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सरकार देखो, तेल की धार देखो

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आपदा को अवसर में बदलने की नसीहत देने वाली केंद्र सरकार ने कोरोना के आपातकाल को किस चतुराई से अपने लिए कमाई के अवसर में बदला है, इसका ताजा उदाहरण है तेल के दामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी. अब तो विरोधियों को भी मान लेना चाहिए कि मोदी है तो मुमकिन है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश, जहां लोकतंत्र है और जहां सरकारें जनहित को अपनी प्राथमिकताओं से ऊपर रखती हैं, वहां इस तरह के फ़ैसले लिए जा रहे हैं, जिससे एक लाइलाज महामारी के खौफ़ में जीते लोगों को थोड़ी राहत मिल सके.

कई देशों ने लंबे समय तक लॉकडाउन रखा, जिससे कारोबार और लोगों के रोजगार पर असर पड़ा तो लोककल्याणकारी सरकारों ने उनकी चिंताओं को कम करने वाले निर्णय लिए. लेकिन भारत में मोदी सरकार ने जो फ़ैसले लिए उससे न कारोबारियों को राहत मिली, न नौकरीपेशा लोगों को. सरकारी कर्मचारियों के वेतनभत्तों में कटौती हुई. धारावाहिक की तरह राहत पैकेज को नित नए ट्विस्ट देकर पेश किया गया, जिसका नतीजा बिलकुल भी राहत देने वाला साबित नहीं हुआ. छोटे और मध्यम उद्योगों में से कई बंद हो चुके हैं, कई बंद होने की कगार पर हैं और जो चल रहे हैं, वे भी लड़खड़ा रहे हैं.

करोड़ों लोग बेरोजगार हैं और सरकार कुछ लाख लोगों के लिए आधे साल के रोजगार का इंतजाम कर बता रही है कि इससे गरीबों का कल्याण होगा. एक बड़ी कंपनी के कर्जमुक्त हो जाने और दुनिया के 10 अमीरों में एक उद्योगपति के शुमार हो जाने को हम सारे भारत की खुशहाली का पैमाना नहीं मान सकते, लेकिन ये सरकार शायद इसी तरह के नए पैमाने गढ़ने में यकीन रखती है. उसे लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन पर आए संकट से शायद कोई सरोकार ही नहीं है, इसलिए सारी मुसीबतों के बीच अब तेल के दामों में इतनी बढ़ोत्तरी हो गई है कि अधमरी जनता पूरी तरह संकटों के बोझ तले कुचल जाए. उसे न सरकार की नीतियों की समीक्षा करने की फुर्सत मिले, न उनके बारे में सोचने का अवकाश मिले.

देश में बीते 17 दिनों से पेट्रोल और डीज़ल के दाम रोज बढ़ रहे हैं. इन 17 दिनों में पेट्रोल का दाम 8.50 रुपये और डीज़ल का दाम 10.01 रुपये प्रति लीटर बढ़ चुका है. भारत में जब लॉकडाउन था तो तेल कंपनियों ने 82 दिन तक दाम में कोई बदलाव नहीं किया, लेकिन फिर 7 जून से पेट्रोल, डीज़ल के दाम में दैनिक संशोधन शुरू किया. उसके बाद से कीमतें बढ़ती गईं और डीज़ल के दाम रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गए, जबकि पेट्रोल के दाम पिछले दो साल की ऊंचाई पर है.

गौरतलब है कि तेल कंपनियों ने अप्रैल, 2002 में पेट्रोल और डीज़ल के दाम में हर पखवाड़े बदलाव करने की शुरुआत की थी. ये दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव के अनुरूप किए जाते रहे. इसके बाद कंपनियों ने मई 2017 से पेट्रोल और डीज़ल के दाम में दैनिक बदलाव की शुरुआत की. अब तक एक पखवाड़े में अधिक से अधिक चार या पांच रुपए की बढ़ोतरी होती थी, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि दाम सीधे आठ-दस रुपए बढ़ गए हैं. जब भाजपा विपक्ष में थी तो तेल के बढ़ते दाम उसकी राजनीति का एक अहम हिस्सा थे.

