भारतीय न्यायपालिका सामंतवाद का सबसे बड़ा गढ़ है, और सुप्रीम कोर्ट इसका सबसे बड़ा उदाहरण. 2014 तक भारतीय न्यायपालिका ने भारतीय जनमानस के बीच जो भी थोड़ी-बहुत प्रतिष्ठा अर्जित की थी, वह अब 2014 के बाद देश की सत्ता पर काबिज डाकुओं और हत्यारों के गिरोह आरएसएस के एजेंट नरेन्द्र मोदी का रखैल बन कर रह गई है.
2017 में बिहार विधानसभा सदस्य रविन्द्र सिंह ने जब आरएसएस के सामाजिक विद्वेष से भरे एजेंडा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तब सुप्रीम कोर्ट, जो अंबानी घरानों के निजी पंचायत का में घंटों लगाने पर भी वक्त जाया नहीं हुआ, वह दलाल सुप्रीम कोर्ट देश के बदहाली के षड्यंत्र पर सुनवाई में वक्त जाया करने का बहाना बनाकर 10 लाख कर जुर्माना लगा दिया, ताकि अन्य लोगों के लिए भी यह नजीर बन जाये और आरएसएस के खिलाफ कोई आगे न आये.
सुप्रीम कोर्ट दिन व दिन दलालों और सामंतों का अड्डा बनता जा रहा है, इससे पहले कि देर हो जाये, सवाल खड़े करना होगा – सम्पादक
रविन्द्र सिंह औरंगाबाद (बिहार) के निवासी हैं और वर्तमान में 214-अरवल विधानसभा से राजद के विधायक हैं. इसके पूर्व भी इन्होंने अरवल विधानसभा का इसी दल से प्रतिनिधित्व किया है. ये सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे पर काफी सोच-विचार रखते हैं और बचपन से ही सामाजिक बुराइयों के प्रति संवेदनशील रहे हैं तथा इन बुराइयों को मिटाने-सुलझाने में बराबर दिलचस्पी रखते रहे हैं. इनका व्यक्तित्व राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है और राष्ट्रविरोधी ताकतों से देश प्रदेश की जनता को सचेत करने का काम करते रहते हैं.
इनका सामाजिक जीवन काफी क्रांतिकारी दिल्ली से प्रकाशित ‘न्यायचक्र’ नामक पत्रिका जिसके सम्पादक भारत सरकार में मंत्री पद को सुशोभित करनेवाले रामविलास पासवान हैं. इसी पत्र के संयुक्तांक (15 फरवरी से 14 अप्रैल, 1994) में आरएसएस का गुप्त एजेंडा प्रकाशित हुआ था, जिसका अधययन माननीय विधायक रविन्द्र सिंह ने किया. गुप्त पत्र के एजेंडे में कुल 24 प्वाइंट है, जिसमें देश के 90% दलित, शोषित, पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यकों के विकास, स्वावलंबन व स्वाभिमान के खिलाफ विचारधारा दर्ज है और शोषितों, बहुजनों को नीचा दिखाने, प्रताडि़त करने और उनकी बहु-बेटियों के साथ बदसलूकी करने का आहवान आरएसएस, बजरंग दल आदि संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं से किया गया है.
अध्ययन के बाद उक्त गुप्त पत्र के अध्ययन के बाद उक्त गुप्त पत्र के प्रकाशित एजेंडे ने माननीय विधायक रविन्द्र सिंह के मस्तिष्क को झकझोर दिया. विधायक ने इस गुप्त पत्र को राष्ट्रविरोधी पत्र के रूप में संज्ञान लिया और भारतीय संविधान के तहत महामहिम राष्ट्रपति महोदय, राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली, भारत को अनुरोध पत्र 18-10-2013 को भेजकर नम्रतापूर्वक यह अनुरोध किया कि भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए फासीवाद सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है. एक तरफ गंगा-यमुनी तहजीब तो दूसरे तरफ बहुभाषी, बहुधा धर्मावलंबियों की एकता पूरे विश्व के सामने अपने -आप में भारत की पहचान है.
