वह मैं हूंं !
मुंह-अंधेरे बुहारी गई सड़क में
जो चमक है..
वह मैं हूंं !
कुशल हाथों से तराशे
खिलौने देख कर
पुलकित होते बच्चे
बच्चे के चेहरे पर जो पुलक है..
वह मैं हूंं !
खेत की माटी में
उगते गन्ने की ख़ुशबू
मैं हूंं !
जिसे झाड़-पोंछ कर भेज देते हैं वे
उनके घरों में
भूल कर अपने घरों के
भूख से बिलबिलाते बच्चों का रुदन
रुदन में भूख है..
वह मैं हूंं !
प्रताड़ित-शोषित जनों के
क्षत-विक्षत चेहरों पर
घावों की तरह चिपके हैं
सन्ताप भरे दिनउन चेहरों में शेष बची हैं
जो उम्मीदें अभी
वह मैं हूंं !
पेड़ों में नदी का जल
धूप-हवा में
श्रमिक-शोषित गंध
बाढ़ में बह गई झोंपड़ी का दर्द
सूखे से दहकती धरती का बांझपन
वह मैं हूंं !
सिर्फ मैं हूंं !
- ओम प्रकाश वाल्मीकि
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