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भारत की दुरावस्था, सरकार का झूठ और भारतीय जनता

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‘पचास अस्पतालों से संपर्क किया. 32 अस्पतालों को फ़ोन किया. 18 अस्पतालों में गया. शनिवार और रविवार को एंबुलेंस में भटकता रहा. 52 साल का कपड़े की दुकान का मालिक था. कहता रहा कि सांंस नहीं ले पा रहा हूंं. घर ही ले चलो. मर गया.’

टाइम्स ऑफ इंडिया

भारत के स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का इससे बदतर और कोई उदाहरण नहीं हो सकता. मध्यवर्ग एक ओर मामूली चिकित्सा सुविधा के वगैर मर रहा है. पुलिस पीट पीटकर सरेआम मार रही है. गरीब भूख से मर रहा है. लोग आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार अपने गुणगान में लगी हुई है. लोगों को मूर्ख बना रही है.

भारत की दुरावस्था, सरकार का झूठ और भारतीय जनता

रविश कुमार अपने ब्लॉग में लिखते हैं, राम विलास पासवान कहते हैं 2.13 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को अनाज दिया और बीजेपी कहती है 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को अनाज दिया.

16 मई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा था कि सभी राज्यों ने जो मोटा-मोटी आंकड़े दिए हैं उसके आधार पर हमें लगता है कि 8 करोड़ प्रवासी मज़दूर हैं जिन्हें मुफ्त में अनाज देने की योजना का लाभ पहुंचेगा. केंद्र सरकार इसका ख़र्च उठाएगा. राज्यों से पैसे नहीं लेगी. इसके लिए सरकार 3500 करोड़ ख़र्च करेगी, अगले दो महीने में. प्रवासी मज़दूर लौट रहे हैं, बहुत कम हैं जो वापस जा रहे हैं, इसलिए हम कह रहे हैं कि अगले दो महीने तक चाहे कार्ड हो या न कार्ड हो, हर प्रवासी मज़दूर को मुफ्त में चावल या गेहूं और एक किलो ग्राम चना दिया जाएगा.

1 जुलाई को 8 करोड़ प्रवासी मज़दूरों के बारे में जब सवाल किया गया तब केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान और उनके बाद उनके सचिव ने ये जवाब दिया.

पासवान – अभी पांच महीने सिर्फ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को बढ़ाने का फैसला हुआ है, जहां तक बिना राशन कार्ड वाले 8 करोड़ माइग्रेंट वर्कर की बात है, कई राज्य बिना राशन कार्ड वाले प्रवासी मज़दूरों के लिए अनाज नहीं मांग रहे हैं क्योंकि वो वापस जा चुके हैं. आंध्र, तेलंगाना जैसे राज्यों ने हमें बताया है कि उन्हें माइग्रेंट वर्कर के लिए अलग से अनाज की ज़रूरत नहीं है.

खाद्य सचिव सिधांंशु पांडे कहते हैं – बिना राशन कार्ड वाले 8 करोड़ माइग्रेंट वर्कर वाला फिगर एक लिबरल एस्टिमेट था. राज्यों ने 2.13 करोड़ माइग्रेंट वर्कर को ही अनाज दिया है, इसलिए बिना राशन कार्ड वाले माइग्रेंट वर्कर का टारगेट रिवाइज़ हो गया है. 12 राज्यों ने जो लक्ष्य किया था इस मामले में, इससे 1 प्रतिशत से भी कम अनाज प्रवासी मज़दूरों में वितरित किया.

इन जवाबों से कई सवाल बनते हैं लेकिन फिलहाल आप इतना ही मान लें कि 8 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को मुफ्त में 5 किलोग्राफ चावल और एक किलोग्राम चना देने का एलान हुआ था, दिया गया 2.13 करोड़ को. अगर कोई सवाल नहीं करता तो सरकार खुद से बताती भी नहीं.

लेकिन एक जुलाई को ही बीजेपी ट्विट करती है. बैनर पोस्टर पर प्रधानमंत्री की तस्वीर लगी है. इस पोस्टर पर लिखा है कि –

आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों को 8 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न का किया जा रहा है वितरण. 1.96 करोड़ प्रवासी परिवारों को 39,000 मीट्रिक टन दालों की आपूर्ति की जा रही सुनिश्चित. प्रवासियों को प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम खाद्यान और प्रति परिवार एक किलो दाल का फ्री में हो रहा है वितरण.

मोदी जी वाले पोस्टर में कहा गया है कि 8 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को अनाज दिया जा रहा है लेकिन दाल सिर्फ 1.96 करोड़ प्रवासी परिवारों को दी जा रही है. ये अंतर क्यों हैं ? क्या सब को दाल नहीं मिली ?

