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अब नेपाल से बिगड़ता सांस्कृतिक संबंध भारत के लिए घातक

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अब नेपाल से बिगड़ता सांस्कृतिक संबंध भारत के लिए घातक

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 साल तक का बहुमूल्य वक्त और हजारों करोड़ रुपए पृथ्वी का परिक्रमा करने में लगाये, उसका परिणाम इस रुप में सामने आया कि भारत के तमाम पड़ोसी देशों के साथ न केवल रिश्ते ही बिगड़ गये, वरन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश मजाक का पर्याय बन गया. भारत को दुनिया भर में मजाक का पात्र बनाने में मोदी सरकार के साथ साथ भारतीय गिद्ध मीडिया ने भरपूर योगदान किया.

पाकिस्तान, चीन के साथ संबंध तो पहले से ही बिगड़े हुए थे, अब श्रीलंका, म्यामांर, ईरान, बांगलादेश समेत सदियों से साथ रह रहे नेपाल तक से भारत का संबंध न केवल बिगड़ ही गया है बल्कि युद्ध की हालात बन गये हैं. वर्तमान में नेपाल के प्रधानमंत्री तो एक कदम और आगे बढ़कर भारत से सांस्कृतिक संबंध तक खत्म करने के संकेत दे दिये हैं, जब उन्होंने कहा असली अयोध्या और राम नेपाल में है.

नेपाल के प्रधानमंत्री ओली के इस दावे पर ज्योतिष विशारद पं. किशन गोलछा जैन बताते हैं कि :

‘सच यही है कि भारत का राम से कोई संबंध नहीं और तुलसीदास से पहले तक भारत में राम की कोई मान्यता ही नहीं थी. अर्थात 16वीं सदी तक भारतवासी राम के नाम को भी ठीक से जानते तक नहीं थे. लेकिन 1631 में तुलसीदास के रामचरितमानस लिखने के बाद राम का प्रचार करने के लिये तुलसीदास द्वारा और भी कई पुस्तकें राम के संदर्भ में लिखी गयी. इसीलिये जब कोर्ट में दायर एक याचिका के जरिये ये पूछा गया कि राम का सत्यापन करने के लिये क्या भारत में पुरातात्विक सबूत है ? तो भारत सरकार ने कोर्ट में भी ये लिखित में दिया था कि ‘राम वर्तमान भारत के करोडों लोगों की आस्था का केंद्र है… !

वहीं, अतुल सती जोशीमठ नेपाल के प्रधानमंत्री के बयान पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इस बयान में नेपाल के साथ भारत की राजनीतिक तो दूर अब सांस्कृतिक एकता में दरार पड़ता हुआ देख रहे हैं. उनके अनुसार –

नेपाल का भारत से विवाद शुरू में मात्र भारतीय विस्तारवाद की राजनैतिक लाइन पर ही थी, जो कि नेपाल में वर्षों से प्रमुख मुद्दा रहा है. सीमा विवाद भी बहुत समय से है और उस पर कोई बात न होने के चलते वह बढ़ता गया है.

2015 में नेपाल में आये भूकम्प के बाद भारत सरकार की प्रतिक्रिया से जो नाराजगी बनी थी, उसने इसमें थोड़ा और बढ़ोतरी की थी. भारत की सरकार के नाकेबंदी वाले कदम ने भी सम्बन्धों को कडुवाहट में बदलने के साथ नेपाल को चीन के और करीब किया.

उसके बाद नोटबन्दी विवाद ने इस खाई को और चौड़ा और गहरा किया. भारत सरकार बन्द किये करेंसी को लेने को तैयार न हुई. इस तरह पिछले कुछ सालों में दूरियां बढ़ती गयीं, किन्तु यह राजनैतिक थीं. कूटनीतिक थीं.

भारत-नेपाल की जनता का आपसी सम्बन्ध यथावत रहता आया है. सांस्कृतिक एकता में फर्क नहीं आया, किन्तु संवादहीनता ने व भारतीय मीडिया की प्रतिक्रिया ने वापसी के संवाद के रास्ते भी बन्द करने शुरू किए. नेपाल भारत की सेना के तुलनात्मक व्यौरे दिए जाने लगे.

नेपाल के प्रधानमंत्री के चीनी राजदूत के साथ रिश्ते जोड़ते हुए अनाप शनाप, बेहूदा भाषा में खबरें चलाई जाने लगी. इसकी प्रतिक्रिया वहां से होनी ही थी और हुई, किन्तु सरकार की तरफ से आधिकारिक रूप से कोई पहल नहीं दिखाई दी.

अब जो बयान आया है नेपाल के प्रधानमंत्री का, वह ज्यादा चिंताजनक व गम्भीर है – अयोध्या राम को लेकर. भले ही उसको लेकर तमाम हंसी ठिठोली हो रही है, पर यह गम्भीर चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि अब तक जो भी हुआ वह राजनैतिक कूटनीतिक दूरी ही बन रही थी, जो भविष्य में सरकारों के बदलने पर सामान्य हो सकती थी, जिसमें बातचीत, समझौते, सन्धियों के जरिये पुनः सम्बन्धों को पटरी पर लाया जा सकता था, पुनर्बहाल किया जा सकता था, किंतु यह बयान भारत नेपाल के बीच जो सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं वर्षों वर्ष से, उस पर चोट है.

यह बयान सदियों से जारी उन सम्बन्धों को भी समाप्त करने की तरफ पहल है जो भारत नेपाल की जनता के मध्य रोटी-बेटी का नाता रहा है. यह बयान उन रिश्तों को चुनौती है इसलिए इस बयान को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए.

किन्तु भारत में जिस तरह का माहौल बना दिया गया है और शीर्ष नेतृत्व जिस तरह की आत्ममुग्धता और अहम का शिकार है, उसमें यह उम्मीद करना कि वह इसकी गम्भीरता को समझ कोई पहल करेगा, बेमानी है. सोशल मीडिया में तो इस बयान का हल्के-फुल्के में मजा लिया जा सकता है, पर वास्तविक समाज में यह भविष्य में बड़ी चुनौती बनेगा.

चीन ने धमकाते हुए कहा ही है कि यदि भारत ने चीनी सीमा पर गलती की तो तीन तरफ से मोर्चे खुलेंगे. अमेरिका इजरायल बहुत दूर है, आग लगेगी तो पानी लेकर दौड़े भी तो तब तक सब राख हो चुकेगा. पड़ोसी बदले नहीं जा सकते. वक़्त जरूरत वही बाल्टी ले खड़े हो सकते हैं. उनसे सम्बन्ध बिगाड़ना घातक होगा, खासकर नेपाल से.

ऐसे हालात में केन्द्र की आत्ममुग्ध नरेन्द्र मोदी सरकार को अपने पड़ोसियों के साथ खासकर, नेपाल जैसे पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना चाहिए, वरना अगर इसी तरह संबंध बिगड़ते गये तो वह दिन दूर नहीं जब भारत टुकड़ों में बिखरने लगेगा, जिसकी जिम्मेदारी से नरेन्द्र मोदी सरकार बच नहीं सकेगी क्योंकि नेपाल के साथ संबंध बिगडऩे की नींव 2015 के मोदी कार्यकाल में ही डाली गई है.

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