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तुम्हारा डर, हमारी जीत

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ऐ शोषक !
तुम्हारे लिए आसान होगा
हमे कैद कर देना
पर हमें इससे डर नही लगता
बल्कि आती है
तुम्हारी इस धूर्तता पर हँसी।
कितना डरते हो तुम हमसे
कि बेचैन रहते हो हमे कैद करने के लिए,
पर नही जानते तुम
किसी सलाखों में नही कर सकते कैद हमें
न कभी मार पाओगे हमे
अगर मार पाते
तो कब का ख़त्म हो गया होता
नाम भगत सिंह का.
अब तो समझ जाओ ऐ शोषक
हम बस एक नाम नहीं है
एक विचार है,
कर लो जहाँ कैद करना है हमे
और हम हँसते रहेंगे तुम्हारी धूर्तता पर.

पर हमारे लक्ष्य से बिलकुल
अनजान भी नही हो तुम
तुम जानते हो हमारी मांगे,
तुम जानते हो हमारे सपने,
सपने एक ऐसी व्यवस्था का
जिसमे सबको न्याय मिले, मानवीय जीवन मिले
सपने जिसमे सबके लिए बराबरी की चाहत है
सपने जो सबके लिए आज़ादी चाहता है.

डरते हो तुम इन सपनो से
तुम डरते हो
कि कहीं तुम्हारी द्वारा की जाने वाली
मेहनत की लूट का अंत न आ जाये।
तुम डरते हो
कि जिस भेड़िये के खाल में छुप कर
डरा रहे हो इंसानो को
वे तुम्हारे खिलाफ विद्रोह में मशाल न जला दे।
तुम डरते हो
कि अपने खून-पसीने से
इस दुनिया को बसाये रखने वाले
अपने हक़ और हिस्से के लिए विद्रोह न कर डाले.

तुम डरो !
तुम्हे डरना चाहिए ऐ शोषक!
क्योंकि तुम्हारा डर ही
हमारी पहली जीत है.

जान लो ऐ शोषक!
छीन लिए जायेंगे
तुम्हारे आराम कुर्सियां,
तुम्हारे वातानुकूलित कमरे,
तुम्हारे हथियार
जिनका इस्तेमाल करते हो तुम
लोगो को कैद करने के लिए.
उन्हीं से हम लड़ेंगे
अपने शोषण के खिलाफ.

हम लड़ते आये है और लड़ते रहेंगे
क्योंकि लड़ाई से फर्क पड़ता है
हाथ पर हाथ रख कर बैठने से
नही ख़तम होगा ये शोषण।
हम लड़ते रहेंगे
समतायुक्त जीवन जीने के लिए।
हम लड़ते रहेंगे
एक शोषणमुक्त समाज बनाने के लिए।
सुन लो ऐ शोषक,
हम लड़ेंगे, और एक दिन जीत जायेंगे.

  • वंदना

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ROHIT SHARMA

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