जब एक दिन
मार दिया जाएगा आख़िरी जुनैद
और रक्ताभिषेक करके सारे राष्ट्रीय चिन्हों के ऊपर
हुआ तो राष्ट्रध्वज में चक्र की जगह
स्थापित कर दिया जाएगा खंज़र.
तब क्या निबट जाएगा सारा हिसाब ?
नहीं –
निष्काम योगी या औलिया या पीर नहीं होते खंज़र.
उनके अस्तित्व की शर्त है, उनका काम में लगे रहना.
इसके बाद वह
नापेगा किसी शूद्र की, किसी आदिवासी की गर्दन,
फिर चींथेंगा किसी किसान को
फिर घोंपा जाएगा कोई मजूर, फिर कोई गरीब.
इन लीग मैचों को जीतते हुए
दाखिल होगा खन्जर नॉकआउट दौर में
अपने अपने ढोलकियों के साथ
गुर्जर मीणाओं को, जाट पटेलों को,
धोबी माली को, कुर्मी कुशवाह को
ढीमर कोरियों को
शिया सुन्नी को
उड़िया बिहारी को, गोरखा बंगाली को, बोडो उल्फा को
ये उसको और वो इसको हराएगा जिताएगा
कब्र में सुलायेगा.
सेमीफाइनल में भिड़ेगी तलवार चोटी से,
जीतेगा खंज़र.
फाइनल खेलने लौटेगा खंज़र, खुद अपने घर
नहीं बचेगा
उसको थामने वाले के मुंह और पोतड़े पोंछने वाला
मांं का आंंचल भी.
उसे भी मिलेगी स्त्री होने के गुनाह की शास्त्र सम्मत सजा.
गोद दी जायेंगी,
दड़बे में बन्द होने से ना करने वाली बहनें, बेटियां
बिस्तर की बंधुआ बनने में नानुकुर करने वाली पत्नियां.
भयावह है यह सब लिखना
किन्तु मात्र सदिच्छाओं से नही टलते प्रकोप
क्यूंकि नफ़रत, बस नफरत होती है
दुश्मन की तलाश में पागल और उन्मादी
बाहर न बचे तो घर में ही ढूंढ लेती है शिकार
मुश्किल हो या आसान.
इसके लिए न कोई अयूब पण्डित है न जुनैद
इसके निशाने पर है हिंदुस्तान !!
- बादल सरोज/29.06.2020
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