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प्रधानमंत्री को संवैधानिक कर्तव्य नहीं, अपनी इमेज प्यारी है

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प्रधानमंत्री को संवैधानिक कर्तव्य नहीं, अपनी इमेज प्यारी है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी –

  1. वे जहां भी जाते हैं, उनके लाव-लश्कर के साथ बहुत से फ़ोटो और वीडियोग्राफर चलते हैं. जाना भी चाहिए.
  2. वे जो भी कहते/करते हैं, उसे एक खबर के रूप में घंटों पर पूरे देश को दिखाया जाता है. पीएम की बात अहम है. दिखाना चाहिए.

यहां ज़रा ठहरिए. दोबारा पढ़िए –

  1. पीएम जहां भी जाते हैं, उनके साथ शायद इवेंट मैनेजर्स चलते हैं. पब्लिक रिलेशन वाले. मेक अप आर्टिस्ट. वार्डरोब में कई तरह की पोशाक लेकर. पूरे देश को ऐसा क्यों लगता है ?
  2. मोदी जो भी कहते/करते हैं, उसके पीछे एक पूरी पब्लिसिटी रणनीति होती है. इस रणनीति में दो बातें मुख्य रूप से देखी जा सकती हैं – पहला, प्रधानमंत्री की इमेज ठीक वैसे ही चमकती रहे, जैसे 2014 से पहले चमकाई गई थी. दूसरा यह कि देश अपने पीएम को काम करता/एक्शन लेता, सिंहनाद करता दिखे. गोदी मीडिया को सुर्खियां बनाने का मौका मिले.

ज़्यादा पीछे न जाएं. शुक्रवार की ही घटना है. मोदी अचानक लेह पहुंचे थे. ये अचानक शब्द गोदी मीडिया का खड़ा किया हुआ है, क्योंकि इस तरह के इवेंट को खड़ा करने के लिए हफ्तों की तैयारी चाहिए.

मोदी की पूरी यात्रा में जिस तरह की तस्वीरें सामने आईं, जिस एंगल से फ़ोटो खींचे गए, उससे साफ है कि वे चीन को ‘कड़ा संदेश’ देने के बजाय यह कहना चाहते थे कि मैं आज सेना के साथ खड़ा हूंं. चीन की अब खैर नहीं.

ऐसा क्यों किया ? क्योंकि प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक के बाद वीडियो संदेश में ‘न कोई घुसा, न कब्जाया’ कहकर खुद को सरेंडर की उपाधि से नवाज़ दिया था. उस ऐतिहासिक भूल को सुधारने के लिए ऐसे किसी बड़े इवेंट की ज़रूरत थी.

मगर वे एक बात भूल गए कि वे मोर्चे पर डटे जवानों के घावों पर मरहम लगाने जा रहे हैं. उन्हें 20 जवानों की शहादत के बाद जवानों का उत्साह और मनोबल बढ़ाना, उन्हें LAC विवाद पर सरकार की स्पष्ट सोच को बताना है.

भारत में जब भी कोई ऐसे अवसरों में शरीक होता है तो वह बिना ताम-झाम के, एक भावुक हृदय लेकर दु:ख को बांटने, हौसला देने चला आता है, उस मौके को अपनी इमेज चमकाने का इवेंट नहीं बनाता. मोदी ने ऐसा किया और इस इवेंट में उन्होंने सेना को भी उलझा दिया.

नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, सेना के सुप्रीम कमांडर नहीं. सेना के सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति हैं. क्या मोदी देश को यह संदेश देना चाहते हैं कि असल में वही सुप्रीम कमांडर हैं ? आप याद करें कि उरी और बालाकोट के बाद हिन्दू राष्ट्रवादियों ने सीना ठोंक कर कहा था कि ‘हम जो चाहेंगे, सेना वही करेगी.’

यह देश की उस संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है, जिसमें देश में संविधान का संरक्षक और प्रमुख राष्ट्रपति को बनाया गया है. क्या मोदी ने राष्ट्रपति को विश्वास में लेकर यह इवेंट किया था ?

