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बस आत्मनिर्भर बनो और देश को भी आत्मनिर्भर बनाओ

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बस आत्मनिर्भर बनो और देश को भी आत्मनिर्भर बनाओ

भारत का वर्तमान तानाशाही निजाम भारत के बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम की जिंदगी के सारे रास्ते बंद करने के अपनी फासीवादी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए कृत संकल्पित है. एक मजदूर की जिंदगी की कीमत महीने में पांच किलो गेहूं और एक किलो चना इस हिन्दू ह्रदय सम्राट ने तय कर उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया गया है. गुलाम बनकर उन्हें सोलह घंटे तक काम करना होगा, जिसके एवज में वे बस दो मुट्ठी अनाज के हकदार हैं, इससे ज्यादा मांगने का उन्हें कोई अधिकार नहीं. न वे मांंग कर सकते हैं, न गुस्सा कर सकते हैं, न जुबान खोल सकते हैं, और न ही नारे लगा सकते हैं.

धर्मरक्षक को शांति पसंद है, हल्ला-गुल्ला नहीं. वे एकदम मरघट-सी शांति चाहते हैं, जहां सिर्फ मुर्दों के जलने से चट-चट की आवाज ही आ सके. अमूमन साहब को मजदूर शब्द से ही नफरत है, और वे चाहते भी हैं कि भारत के सारे गरीब, रोगी, लाचार, और जलालत झेलने वाले मजदूरों को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाए. पर, अभी चुंकि मजदूरों के बदले भारत में काम करने वाले उतने रोबोट उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए साहब को मन मारकर इन गंदे और हरामखोर मजदूरों को भारत में रहने देने के लिए इजाजत देनी पड़ रही है.

हमारे विराट पुरुष की कल्पना में भारत एक ऐसा देश बनेगा, जहां सिर्फ करोड़पति और अरबपति ही बसें. गरीबों के कारण भारत की दुनिया के देशों में कितनी फजीहत होती है ? इन्हीं के कारण भारत का विकास अवरूद्ध है, देश पर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष एवं अन्य देशों का कर्ज भारत के सिर लदा हुआ है, जिसका सूद देने में ही सरकारी कोष हांफ रहा है, रिजर्व बैंक रो रहा है, और अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक डुबते चले जा रहे हैं, इसीलिए देश के पूंजीपतियों को विकास के लिए जितनी राशि मिलनी चाहिए, उतनी उन्हें नहीं मिल रही है.

उन्होंने अपने मन में यह ठान लिया है कि शीघ्र ही भारत को गरीब मुक्त देश बना दिया जाएगा. बताइए भला, इतना सुघर सुभूमि भारत कितना गंदा, बुरा, दुर्गंधयुक्त और फटेहाल लगता है, इन चिथड़ों में लिपटे गरीबों के कारण. एक बार भारत गरीब मुक्त हो जाए, बस हर भारतीय के पास अपनी निजी गाड़ी होगी, स्वर्ग-सा सुंदर घर होगा, देश के सारे बच्चे आधुनिक सुविधाओं से लैस स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ेंगे, विश्व के अन्य देशों में पर्यटन के लिए जाएंगे, और मौज-मस्ती करेंगे. उनके लिए शानदार मनोरंजन गृह होंगे, खुबसूरत और भव्य खेल के मैदान होंगे, अमेरिका से भी बेहतर सुविधाओं वाले अस्पताल होंगे, स्काई स्क्रैपर्स होंगे, गगनचुंबी इमारतें होंगी, लोग गीत गाते, नाचते और खुशी मनाते झुमते नजर आएंगे. मंदिरों और देवालयों में भगवान के सामने सिर झुकाकर आशीर्वाद मांगेंगे और घंटा बजाकर हर हर मोदी, घर घर मोदी का जाप करेंगे.

अधिकतर भारतीय हवाई जहाज से देश-विदेश की यात्रा करेंगे. सभी रेलगाड़ियां भी वातानुकूलित होंगी, जिसमें सिर्फ हैट, पैंट और टाई पहनने वालों को ही बैठने की इजाजत होगी. बताइए भला, इन लोगों के बीच गरीब और गंदे मजदूर कितने बुरे लगते हैं ? इनके लिए हर शहर में तब तक के लिए अलग तंबूनुमा रिहाईशी इलाके का चयन कर उन्हें इस तरह कैद करके रखा जाएगा ताकि बाहरी लोगों की उन पर नजर न पड़े.

हर भारतीय के पास हजारों एकड़ जमीन के भूखंड होंगे, जिसमें वे रोबोट द्वारा मनचाहे फसल का उत्पादन कर सकेंगे, और ऊंची कीमत पर विदेशों में निर्यात कर सकेंगे. दुनिया के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय और प्रयोगशालाएं भारत में ही होंगे, जिसमें शोध और अनुसंधान करने वाले हमारे वैज्ञानिक हर साल ऐसी खोज और आविष्कार करेंगे कि हर साल नोबेल पुरस्कार सिर्फ भारतीय वैज्ञानिकों को ही मिलेंगे. देखते हैं कि तब कैसे नहीं भारत को दुनिया के देश विश्वगुरु मानते हैं ? इस उपाधि पर तो हमारा सनातन हक है, कोई दूसरा हमसे छीन कैसे लेगा ? हम सिर्फ मनुष्यों को ही नहीं, पहाड़ों, जंगलों और नदियों को भी दूसरे ग्रहों की सैर कराएंगे. दुनिया का सारा सोना और हीरे-जवाहरात भारत में होंगे, और दूसरे देशों की सरकारें हमारे सामने हाथ फैलाकर भीख मांगेगीं.

