Home कविताएं यह कैसा राष्ट्रवाद

यह कैसा राष्ट्रवाद

0 second read
0
0
485

यह कैसा राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद का यह कौन-सा नुस्खा है,
जो हर वह काम करता है,
जिससे राष्ट्र टूटता है,
छीजता है,
और बिखरने की ओर बढ़ने लगता है.

यह कैसा राष्ट्रवाद है,
जो अपने ही नागरिकों के बीच,
धर्म के झगड़े फैलाता है,
जाति भेद के विष बोता है,
क्षेत्र के आधार पर,
राजनीतिक फैसले कराता है.

इतिहास के उन सारे पन्नो को,
जला देने की कोशिश करता है,
जिसने समाज को एक करने,
उन्हें समरसता की राह दिखाने,
और स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मार्ग पर,
कुछ अघटित घटे हुए को भी भुला कर,
आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.

यह कैसा राष्ट्रवाद है,
जो भाषणों में तो दिखता है,
शोर और तालियों मे गूंजता है,
साहस के बादलों का एक मिथ्या वितान,
तान बैठता है,
पर शत्रु को घुस कर बैठे हुए,
देख कर भी,
उसे स्वीकारते हुए,
अचानक डरने लगता है,
बगलें झांकने लगता है.

जब राष्ट्रवाद की ज्योति प्रज्वलित हो रही थी,
जब देश,
साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद से,
मुक्त होने की उम्मीद लिये
तन कर खड़ा हो रहा था,

तब उनकी जुबां पर
न तो राष्ट्रवाद के गान थे,
न वंदे मातरम का घोष था,
मुर्दों में भी उत्साह भर देने वाला,
आज़ाद हिंद फौज का प्रयाण गीत,
कदम कदम बढ़ाए जा, भी,
उन्हें प्रेरित न कर सका था.

न भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, का,
इंकलाब जिंदाबाद,
न बिस्मिल का सरफरोशी की तमन्ना,
न आज़ाद की अदम्य जिजीविषा,
न गांधी की पुकार, करो या मरो,
न सुभाष का तनी और उठी मुट्ठी भरा उद्घोष,
दिल्ली चलो,
न इकबाल का वह कालजयी, कौमी तराना,
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा,
न पार्षद जी का प्यारा झंडा गान,
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
न सुब्रमण्यम भारती के तमिल गीत,
कुछ भी तो नहीं प्रेरित कर रहे थे,
उन मायावी और विभाजनकारी,
राष्ट्रवाद के दुंदुभिवादकों को ?

यह सवाल भुलाया नहीं जा सकता है,
औऱ न इसे भूला जाना चाहिए.
यह इतिहास का वह पन्ना है,
जिसे याद रखा जाना चाहिए,
और याद रखा भी जाएगा.

सदैव, पीढ़ी दर पीढ़ी याद रखा जाना चाहिए,
जब भारत ग़ुलामी के खिलाफ,
सब कुछ दांव पर लगा,
सड़को, खेतों, खलिहानों, से लेकर,
पहाड़ों से सागर तट तक,
सुंदरवन के दलदली इलाक़ो से लेकर,
कोहिमा और इम्फाल के जंगलों तक,
आज़ाद होने की कसमसाहट के साथ
एक निर्णायक जंग लड़ रहा था,

तब कुछ लोग,
उसी ब्रिटिश हुक़ूमत के बगलगीर बने थे,
जिनके कुकर्मों से,
बंगाल की शस्य श्यामला धरती ने,
अपने इतिहास का दारुण अकाल भुगता था.

जब भारत एक नई उमंग के साथ,
साम्राज्यवाद, के खिलाफ,
एक ऐसी जंग लड़ रहा था,
जिसका न कोई नेता था, न कोई घोषणापत्र,
बस था तो अंतिम लक्ष्य,
स्वाधीनता, स्वाधीनता और केवल स्वाधीनता,
तब कुछ इस महान लक्ष्य के विपरीत,
धर्मांधता और कट्टरपंथी समूहों के साथ,
धर्म पर आधारित,
राष्ट्रवाद की, कूट व्याख्या कर रहे थे !

आखिर, उनके राष्ट्रवाद का नुस्खा क्या है ,
कभी वक़्त मिले तो, उनसे पूछना साथियों !!

  • विजय शंकर सिंह

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…