चूंकि इस पूरे इवेंट में सेना भी हिस्सा थी, तो अब ज़रा सेना की भी दलील सुनें –

सेना ने सफाई दी है कि मोदी लेह के जिस सैन्य अस्पताल में 15 जून को चीनी सेनाओं से झड़प में घायल जवानों से मिलने गए थे, वह अस्पताल ही है, बिस्तरों पर बैठे जवान ही हैं. कोई झांंसेबाज़ी नहीं.

‘द वायर’ ने सेना से इस मुद्दे पर कुछ सवाल किए हैं, जवाब गोल-मोल ही मिले. जानिए सेना का क्या जवाब रहा –

  • वह असल में कॉन्फ्रेंस रूम था. उसे अस्थायी कोविड वार्ड बनाया गया था.
  • बिस्तर पर एक पोजीशन में बैठे घायल जवानों को मामूली चोट लगी थी. (लिंक देखें)

दिलचस्प बात यह है कि जब भिड़ंत के 8 दिन बाद सेना प्रमुख उसी अस्पताल में सैनिकों से मिलने जाते हैं (फ़ोटो देखें) तो नज़ारा कुछ और दिखता है. जवान अगल-बगल के बिस्तरों पर हैं. सेना प्रमुख उनसे वैसे ही मिल रहे हैं, जैसे औपचारिक मुलाकात होती है.

  • सैन्य अफ़सरान कह रहे हैं कि हॉल में चिकित्सा उपकरण, डॉक्टर, नर्स इसलिए नहीं थे, क्योंकि ‘संभवतया’ (शब्द पर ग़ौर करें) जवानों को पैर, हाथ और सीने में चोट लगी हो और कपड़ों के कारण उनके ज़ख्म नहीं दिख रहे हों.

बाकी गंभीर जवानों का अस्पताल में कहीं और इलाज चल रहा है. बस ! बहुत हुआ.

  • क्या अस्पताल में किसी मंत्री-संतरी के जाने पर ज़ख्मी जवानों को मजबूरीवश उठकर बैठना होगा ? अपनी तकलीफ़ को अनदेखा कर ?
  • क्या यह भारत में सबसे श्रेष्ठ मानी जाने वाली सेना की मेडिकल सेवा के सर्वोच्च प्रोटोकॉल का पालन करता है.
  • क्या इस देश ने कभी ऐसा देखा कि किसी प्रधानमंत्री ने माइक हाथ में लेकर प्रोजेक्टर से लैस अस्पताल के कांफ्रेंस रूम में जवानों को संबोधित किया हो ?

जो नहीं हुआ, वह मोदी कर दिखाते हैं, सारे नियम-कानून तोड़कर इसलिए, क्योंकि अगर वे नीमू की बजाय सीधे गलवान में मोर्चे पर उतरते तो उनके खास एंगल से फ़ोटो कैसे उतारे जा पाते ? देश को तो सिर्फ जवान, खंदक, बंकर और हथियार दिखते, मोदी नहीं.

फिर नेहरू और इंदिरा भी तो लद्दाख गए थे. अपने अंदाज में भाषण भी दिया था. उसी लीक पर मोदी भी चलते तो भक्तों और बीजेपी के IT सेल को प्रधानमंत्री की परछाई को सिंह में पूंछ सहित तब्दील करने का मौका कैसे मिलता ?

19 जून को इंडिया टुडे की रिपोर्ट कहती है कि गलवान भिड़ंत में 76 जवान घायल हुए. लेह में 18 जवानों का इलाज चल रहा है और 15 दिन के बाद वे 4 जुलाई को डिस्चार्ज हो जाएंगे.

मोदी उससे ठीक एक दिन पहले पहुंचे थे विभिन्न एंगल से फ़ोटो खिंचवाने और तमाम नियम-कायदों, इंसानी जज़्बातों को ताक पर रखकर, सेना की सर्वश्रेष्ठ परंपराओं को तोड़कर जवानों को भाषण पिलाने क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री को अपना संवैधानिक कर्तव्य नहीं, अपनी इमेज प्यारी है. पूरी दुनिया में यही संदेश गया है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा लेह में किये गए तमाशे के बाद चीन ने पहली बार भूटान का पूर्वी हिस्सा हड़प लिया है.

  • सौमित्र राय

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ROHIT SHARMA

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