Home ब्लॉग आपदा में अवसर : पटना विद्युत शवदाहगृह में अंतिम संस्कार के लिए 50 हजार की वसूली

आपदा में अवसर : पटना विद्युत शवदाहगृह में अंतिम संस्कार के लिए 50 हजार की वसूली

4 second read
0
0
1,299

आपदा में अवसर : पटना विद्युत शवदाहगृह में अंतिम संस्कार के लिए 50 हजार की वसूली

केन्द्र की मोदी सरकार के आह्वान ‘आपदा में अवसर’ की तलाश हर जगह हो रही है. क्या अस्पताल और क्या श्मशान भूमि. मौत के बाद भी लोगों के खून का आखिरी कतरा तक निचोड़ने पर उतारु यह शासन व्यवस्था ‘अवसर’ के नित नये कीर्तिमान कायम कर रही है.

जन्मेय जय ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पटना स्थित बांस घाट के श्मशान भूमि पर मृतकों के परिजनों से प्रति शव 50 हजार की वसूली के खुली लूट की बर्बरता का खेल उजागर किये हैं, जिसके बारे में आमतौर पर लोगों की जानकारी कम ही होती है या नहीं के बराबर होती है. वे लिखते हैं :

वो अपने पुत्र की लाश लेकर खड़ी थी. जगह था पटना का बांस घाट जी बिल्कुल आपने ठीक सोचा ! यह वही बांस घाट है जहांं लाशों का विद्युत शवदाह गृह में परिजन अंतिम संस्कार के लिए आते हैं. कोरोना से मृत्यु के बाद अपने पुत्र का शव लेकर वह हॉस्पिटल से पहुंंची थी.

आंखों से आंसुओं की धारा बह रही है. वह बेबस थी. लाचार थी. कोई रास्ता नहीं था. वह इस शव को लेकर गांंव भी नहीं जा सकती है क्योंकि इसके लिये एंबुलेंस की मनमानी फ़ी और बहुत-सी प्रक्रियाओं से गुजरने के साथ परिजनों के भी कोरोना से संक्रमित होने का खतरा था. इसी कारण वह यहांं पहुंंची.

उस महिला को यहांं आए शाम हो गई थी. जब उसने कर्मचारियों से अंतिम संस्कार की बात की तो शवदाह खराब होने के कारण बंद होने का जवाब मिला लेकिन पास में ही खड़े एक अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘मैडम बात कीजिये न ! कुछ ले देकर हो जाता है.’ वह गिड़गिड़ा रही थी क्योंकि उससे 50,000 रूपये शव जलाने के लिये मांंग की जा रही थी. अंत में मामला 30,000 के आस-पास पर तय हुआ.

यह कहानी है उस सुशासन के राजधानी की जहांं साहब बैठते हैं ! यह कहानी है उस सीएम की जहांं सब कुछ ठीक-ठाक है. यह कहानी है उस राज्य की जहांं डबल इंजन की सरकार है.

पटना के बांस घाट विद्युत शवदाह गृह में कोरोना संक्रमित लाशों को जलाने के लिए 50,000 रूपये तक लिया जा रहा है, और यह सब प्रशासनिक मिलीभगत से हो रही है. विश्वास नहीं है तो शाम 05 बजे के बाद जाकर देखिए ! अचंभित एवं अविश्वसनीय करनेवाला नजारा ! सब कुछ समझ में आ जाएगा. आप खुद कहेंगे की इतनी भी घटिया व्यवस्था हो सकती है क्या ?

बांस घाट के कर्मचारी पहले तो कोरोना संक्रमित लाशों को जलाने के लिए आनाकानी करते हैं. अगर ये तैयार भी हो गए तो आपको मोटी रकम देना होगा. ये कर्मचारी शाम 05 बजे विद्युत शवदाह गृह को बंद कर देते हैं. अगर आप पूछेंगे तो जवाब मिलेगा कि खराब है. यह रणनीति है इनकी.

लेकिन, यह तमाचा है नीतीश कुमार के 15 वर्षों के शासनकाल की व्यवस्था पर, जिन्होंने बिहार में केवल मीडिया मैनेजमेंट से विकास दर को भारत के सभी राज्यों से उपर दिखाकर ढोल पीटा ! कहां गया वो आपका सर्वोच्च विकास दर ? सवाल पूछना राज्य के एक जिम्मेवार नागरिक के तौर पर जरूरी है, लाजिमी है क्योंकि इसका शिकार हम आप या कोई भी हो सकता है.

सवाल हमेशा सत्ता पक्ष से ही पूछा जाता है. हमने उन्हें अपनी बहुमूल्य मत देकर जिम्मेवारियों को सौपा है ! सवाल आप भी पूछिए. कब तक चुप रहेंगे ?

सवाल पूछिये, वरना यह शासक सुशासन और आपदा में अवसर की तलाश में धीरे धीरे समूचे समाज को मौत के मूंह में धकेल देगा.

Read Also –

 

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…