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सेना, पुलिस के बल पर आम जनता को कुचलने की निःशब्द और क्रूर कोशिश का नाम है – कोरोना महामारी

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सेना, पुलिस के बल पर आम जनता को कुचलने की निःशब्द और क्रूर कोशिश का नाम है - कोरोना महामारी

बदहवास भागता हुआ मेरा एक मित्र आया और सर पकड़कर बैठ गया. मैंने पूछा क्या हुआ ? उसने बताया ‘मैं नामर्द हो गया हूं. अब जीने से क्या फायदा ? आत्महत्या कर लूंगा.’ मैंने हंसते हुए पूछा ‘आखिर हुआ क्या ? और नामर्द बन गये यह किसने बताया है आपको ?’ उसने जो बताया वह महत्वपूर्ण है.

उसने बताया, ‘आज स्टेशन पर गया था और मदारी वहां खेल दिखा रहा था. मदारी ने बताया कि जब आप स्नान करने जाते हैं और सर पर मग से पानी डालते हैं और अगर उसी समय आपको पेशाब लग जाती है, तो समझ लीजिए कि आप नामर्द हो चुके हैं और आपकी जिन्दगी खत्म हो गई है. इसलिए आपको अगर नामर्द होने से बचना है तो मेरा यह ताबीज पहन लीजिए. केवल सौ रूपया कीमत है इसकी.’

जीवविज्ञान का छात्र होने के नाते मैं जानता था कि सर पर पानी डालते ही पेशाब लगने की बात एक स्वभाविक जीवविज्ञान क्रिया है और इसका किसी के मर्द होने या नामर्द होने की कोई पहचान नहीं होती है. मैंने अपने मित्र को समझाया और फिर वह संतुष्ट होकर वहां से चला गया. उसने आत्महत्या नहीं की लेकिन फिर कभी विवाह ही नहीं किया.

ठीक यही चीज आज अन्तराष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है कोरोना का नाम लेकर. दुनिया की महाशक्ति बनने का दंभ भरने वाले चीन-अमेरिका जैसे अन्तराष्ट्रीय साम्राज्यवादी देशों ने एक मदारी की भांति दुनिया की जनता को डरा रखा है. इस काम में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी अपनी भूमिका निभा रहा है.

हम जानते हैं कि आर्थिक मंदी से जूझ रहे साम्राज्यवादी देशों ने बाजार की छीना-झपटी के लिए थोड़ी सी अवधि में ही दो-दो विश्वयुद्धों में दुनिया को झोंक दिया और करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतार डाला है. चूंकि हर साम्राज्यवादी युद्धों ने दुनिया के पटल पर सोवियत संघ और चीनी गणराज्य जैसे दर्जनों देशों में समाजवादी व्यवस्था कायम करा दिया है, जिसे साम्राज्यवादी मुल्कों ने बड़ी मुश्किल से खत्म किया है. इससे सबक लेते हुए साम्राज्यवादी मुल्कों ने अब नये विश्वयुद्ध की कल्पना तो छोड़ दी, लेकिन बाजार की छीना-झपटी आज भी जारी है. इसलिए अब बाजार पर कब्जा करने के लिए महामारियों को सहारा लिया जा रहा है. इन महामारियों की योजना बनाने में इन साम्राज्यवादी मुल्कों को सैकड़ों वर्ष का समय लगा और सैकड़ों प्रयोग के बाद अक्षरशः उन मदारियों की भांति ही एक समान्य बीमारी का सहारा लिया, जो कि दुनिया में आम है, मसलन, सर्दी-जुकाम और खांसी.

सर्दी-जुकाम और खांसी जैसे सामान्य फ्लू जैसी बीमारियों का सहारा लेकर दुनिया भर में महामारी का आतंक फैला दिया. इस आतंक को फैलाने में मीडिया का सहारा लिया गया जो डब्ल्यूएचओ की तरह ही एक औजार की भांति अपनी भूमिका निभाने लगा और लोगों को डराने लगा. इसके लिए पहले तो सैलिब्रिटी का इस्तेमाल किया गया. भारत जैसे मूर्खों के देश में कनिका कपूर जैसे सिंगर का सहारा लिया गया. बाद में आतंक जब कम होने लगा तब अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर जैसे लुच्चों का सहारा लिया गया.

