर्क स्थापित करने का ठेका भी किसी एल एंड टी या चीनी कंपनी को देकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर लेते हैं.
इनके प्रायोजक तथा आका व इनके पूज्य पूंजीपति तथा कारपोरेट घराने भारतीय बैंकों से पैसा लेकर विदेश भाग जाने में नंबर एक पर हैं या फिर वे ऐसे कामों में धन का निवेश करते हैं, जिससे बिना ज्यादा जनशक्ति के ही भरपूर मुनाफा होता रहे.
केजी-6 बेसिन से तेल तथा प्राकृतिक गैस की चोरी, सरकार से फोर जी का फ्री स्पेक्ट्रम हासिल कर देश भर में फोर जी नेटवर्क बीएसएनएल के टावरों के माध्यम से स्थापित कर देश की अन्य सभी सरकारी व गैर-सरकारी मोबाइल कंपनियों का दीवाला निकाल देने में वे सबसे आगे हैं.
उन्हें लगभग मुफ्त में कोयला लोहा तथा अन्य कीमती धातुओं की खानें चाहिए. उन्हें बिना किसी अनुभव के लड़ाकू विमानों व अन्य युद्धास्त्रों की सप्लाई का ठेका चाहिए. अब उनकी गिद्ध दृष्टि रोजाना हजारों करोड़ मुनाफा देने वाली भारतीय रेलों पर टिकी है.
उनके चेले चपाटों ने कोरोना का हौव्वा खड़ा कर पिछले लगभग पांच महीनों से यात्री रेल परिवहन सेवा को बंद कर रखा है तथा भारतीय रेलों में कार्यरत 10 लाख से अधिक कर्मचारियों व अधिकारियों को घर बैठाकर तनख्वाहें दी जा रही हैं, ताकि भारतीय रेल इस कदर घाटे
में पहुंच जाए कि उसके निजीकरण के लिए इनको एक बड़ा बहाना मिल सके.
देश के अब लगभग सभी राज्यों में बसें खचाखच भर कर चलाई जा रही हैं. इन बसों में सोशल डिस्टैंसिंग का अब कोई मतलब नही रह गया है और जनता रेल की तुलना में तीन से चार गुना किराया देकर यात्रा करने को मजबूर है.
चूंकि इन शासकों को रेल का निजीकरण करना है इसलिए उसे इतना अधिक घाटे में पहुंंचा दिया जाएगा ताकि यह बहाना मिल सके कि अब भारतीय रेलों को सरकारी क्षेत्र में चलाया जाना संभव नहीं है. लॉकडाउन या अनलॉक को बढ़ाते जाने के पीछे नीरो एंड कंपनी का यही मकसद समझ में आ रहा है. दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यह लॉकडाऊन-अनलॉक का खेल तब तक यूं ही बदस्तूर चलता रहेगा जब तक रेल समेत पूरा देश निजी हाथों में बेच नहीं दिया जाता है क्योंकि जनप्रतिरोध को रोकने का इससे बेहतर और कोई तरीका नहीं है.
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