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भारत में ऐसे शासकों की जरूरत है जो विदेशी कर्ज की अदायगी से इंकार कर सके

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भारत में ऐसे शासकों की जरूरत है जो विदेशी कर्ज की अदायगी से इंकार कर सके

Ran Chandra Shuklaराम चन्द्र शुक्ल

यद्यपि यूरोप व भारत के बीच पहली बार संपर्क बनाने का काम 1498 में पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने किया लेकिन इसके बाद 100 साल से अधिक कालावधि तक कोई भी नाविक या व्यापारी अपना मुनाफे पर आधारित मजबूत जाल फैलाने में कामयाब नही हो सका.

यह काम भारत में ब्रिटिश व्यावसायिक कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1618 में भारत के सूरत नगर में व्यापार की अनुमति मिलने के बाद अगले लगभग 350 सालों में भारत पर कब्जा तो किया ही, साथ ही सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश को लूटकर खोखला कर दिया.

ईस्ट इंडिया कंपनी की लूट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1700 ई. में जो भारत दुनिया भर की दौलत का 22% हिस्सा पैदा करता था, वही भारत 1952 में दुनिया भर की दौलत की 4% हिस्सेदारी पर आ गया.

इस कारनामे को अंजाम मात्र 36 कारकुनों की संख्या वाली लंदन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिया. ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ब्रिटेन में 1600 ई. में हुई थी. ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रतिनिधि बन कर सर टामस रो 1615 में भारत आया. इस समय भारत में जहांंगीर का शासन था.

सर टामस रो तीन साल तक भारत में व्यापार करने की अनुमति हासिल करने की कोशिश करता रहा. बादशाह तथा वली अहद शाहजहांं को तरह-तरह के महंगे तोहफे भेंट करता रहा. आखिरकार 1618 में वली अहद शाहजहांं को वह अपने जाल में फंसाने में कामयाब हो गया और सूरत में व्यापार करने अनुमति हासिल कर ली.

सूरत के बाद कलकत्ता मद्रास सहित भारत के जितने भी महत्वपूर्ण समुद्रतटीय नगर थे, उनमें ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना व्यापारिक जाल फैला दिया. बाद में कंपनी की संपत्ति की रक्षा के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा एक सेना गठित की गयी. इस सेना ने 1757 से 1857 के बीच लगभग पूरे भारत के महत्वपूर्ण भूभाग को अपने कब्जे में ले लिया.

1757 से 1947 के बीच के सालों में अंग्रेजी शासकों ने भारत को इस कदर लूटा कि भारत के करोड़ों लोग अकाल व भुखमरी के शिकार बनकर मर गये. भारत में पहला बड़ा अकाल 1769 में बंगाल में पड़ा, जिसमें लगभग एक करोड़ लोग भूख से मर गये. इसी प्रकार अगला बड़ा अकाल फिर से 1943 में बंगाल में पड़ा, जिसमें लगभग 50 लाख लोग भूख से मर गये. ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने टैक्सों व लगान से मतलब था, भले ही इसके लिए भारत के किसान मजदूर व व्यवसायी भूखों मर जाएं.

एक आंंकलन के मुताबिक 1757 से 1947 के बीच के 190 सालों में अंग्रेजी शासकों ने भारत से लगभग 30 खरब डॉलर के बराबर के धन व सम्पत्ति की लूट की. इसकी तुलना में दिल्ली को लूटने वाला ईरानी नादिरशाह मात्र 143 अरब डॉलर के बराबर की ही धन व सम्पत्ति लूट पाया था.

आज जो ब्रिटेन का पौण्ड व अमेरिका का डालर रूपये की तुलना में इतना ज्यादा मूल्य रखते हैं, उसके पीछे भारत जैसे देशों की लूटी गयी सम्पत्ति का मूल्य जुड़ा हुआ है. भारत से ही लूटे गए धन को वे विश्व बैंक व आइ एम एफ आदि के जरिए भारत को कर्ज के रूप में दे रहे हैं और इन देशों के नागरिक भारत व पाकिस्तान जैसे देशों द्वारा ब्याज के रूप में दी जाने वाली धनराशि से गुलछर्रे उड़ा रहे हैं.

अगर भारत ने चीन की तरह अपनी आजादी अंग्रेजों से लड़ कर और उन्हें पराजित करके हासिल की होती तो, न तो भारत का साम्प्रदायिक व नस्लवादी आधार पर बंटवारा होता और न ही अपने ही भाई देशों से बार-बार युद्ध लड़ना पड़ता.

भारत में ऐसे शासकों की जरूरत है जो अंग्रेजों द्वारा भारत से लूटे गए धन की भारत को ब्रिटेन से वापसी करा सकें. तथा जो कर्ज भारत द्वारा विश्व बैंक आइ एम एफ व अन्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से लिया गया है, उसकी अदायगी से इंकार कर सकें, क्योंकि यह धन तो भारतीय उपमहाद्वीप से ही कुछ समय पहले लूटा गया है.

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