जब कोई इस कोरोना महामारी पर सवाल उठाने लगा तो उसके खिलाफ अन्तराष्ट्रीय स्तर पर महौल बनाया जाने लगा. मसलन, एक देश प्रधान ने जब भेड़, कद्दू के बीच आदि को टेस्टिंग में डाला तो वहां भी कोरोना वायरस मिला. तब डब्ल्यूएचओ और मीडिया ने इस आतंक को और भयावह बनाने के लिए कहने लगा कि कोरोना वायरस हर जगह है. शौचालय, गंदी नाली यहां तक कि हवा में भी कोरोना वायरस फैल गया है. यानी सांस लेने से भी आप कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं.

इस महामारी के शुरूआत में बताया गया कि इस महामारी (कोरोना वायरस) का कोई ईलाज नहीं है. आप संक्रमित होते ही खुद के साथ ही अपने समूचे परिवार को संक्रमित कर डालते हैं, और वे सभी मर जाते हैं. मोहल्ले में संक्रमित होने की खबर फैलते ही मोहल्ले को सील किया जाने लगता है, लोगों की आवाजाही बंद की जाती है, और वहां के रहने वाले लोगों को लगने लगता है कि सब अब अंतिम दिन गिन रहे हैं. जबरदस्ती संक्रमितों को उठाकर आइसोलेशन सेंटर के नाम पर जेल जैसी खौफनाक जगहों पर कैद कर दिया जाता है, जहां न तो खाना दिया जाता है और न ही पानी. फलतः लोग भूख-प्यास से तड़प-तड़प कर मरने लगे. हंगामा बढ़ने पर अब होम क्वारंटाईन का नया फार्मूला लाया गया.

फिर आश्चर्यजनक तौर पर लोग कोरोना जैसे बीमारी से ठीक भी होने लगे. लोगों के मरने के बजाय जीने वालों की संख्या बढ़ने लगी और लागों के मन से कोरोना का आतंक कम होने लगा तब कोरोना के नाम पर अब दुबारा नेताओं, मंत्रियों यहां तक कि भाजपा के लोगों को भी कोरोना से संक्रमित होने की खबरें अखबारों-टीवी पर फैलाने लगा. अब तो देश के सत्ता शीर्ष पर बैठे शिवराज सिंह चैहान और अमित शाह जैसे आदमखोर भी कारोना का नाम लेकर लोगों को डराने और सहानुभूति हासिल करने का करतब कर रहा है.

कोरोना के नाम पर हजारों की तादाद में लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. हजारों लोग भूख-प्यास से तड़पा-तड़पा कर मार डाला गया. अस्पतालों में किसी भी बीमारियों का ईलाज नहीं हो रहा है, भले ही वह कोरोना से संक्रमित हो या न हो. मेरे ऐसे अनेक परिचित हैं जो कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रसित होने के कारण ईलाज के वगैर मर गये क्योंकि यातायात की व्यवस्था बंद कर दी गई है.

दिल्ली जो कोरोना जैसी महामारियों को गढ़ माना जाता था, और आंकड़े दे-देकर हजारों लोगों की मौतों की अखबारों और टीवी में नुमाइशें की जाती थी, इंडियन एक्सप्रेस अपनी एक रिपोर्ट में बताता है कि दिल्ली में वर्ष 2019 के अप्रैल, मई और जून के इन तीन महीनों में हुई मौतों की संख्या 27,152 थी.

वहीं, दिल्ली में ही वर्ष 2020 के अप्रैल, मई और जून के तीन महीनों में हुई कुल मौतों की संख्या 21,344 है. इस आंकड़े में कोरोना के नाम पर हुई 3,571 मौतें की संख्या भी शामिल है. यानी पिछले वर्ष की तुलना में 5,800 मौतें कम हुई. ये आंकड़े बहुत कुछ कहती है. अगर कोरोना महामारियों से वास्तव में मौतें हुई होती तो यह संख्या 5,800 कम नहीं हुई होती बल्कि और ज्यादा हुई होती. अकेला यही एक आंकड़ा है जिससे कोरोना जैसी महामारी को समझा जा सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस जैसी अखबार ने केवल दिल्ली के ही आंकड़ों का इस्तेमाल किया है. देश में कोरोना के महामारी को समझने के लिए देश के हर हिस्सों में हुई मौतों का पिछले वर्षों से तुलना किया जाना चाहिए ताकि कोरोना के नाम पर की जा रही अन्तराष्ट्रीय षड्यंत्र को समझा जा सकता है. वरना लाखों और करोड़ों के फर्जी के आंकड़े से लोगों को डराने का कारोबार यूं ही चलता रहेगा. तथ्यहीन आंकड़ें केवल भय पैदा करता है, जो अन्तराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है.