फासीवादियों का सच ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ खुलेआम राष्ट्र प्रेमियों, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने पर आमादा है. माननीय विधायक ने महामहिम से इस पत्र को राष्ट्रद्रोही एजेंडा करार देकर इसके खिलाफ राजनीतिक, संवैधानिक और कानूनी कार्रवाई करने की अपील को तथा आरएसएस, बजरंग दल व अन्य हिन्दू संगठनों पर प्रतिबंध लगाते हुए इनके नेताओं कार्यकर्ताओं, सर संघ संचालकों व निचले स्तर तक के समाज व राष्ट्र विरोधियों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज कर तत्काल गिरफ्रतार करने की भी मांग की.
महामहिम के पत्र की प्रतियां भी माननीय विधायक ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, गृह सचिव, लोकसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री बिहार, मुख्य सचिव, गृह सचिव बिहार सहित तमाम मान्यता प्राप्त और अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को भी गुप्त एजेंडों की प्रतियों के साथ रजिस्टर्ड डाक से आवश्यक कारवाई हेतु भेजा. परन्तु खेद है कि प्रधानमंत्री से लेकर किसी भी राजनीतिक दलों के नेताओं एवं सरकारी पदाधिकारियों ने पत्र की प्राप्ति तक की सूचना नहीं दी. मात्र बिहार प्रदेश कांग्रेस कार्यालय से पत्र प्राप्ति की सूचना आई. जिस समय यह पत्र भेजा गया, उस समय रविन्द्र सिंह पूर्व विधायक थे.
जिस ‘न्यायचक्र’ पत्र में गुप्त एजेंडा छपा है उसके संपादक रामविलास पासवान ने भी इस मुद्दे पर अपना मुंह बंद कर लिया. राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली के कार्यालय से अवर सचिव (पी.) चिरनत सरकार द्वारा पत्रंक-17/10/पी.-1/13, दिनांक-30-10- 2013 द्वारा पत्र प्राप्त हुआ कि आपके पत्र को आवश्यक कार्रवाई हेतु गृह मंत्रलय, भारत सरकार, नई दिल्ली को अग्रसारित कर दिया गया है. भारत सरकार द्वारा भी पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और न आवेदनकर्ता को कोई सूचना प्राप्त हुई.
आरएसएस का गुप्त एजेंडा जो न्यायचक्र पत्रिका में (15 फरवरी से 14 अप्रैल, 1994) प्रकाशित हुआ, उस पत्र को यहां हू-ब-हू पाठकों के विचारार्थ प्रकाशित किया जा रहा है.
आरएसएस का गुप्त दस्तावेज
प्रिय आरएसएस और बजरंग दल के साथियों,
जय श्रीराम,
आपको अपने पुराने कार्यक्रम के अलावा कुछ नये अतिरिक्त नये कार्यभार सौंपे जा रहे हैं, कुछ कार्यक्रमों में संशोधन की जरूरत है. संरक्षकों और स्वयंसेवकों तक निम्नलिखित सूचना पहुंचाना आवश्यक है. अपनी प्रतिक्रिया मुख्यालय को भेजें. सूचना पहुंच जाने के बाद यह पत्र नष्ट कर दिया जाये.
- हथियार और विस्फोटक भरपूर मात्र में प्राप्त करें.
- मुसलमान और आम्बेडकरवादियों के आम्बेडकरवादियों के खिलाफ और सवर्ण हिन्दुओं को लड़ने के लिए प्रवृत्त करें (उकसायें).
- सरकारी पदाधिकारियों में हिन्दुत्व की भावना को महत्वाकांक्षी बनायें.