साहब ने अपने मन की बात में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वे अकेले दम भारत को विकसित और विश्वगुरु बनाकर ही दम लेंगे, इसके लिए ही उन्होंने नोटबंदी, जीएसटी, सरकारी उद्योगों और लोक उपक्रमों की बिक्री, देश के प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों के हाथों में कौड़ियों के मोल सौंपने, एयरइंडिया, रेलवे, रेलवे स्टेशन, हवाईअड्डे, ओएनजीसी, बीएसएनएल, एमटीएनएल, हाल, भेल, गेल, एचएमटी, इंडिया स्कुटर्स, आईडीपीएल और अन्य निगमों सहित बैंकों, जीवन बीमा निगम को भी बेचने की तैयारी कर चुके हैं. अब आप ही बताइए भला कहीं सरकार भी बनियागिरी करती है ? इसी कारण तो इतने सालों में भारत को इतना घाटा हुआ है, जो संभाले नहीं संभल रहा है.

अरे भाई, सरकार का काम है शासन करना, और धनवानों के लिए नीतियों और निर्णयों को बनाना और उन्हें डंडे के जोर पर लागू करना. आखिर सरकार के हाथों में डंडा है किसलिए ? सिर्फ दिखाने और हवा में भांजने के लिए ? आजतक यही करते रह गईं भारत की सरकारें. नतीजा भी सबके सामने है कि एक अदना-सा गरीब मजदूर भी इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाने लगता है. जब न तब हड़ताल, तालाबंदी, घेराव और लाल झंडे के साथ जनांदोलन और जनसंघर्ष. देखा न, साहब ने लाकडाउन की घोषणा कर छ: महीने में ही इन मजदूरों को ऐसा सबक सिखाया है कि अब चूं तक भी बोलने में नानी मरती है.

देखा न साहब का करिश्मा, जेठ की तपती धूप में कोलतार की सड़कों पर लाखों-करोड़ों मजदूरों को पैदल चलने के लिए मजबूर कर दिया. देखा, कहीं से भी कोई आवाज आई ? सारे नेता चूहा बनकर बिलों में घुस गए. शाहीन बाग, शाहीन बाग, बड़ा शोर मचा, दुनिया भर में हो-हल्ला मचा. पर, देखा न, साहब ने ऐसा दांव चला कि सभी चारोंं खाने चित्त हो गए. कहीं से भी कोई आवाज आ रही है क्या ? कश्मीर, कश्मीर, सुनते-सुनते कान पक गए थे. टेकुए की तरह सीधा कर दिया कि नहीं ? कहां गए आतंकी ? एक साल में ही सारी मुसलमानी टें बोल गई. अब तक शरीर में इतनी भी जान नहीं है कि वे जोर से बोल भी सकें, बस फुसफुसा कर रह जाते हैं. लाकडाउन का ऐसा दांव मारा कि सारे विरोधी चारों खाने चित हो गए.

बात-बात में संविधान, लोकतंत्र, समाजवाद, नागरिक अधिकारों, मानवाधिकार और धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने लगते थे. लो, अब एक झटके में ही सबको खत्म कर दिया. सरकार मानेगी, तब न संविधान के इन सिद्धांतों, उद्देश्यों, मूल्यों और आदर्शों का महत्व है लेकिन, जब सरकार को ही तंग करने लगोगे, तो सरकार भी अपनी मनमर्जी करेगी. संविधान, लोकतंत्र, मानवाधिकार, नागरिक अधिकार और स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता को अब खोजते रहो, कहां गए ? हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई, सीवीसी, सीएजी, केन्द्रीय निर्वाचन आयोग सब के सब ठंडे हो गए कि नहीं ?

चले थे प्रधानमंत्री से लड़ने, देख लिया कि नहीं कि भारत में प्रधानमंत्री को छोड़कर और किसी के पास कोई अधिकार और शक्ति नहीं है. मजदूर भी अपने को मालिक समझने लगे थे. अरे भाई, तुम मजदूर हो, मजदूर ही रहोगे, मालिक बनने का सपना मत देखो. बना दिया न सबको गुलाम. चें बोलने के लायक भी नहीं रहे. जो मिलता है, उसे ग्रहण करो, और उतने पर ही संतोष करो. जानते नहीं हो क्या कि संतोष से बड़ा कोई भी धर्म नहीं है ? गुलाम का कर्त्तव्य ही है मालिक की सेवा करना. बस आत्मनिर्भर बनो, और देश को भी आत्मनिर्भर बनाओ.

  • राम अयोध्या सिंह

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ROHIT SHARMA

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