सुब्रतो चटर्जी
अब ट्रेन ड्राईवर और बैंक किरानी बनने की योग्यता समान हो गई. गधत्व से लबरेज मोदी सरकार ने डेढ़ लाख केंद्रीय नौकरियों के लिए एक Common Eligibility Test लेने का फ़ैसला लिया है. इस फ़ैसले से ढाई करोड़ परीक्षार्थियों को अब सारे पदों के लिए साल में सिर्फ़ एक परीक्षा देनी होगी, जिसमें चयनित उम्मीदवारों की सूची तीन सालों तक वैध रहेगी. कहा जा रहा है कि इससे समय और पैसे की बर्बादी रुकेगी.
सुनने में बहुत अच्छा लगता है. सवाल ये है कि दुनिया में वह कौन सा प्रश्नपत्र बना है, जिससे आप सैकड़ों तरह के कार्यों के लिए एक ही योग्य उम्मीदवार ढूँढ लेगा ?
आप कहेंगे, भारतीय प्रशासनिक आयोग की परीक्षा कुछ ऐसा ही होता है. पास करने के बाद कुछ अभ्यार्थी ज़िला सँभालते हैं, कुछ पुलिस, कुछ विदेश, कुछ वित्त और कुछ आबकारी विभाग या वन विभाग. ग़ौरतलब बात ये है कि इसके लिए preferential, training and opening का रास्ता बना है.
सोचने वाली बात ये है कि एकल परीक्षा की नीति अपनाने के साथ साथ क्या सरकार ने ग़ैर प्रशासनिक केंद्रीय सेवाओं के लिए भी कुछ ऐसी संरचना तैयार की ? उत्तर है नहीं. फिर आप कैसे बैंक पीओ से ट्रेन चला सकते हैं ?
दरअसल, सच ये है कि मोदी सरकार के पिछले छ: सालों में केंद्रीय नौकरियों में लाखों ख़ाली पदों पर कोई नियुक्ति नहीं हुई है. लाखों चयनित उम्मीदवार लटके हुए हैं. केंद्र सरकार भारत के संसाधनों की अंधी लूट में इस क़दर शामिल है कि दूसरा कोई काम करने की फ़ुर्सत ही नहीं है. पेट्रोल डीज़ल से 14.6 लाख करोड़ का अतिरिक्त राजस्व पिछले छ: सालों में कमाने के बाद भी केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन और पेंशन देने के लाले पड़े हैं. पैसा कहाँ गया CAG को भी नहीं मालूम. ऐसे में रोज़-रोज़ नया भारत बनाने के लिए एक नया और निर्लज्ज शिगूफ़ा छोड़ने के सिवा इनके पास और कोई काम नहीं बचा.
रेलवे से लेकर हवाई अड्डा और एयर ईंडिया से लेकर BPCL तक सबकुछ घूस खाकर अंबानी-अदानी को बेचा जा रहा है. बंदरगाह बिक चुके हैं अदानी के हाथों. अंग्रेज कहते थे, Britain rules the world because Britain rules the Sea. बस यह एक वाक्य आपको समझा सकता है कि अदानी के हाथों देश के बंदरगाह जाने का अर्थ.
आख़िर में बात करते हैं एक ग्रंथि की. एकलवाद एक ग्रंथि है. एक साधे सब सधै, आपने सुना होगा. इसके पीछे का मनोविज्ञान समझिए. दरअसल, एक अर्ध-विकसित प्रज्ञा जब जीवन और संसार की विविधताओं को ग्राह्य करने में और उनका तार्किक विश्लेषण करने में असमर्थ होता है, तब सब कुछ एक ही रंग में रंग कर सुकून पाता है. आध्यात्मिक स्तर पर यह अद्वैतवादी दर्शन है और बौद्धिक स्तर पर यह अज्ञान जनित कुंठा की अभिव्यक्ति. राजनीतिक दर्शन में यही हमें अधिनायकवाद की तरफ़ ले जाता है. मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई.
फ़ासिस्ट विचारधारा अधिनायकवाद के बिना संभव नहीं है. आज जब भाजपा एक देश एक निशान, एक भाषा, एक संस्कृति, एक क़ानून, एक परीक्षा की बात करती है, वह इसी एकलवादी अधिनायकवाद का प्रतिस्फलन है और कुछ नहीं. सरकार का कोई चेहरा नहीं है मोदी के सिवा, प्रधानमंत्री ही गृह, रक्षा, वित्त, विदेश, शिक्षा मंत्री हैं. दूसरे मंत्री बस जमूरे हैं. इनका बस चले तो कोई मंत्रालय ही नहीं हो. सच तो ये है कि PMO, जिसमें क़रीब 350 अधिकारी हैं, देश चला रहे हैं. इनकी निष्ठा प्रधानमंत्री में है, देश के प्रति नहीं.
एकलवाद की सोच आपको ईश्वर की सत्ता में भी विश्वास पैदा करती है और अधिनायकवाद में विश्वास भी. यह मानव मन और मस्तिष्क की सबसे कुरूप अभिव्यक्ति है. इस ‘एक’ शब्द से बचिए. दुनिया अनेक से बनी है , और आप उनमें से ‘एक’ हैं, इससे ज़्यादा कुछ नहीं.
मोदी जी की डिग्री से लेकर रमेश पोखरियाल की विद्वता के मुज़ाहिरा से जिनको इत्तेफाक है, वे जानते हैं कि क्यों मैंने शुरु में ही सरकार को गधत्व से लबरेज़ कहा ?
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