मोदी जी के मंत्री कहते हैं कि 8 करोड़ प्रवासी मज़दूर अनुमानित संख्या थी. सिर्फ 2.8 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को अनाज दिया गया लेकिन मोदी जी अपने पोस्टर में 8 करोड़ की संख्या बताते हैं. सभी को पता है कि इन सब बातों पर किसी की नज़र पड़ेगी नहीं लेकिन क्या बीजेपी को सही आंकड़े नहीं बताने चाहिए ?

रविश कुमार आगे लिखते हैं – अमरीका में 36,000 पत्रकारों की नौकरी चली गई है या बिना सैलरी के छुट्टी पर भेज दिए गए हैं या सैलरी कम हो गई है, कोविड-19 के कारण. इसके जवाब में प्रेस फ्रीडम डिफेंस फंड बनाया जा रहा है ताकि ऐसे पत्रकारों की मदद की जा सके. यह फंड मीडिया वेबसाइट दि इंटरसेप्ट चलाने वाली कंपनी ने ही बनाया है. इस फंड के सहारे पत्रकारों को 1500 डॉलर की सहायता दी जाएगी. एक या दो बार. इस फंड के पास अभी तक 1000 आवेदन आ गए हैं.

वैसे अमरीका ने जून के महीने में 100 अरब डॉलर का बेरोज़गारी भत्ता दिया है. अमरीका में यह सवाल उठ रहे हैं कि सरकार को बेरोज़गारों की संख्या को देखते हुए 142 अरब डॉलर खर्च करना चाहिए था. पर भारत का मिडिल क्लास अच्छा है. उसे किसी तरह का भत्ता नहीं चाहिए, बस व्हाट्स एप में मीम और वीडियो चाहिए. टीवी पर गुलामी.

भारत में एडिटर्स गिल्ड, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को कम से कम सर्वे तो करना ही चाहिए कि कितने फ्री-लांस, पूर्णकालिक, रिटेनर, स्ट्रिंगर, अंशकालिक पत्रकारों की नौकरी गई है ? सैलरी कटी है ? उनकी क्या स्थिति है ? इसमें टेक्निकल स्टाफ को भी शामिल किया जाना चाहिए. पत्रकारों के परिवार भी फीस और किराया नहीं दे पा रहे हैं.

ख़ैर ये मुसीबत अन्य की भी है. प्राइवेट नौकरी करने वाले सभी इसका सामना कर रहे हैं. एक प्राइवेट शिक्षक ने लिखा है कि ‘सरकार उनकी सुध नहीं ले रही.’ जैसे सरकार सबकी सुध ले रही है ! उन्हीं की क्यों, नए और युवा वकीलों की भी कमाई बंद हो गई है. उनकी भी हालत बुरी है. कई छोटे-छोटे रोज़गार करने वालों की कमाई बंद हो गई है. छात्र कहते हैं कि किराया नहीं दे पा रहे हैं.

इसका मतलब यह नहीं कि 80 करोड़ लोगों को अनाज देने की योजना का मज़ाक उड़ाए. मिडिल क्लास यही करता रहा. इन्हीं सब चीज़ों से उसके भीतर की संवेदनशीलता समाप्त कर दी गई है. जो बेहद ग़रीब हैं उन्हें अनाज ही तो मिल रहा है. जो सड़ जाता है बल्कि और अधिक अनाज मिलना चाहिए. सिर्फ 5 किलो चावल और एक किलो चना से क्या होगा ?

यह बात गलत है कि मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिल रहा है. व्हाट्स ऐप मीम और गोदी मीडिया के डिबेट से उसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है. उसके बच्चों की शिक्षा और नौकरियों पर बात बंद हो चुकी है ताकि वे मीम का मीमपान कर सकें. उसके भीतर जितनी तरह की धार्मिक और ग़ैर धार्मिक कुंठाएं हैं, संकीर्णताएं हैं उन सबको खुराक दिया गया है, जिससे वह राजनीतिक तरीके से मानसिक सुख प्राप्त करता रहा है.

ख़ुद यह क्लास मीडिया और अन्य संस्थाओं के खत्म करने वाली भीड़ का साथ देता रहा, अब मीडिया खोज रहा है. उसे पता है कि मीडिया को खत्म किए जाने के वक्त यही ताली बजा रहा था. मिडिल क्लास में ज़रा भी खुद्दारी बची है तो उसे बिल्कुल मीडिया से अपनी व्यथा नहीं कहनी चाहिए, उसे सिर्फ मीम की मांग करनी चाहिए. कुछ नहीं तो नेहरू को मुसलमान बताने वाला मीम ही दिन में तीन बार मिले तो इसे चैन आ जाए.

खुद्दार मिडिल क्लास को पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने उसका आभार व्यक्त किया है. ईमानदार आयकर दाताओं का अभिनंदन किया है. ऐसा नहीं है कि आप नोटिस में नहीं हैं !

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