- डॉक्टर और दवा विक्रेताओं में हिन्दुत्व की भावना जगायी जाये, जिससे वे अपनी काल बीती, हानिकारक और फालतू दवायें ही अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े और मुसलमान ग्राहकों को बेचें।
- गैर सवर्ण और पिछड़ों की बस्तियों में छोटे बच्चों में ‘ओम’ और ‘जय श्री राम’ शब्दों को लोकप्रिय बनायें.
- हिन्दू विरोध (ब्राह्मण विरोध) करने वाले धर्मनिरपेक्षतावादियों के कार्यक्रमों को बहिष्कार करें.
- पिछड़ी जातियों की बस्तियों में दारू, नशीले पदार्थ, जुआ, लॉटरी आदि के जरिये पैसा बटोरने में लगे व्यवसायियों की मदद करें.
- मुसलमानों और गैर सवर्णों की लड़कियां छोटी उम्र में ही वेश्यावृत्ति करने लगें या देवदासी बन जायें, इसकी चेष्टा की जाये.
- अपने स्वयंसेवकों, संगठन से जुड़े शिक्षकों और दूसरे लोगों के जरिए गैर-सवर्ण हिन्दुओं खासकर आम्बेडकरवादियों के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को ऐसे खाद्य पदार्थ दिये जायें जिससे उसका मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक विकास कुंद हो जाये.
- अनुसूचित जाति, जनजाति के छात्रें को अपने स्कूलों में अधिकाधिक प्रवेश दें और केवल अपने सिद्धान्तों के मुताबिक इतिहास की शिक्षा दें.
- मुसलमान, आम्बेडकरवादी और बौद्ध समाज को भड़काकर आपस में दंगा कराने के लिए शहर के गुण्डों, पुलिस और दूसरे हथियार बंद दलों की मदद लें.
- दंगे के दौरान बड़े पैमाने पर मुसलमान, गैर सवर्ण हिन्दुओं की औरतों पर सामूहिक बलात्कार कराया जाये, जान-पहचान या दोस्ती वाले लोग इस कार्य में अवरोध न बने. इस मामले में सूरत कांड को नमूना मानकर चलें.
- गैर हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों से लगी जमीन पर देव प्रतिमा स्थापित करने का कार्यक्रम पूर्ववत जारी रखें, मदद के लिए मुख्यालय से संपर्क करें. पुराने चर्च, मस्जिद अथवा स्तूप के स्थान पर पूर्व हिन्दू मंदिर होने का दावा करने वाला साहित्य तैयार किया जाये. तीव्र गति से मुसलमान, बौद्ध विरोधी साहित्य प्रकाशित किया जाये. सम्राट अशोक बौद्ध नहीं था, यह साबित करनेवाला साहित्य तैयार करके प्रसारित किया जाये. हिन्दुत्व और ब्राह्मण विरोधी दलित साहित्य, आम्बेडकरवादी साहित्य और साम्यवादी साहित्य नष्ट करने की कोशिश की जाये. स्वयं लिखा गया आम्बेडकरी विचार और साहित्य ही गैर सवर्णों और पिछड़े लोगों में प्रसारित जाये.
- तीव्र गति से मुसलमान, बौद्ध विरोधी साहित्य प्रकाशित किया जाये. सम्राट अशोक बौद्ध नहीं था, यह साबित करनेवाला साहित्य तैयार करके प्रसारित किया जाये.
- हिन्दुत्व और ब्राह्मण विरोधी दलित साहित्य, आम्बेडकरवादी साहित्य और साम्यवादी साहित्य नष्ट करने की कोशिश की जाये. स्वयं लिखा गया आम्बेडकरी विचार और साहित्य ही गैर सवर्णों और पिछड़े लोगों में प्रसारित किया जाये.
- अनुसूचित जाति, जनजाति का बैकलॉग पूरा न होने दिया जाये.
- राम के स्टीकर, कैलेण्डर, पम्पलेट बड़े पैमाने पर तैयार करके वितरित किए जायें.