एक न्यूज वेबसाइट सोनीपत न्यूज अपने एक न्यूज में बताता है कि महाराष्ट्र के भायंदर के गोराई में पिछले दिनों कोई केस नहीं था. एक व्यक्ति को हल्का बुखार, सर्दी-खांसी हुई तो चेक करवाने गया उसे जबरदस्ती भर्ती करके रिपोर्ट कोरोना पाॅजिटिव बताई फिर. फिर अचानक उसकी मौत हो जाती है और पूरे शरीर को पैक करके जलाने की तैयारी की जाती है, मगर परिवार वालों के विरोध करने पर जब बाॅडी को खोला गया तो उसके शरीर के सारे अंग गायब मिलते हैं.

संजय मेहता अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखते हैं :

बर्लिन की सड़कें खचाखच भर गयी हैं. कोरोना के खेल का पर्दाफाश करने के लिए हज़ारों – लाखों लोग सड़कों पर उतर आए हैं. कोई मास्क, कोई Social Distancing नहीं. धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैल चुका है.

कोरोना के नाम पर जो पाबंदियां लगायी गयी हैं सभी ने उसे हटाने की मांग की है. जीवन को सामान्य बनाने की मांग दुनिया में जोर-शोर से उठायी जा रही है. लोगों ने ‘New Normal’  को स्वीकार करने से मना कर दिया है.

135 करोड़ आबादी वाले हमारे देश में अब तक बड़े स्तर पर लोग चुप्पी साधे हुए हैं. ये चुप्पी आपको पंगु बना देगी. अब भी बोलना शुरू कीजिए. मेरा अनुरोध है हर एक आदमी कोरोना साजिश के खिलाफ आवाज बुलंद कीजिये. यह सीधे तौर पर आपकी जिंदगी से जुड़ा मसला है.

संजय मेहता अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखते हैं :

कल से बहुत गहरे शोक में हूं. 29 मार्च को जब हेल्पलाइन शुरू किया उस वक्त शुभम ही थे, जिन्होंने कोलकाता में गरीब मजदूरों तक राशन पहुंचाया. वे कोलकाता में लॉकडाउन के दौरान लगातार मजदूरों को मदद कर रहे थे. 24 साल के शुभम बिल्कुल स्वस्थ और तंदुरुस्त थे. सब कुछ ठीक था. कुछ दिन पहले बात हुई थी. एक दिन शुभम ने कोविड-19 टेस्ट करा लिया. उसे पॉजिटिव बता दिया गया. उसे हॉस्पिटल में एडमिट कर दिया गया. अस्पताल में भर्ती होते ही धीरे-धीरे तबियत खराब होने लगी.

शुभम को वेंटिलेटर तक पहुंचा दिया गया. शुभम की बॉडी पर अस्पताल ने एक्सपेरिमेन्ट कर दिया. एक अच्छा हंसता, खेलता, मुस्कुराता नौजवान लड़का हमलोगों को छोड़कर दुनिया से रुखसत हो गया. कल मैंने अपना एक अच्छा साथी खो दिया. इस केस में सबसे बड़ी गलती ये हुई कि शुभम के परिजनों ने अस्पताल पर विश्वास किया और वे न सिर्फ बिल बना कर लूटते रहे बल्कि जान भी ले लिए.

मेरे साथियों मैं आप सबों से हाथ जोड़कर विनती कर रहा हूं. कोई भी कोविड-19 टेस्ट न कराएं. अगर गलती से टेस्ट करा लिए हैं तो अस्पतालों में एडमिट न हों. निजी अस्पतालों पर तो बिल्कुल भरोसा न करें. कोविड-19 का कोई भी मरीज आज तक घर में नहीं मरा है. बहुत बड़ा खेल चल रहा है. मेरे शुभम को अस्पताल ने मार दिया और उसे कोविड-19 बता दिया.

 

कोरोना एक ऐसी दिमागी महामारी बना दी गई है कि जिसका जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है. इस दिमागी महामारी के आड़ में भारत सरकार नाम की यह संस्था देश की सम्पत्ति जोर-शोर से बेच रही है. करोड़ों लोगों को भूख और बीमारी से मारने की तैयारी है, और विरोध कर रहे विरोधियों, जिसमें देश के बुद्धिजीवियों, मानवाधिकारवादियों, पत्रकारों, छात्रों, देश की आम जनता को सेना, पुलिस के बल पर कुचलने की निःशब्द और क्रूर कोशिश का नाम है – कोरोना महामारी. जितनी जल्दी इस दिमागी महामारी से बाहर निकल जाया जायें, वही बेहतर है, वरना, निःशब्द आती मौतें …

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ROHIT SHARMA

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