अंग्रेजी में कहावत है, ‘टू फीस इन ट्रबुल्ड वाटर.’ मोदी जी ने इसी को कहा है, ‘आपदा में अवसर.’ और सिर्फ कहा ही नहीं, इसे चरितार्थ भी करके दिखला दिया. कुछ नमूने इस प्रकार हैं –
- सबसे पहले तो भारतीय गणतंत्र की समस्त संवैधानिक और असंवैधानिक शक्तियों को अपने हाथों में केन्द्रित कर लिया. क्या कोई बता सकता है कि आज की तारीख में भारत में मोदी को छोड़कर और किसी के पास कोई शक्ति है ?
- पीएम केयर्स फंड का सार्वजनिक एनजीओ बनाया, लेकिन है वह पूरी तरह से व्यक्तिगत, जिसमें लोगों, कंपनियों, संगठनों, अनेकों देशी-विदेशी पूंजीपतियों ने चंदे के रूप में भरपूर योगदान दिया. लेकिन उस राशि का सदुपयोग या दुरुपयोग के बारे में कोई सूचना किसी को भी नहीं बतलाई जाएगी, यानि पीएम केयर्स फंड मतलब मोदी फंड.
- इस कोरोना संकटकाल में संविधान पूर्णतः निरस्त है. कोई भी व्यक्ति अपने संवैधानिक अधिकारों का कोई दावा नहीं कर सकता.
- सरकार अपने वास्तविक या काल्पनिक विरोधियों को बिना किसी गुनाह के भी जेल में डाल सकती है, या पुलिस की गोली से मरवा भी सकती है. इसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी.
- देश के मजदूरों के सारे अधिकार समाप्त कर दिए गए. नौकरी की गारंटी, काम के घंटे, मनोरंजन, स्वास्थ्य सेवा, पीएफ, यूनियन बनाना और हड़ताल एवं बिना किसी सूचना के काम से हटा देना भी इनमें शामिल हैं. क्या इन अधिकारों से वंचित मजदूरों की स्थिति गुलामों के समकक्ष नहीं हो गई है ?
- सरकार की जनविरोधी नीतियों, निर्णयों और कार्ययोजनाओं के खिलाफ अब कोई भी व्यक्ति अपनी राय न तो व्यक्त कर सकता है, और न ही सरकार की आलोचना कर सकता है. जनसंघर्ष और जनांदोलन या हड़ताल और धरना तो बहुत दूर की बात हो गई.
- पूंजीपतियों को कोरोना संकट से हुए घाटे की भरपाई एवं उद्योगों के बंद होने से होनेवाली क्षतिपूर्ति के लिए कुल मिलाकर 20 लाख करोड़ रुपए की सहायता राशि दी गई, लेकिन बहुसंख्यक मेहनतकश जनता के लिए महज 60 हजार करोड़ रुपए ही दिए गए, जो ऊंट के मुंह से जीरे के बराबर है.
- कोरोना से निजात दिलाने के लिए भले ही सरकार ने कुछ नहीं किया हो, पर मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार को अपदस्थ करने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त के लिए करोड़ों-करोड़ खर्च कर किए गए, और अंततः वहां भाजपा की सरकार बनाने में कामयाबी मिली.
- धनाढ्य लोगों को विदेशों से आने के लिए मुफ्त हवाई जहाज का प्रबंध किया गया, और उन्हें मंहगे होटलों में ठहराकर बिना किसी जांच के घर भेजवा दिया गया. दूसरी ओर, करोड़ों मजदूरों को लाकडाउन की अवधि में मरने के लिए छोड़ दिया गया. घर आने के लिए न तो उन्हें किसी तरह की आर्थिक सहायता ही दी गई, और न ही मुफ्त रेलगाड़ी का ही इंतजाम किया गया. करोड़ों मजदूर पैदल अपने परिवार, बच्चों और साजो-सामान के साथ पैदल ही जलती धूप में कोलतार की सड़कों पर घर जाने के लिए निकल पड़े, जिनमें से सैंकड़ों लोगों की मौत हो गई. रास्ते में उन्हें कोरोना वाहक के रूप में प्रक्षेपित किया गया, और गुंडों और पुलिस से पिटवाया गया.
- कोरोनावायरस से निबटने के लिए बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम के लिए न तो किसी जांच की व्यवस्था की गई, और न ही दवाई या अन्य मेडिकल सुविधाओं की. यहां तक कि टेस्टिंग लैब, टेस्टिंग किट, सेनेटाइजर, मास्क की भी कालाबाजारी कर मनमाने दाम पर बेचा गया.
- लोगों को घरों में बंद कर उन्हें डिटेंशन सेंटरों की तरह रहने को मजबूर किया गया.
- जांच के लिए प्राइवेट अस्पतालों को प्रति मरीज 5 हजार रुपए लेने की छुट दी गई, जबकि दूसरे देशों में यही जांच मुफ्त में कराई गई.
- कोरोना संकट को दूर करने में अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए चीन के साथ सीमा-विवाद को हद से ज्यादा प्रचारित-प्रसारित किया गया, और जिसकी आड़ में अमेरिका और रूस से 60 हजार करोड़ रुपए के हथियार खरीदे गए, जिसमें कमीशन के रूप में दस प्रतिशत के हिसाब से भी करीब 6 हजार करोड़ रुपए की कमाई हुई.
- कोविड-19 के नाम पर सारी संवैधानिक संस्थाओं को घुटने टेकने पर मजबूर किया गया, और न्यायपालिका तो अपनी अस्मिता और अस्तित्व बचाने में ही कराह रही है. कानून-व्यवस्था पुलिस और गुंडों के हवाले कर दिया गया है. विकास दूबे का एनकाउंटर तो महज एक उदाहरण है.
- इसी संकटकाल की आड़ में करीब 150 महत्वपूर्ण रेलगाड़ियों को प्राइवेट कंपनियों द्वारा चलाने का सौदा किया गया.
- चीन के साथ सीमा-विवाद के बावजूद भी चीन के साथ कई महत्वपूर्ण व्यापारिक और औद्योगिक समझौते हुए, जिनमें से सबसे अधिक निवेश गुजरात में किया गया है. यहां तक कि बैंक आफ चाइना को भारत में अपनी शाखाएं खोलने की अनुज्ञप्ति प्राप्त हो गई.
- हालिया समाचार यह है कि राजस्थान में भी भाजपा की सरकार बनाने की कवायद चल रही है, और देर-सवेर पैसा और पाप के बल पर वहां भी भाजपा की सरकार बन ही जाएगी.
अब आप ही बताइए कि इससे बेहतर अवसर मोदी जी को और कभी मिलता क्या ? न कोई हरहर, और न कोई हरपट. आमजन से लेकर विरोधी पार्टियां तक सभी नजरबंद हैं, और सरकार अपनी मनमर्जी से जो चाह रही है, करने के लिए स्वतंत्र है. न कोई बोलने वाला, और न ही कोई टोकने वाला. ऐसा अवसर फिर कहां मिलेगा ?
- राम अयोध्या सिंह
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