- गैर सवर्णों और पिछड़ी जातियों में अंधाविश्वास, अंधश्रद्धा फैलाने की ओर विशेष धयान दें. इस कार्य के लिए पहले की ही तरह बाबाओं, साधुओं की मदद ली जाये.
- जैन, बौद्ध सिक्खों को हिन्दू बनाने का कार्य पूर्ववत् चालू रखा जाये. जैन मंदिरों में ज्यादा से ज्यादा रामभक्ति – श्रीराम पूजा करवाया जाए और प्रगति की जानकारी मुख्यालय को दी जाए.
- कम्युनिस्ट और गैर सवर्णों (शूद्रों) पर पूर्ववत हमले जारी रखें जाए.
- मंडल विरोधी आन्दोलन शुरू रहने दिया जाए.
- गैर सवर्णों, पिछड़ों की विभिन्न जातियों को परस्पर भड़काकर लड़ाने के लिए कूटनीति से काम लिया जाये.
- आम्बेडकर की प्रतिमाओं की तोड़फोड जारी रखी जाए.
- चाणक्य नीति को अमल में लाना जारी रखें.
माननीय विधायक रविन्द्र सिंह ने उक्त गुप्त दस्तावेज के खिलाफ संज्ञान लेने के लिए माननीय हाईकोर्ट पटना में एक जनहित याचिका वाद संख्या-8205/2015 को दायर किया. माननीय न्यायालय ने इस याचिका को बिना विमर्श दिनांक 6 दिसम्बर, 2016 को खारिज कर दिया. पुनः आवेदनकर्ता ने हाईकोर्ट के सभी दस्तावेजों के साथ सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली में Special Leave Petition No. – 3974/2017 दिनांक 23 जनवरी, 2017 को संविधान के धारा 136 के तहत रविन्द्र सिंह बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया, कैबिनेट सचिव, होम सचिव, भारत सरकार, मुख्य सचिव बिहार, प्रधान सचिव (गृह विभाग) बिहार, सरसंघ चालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मोहन भागवत नागपुर और प्रधान संपादक ‘न्यायचक्र’ वाद दायर किया गया. तीन घंटे तक माननीय न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने बहस सुन कर उक्त वाद को 21 वर्ष पुराना कहकर आवेदनकर्ता पर न्यायालय का समय बर्बाद करने का आरोप लगाकर दस लाख रुपये का जुर्माना घोषित कर दिया.
यहां विचारणीय तथ्य यह है कि जब यह वाद जब माननीय सुप्रीम कोर्ट में संज्ञान के योग्य नहीं था, तो हाईकोर्ट पटना की भांति इसे खारिज कर देना चाहिए था, परन्तु माननीय न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने मामला खारिज करने के बदले दस लाख का जुर्माना घोषित कर संविधान, मानवता और लोकतंत्र की हत्या कर दी है और वह हत्या वहां हुई है जहां से पूरा देश न्याय की आशा रखता है. यह फैसला जानबूझकर इसलिए किया गया है कि ऐसे संवेदनशील व मानवद्रोही मामले को पुनः भविष्य में दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक समुदायों के द्वारा उठाने का दुस्साहस न किया जा सके. यह एक तरह से माननीय न्यायालय सुप्रीम कोर्ट द्वारा तानाशाहीपूर्ण फैसला है.
वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के बाद देश की बहुसंख्यक एवं न्याय पसंद जनता का सर्वोच्च न्यायालय जनता का न्यायालय होता है इसलिए इस लोकप्रिय शोषित (साप्ताहिक) पत्रिका के माध्यम से जनता की सबसे बड़ी अदालत (सुपर सुप्रीम कोर्ट) में उचित न्यायार्थ हेतु प्रकाशित किया गया है और उनसे पुरजोर अनुरोध किया जा रहा है कि माननीय विधायक रविन्द्र सिंह पर दस लाख जुर्माने के सच का इजहार करेंगे.
- रघुनी राम शास्त्री, सम्पादक ‘शोषित’ टेबलॉयड
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