यूपीए सरकार पर भाजपा तरह-तरह के इल्ज़ाम लगाती कि किस तरह वह तेल के दामों को नियंत्रित नहीं कर पा रही है. योगगुरु से कारोबारी बने कुछ लोग जनता को यह यकीन दिलाते थे कि मोदीजी देश संभालेंगे तो तेल 35 रुपए में मिलेगा. पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़े थे, तो देश में कीमतों पर वैसा ही असर होता था लेकिन बीते कुछ वक्त में जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम ऐतिहासिक गिरावट में रहे, तब भारत सरकार ने तेल के दामों को बढ़ाकर अपना खज़ाना भरने की पुख़्ता तैयारी कर ली.

छह साल पहले 16 मई 2014 के दिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 108 डॉलर प्रति बैरल थी तब पेट्रोल की कीमत 71.41 रुपए थी, जिसमें केंद्र सरकार का शुल्क 9.20 पैसे था. आज कच्चा तेल 40 डॉलर प्रति बैरल है और पेट्रोल की कीमत 80 रुपए प्रति लीटर है, जिसमें सरकार का शुल्क 33 रुपया है. 16 मई 2014 को दिल्ली में डीज़ल की कीमत 55.49 रुपए थी, जिसमें केंद्र सरकार का शुल्क सिर्फ 3.46 रुपए था. आज डीज़ल की कीमत 79 रुपए प्रति लीटर है, जिसमें केंद्र सरकार का हिस्सा 32 रुपया है. डीज़ल पर केंद्र का शुल्क छह साल में 820 फीसदी बढ़ा है. तेल पर इतना शुल्क लगाकर सरकार अपना खज़ाना भर रही है. बड़ी चालाकी से इस काम को अंजाम दिया गया.

दरअसल सरकार ने पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क में आठ रुपये तक की और वृद्धि के लिये संसद से मंजूरी ले ली थी. 23 मार्च को वित्त विधेयक 2020 को संसद की मंजूरी मिलने के साथ ही कानून में यह प्रावधान शामिल हो गया है. जब संसद एक पार्टी के दबदबे से चलने लगे और जरूरी मसलों पर बिना चर्चा के फ़ैसले होने लगें तो देश के लिए यह कितना घातक होता है, यह उसका एक उदाहरण है. बजट सत्र में लोकसभा ने वित्त विधेयक 2020 को बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया. उसके बाद राज्य सभा ने भी इसे बिना चर्चा के लौटा दिया. कोरोना के चलते कुछ ही घंटों में यह काम संपन्न हो गया. इसके साथ ही वित्त वर्ष 2020- 21 का बजट पारित होने की प्रक्रिया पूरी हो गई. वित्त मंत्री निर्मला सीमारमण ने लोकसभा में वित्त विधेयक में 40 से अधिक संशोधन प्रस्ताव पेश किये.

राज्यसभा ने 2020-21 के विनियोग विधेयक को भी इसके साथ ही बिना चर्चा किये लोकसभा को लौटा दिया. इस विधेयक के पारित होने से सरकार को अपने कामकाज, योजनाओं और कार्यक्रमों के लिये सरकार की संचित निधि से 110 लाख करोड़ रुपये की राशि निकालने का अधिकार मिल गया. वित्त विधेयक में एक और अहम बदलाव जो किया गया है, वह पेट्रोल, डीज़ल पर विशेष उत्पाद शुल्क बढ़ाने को लेकर किया गया है. इस संशोधन के बाद सरकार को पेट्रोल और डीज़ल पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क को 8 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ाने का अधिकार मिल गया है. इस संशोधन के बाद सरकार पेट्रोल पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क को मौजूदा 10 रुपये प्रति लीटर से 18 रुपये तक ले जा सकती है और डीज़ल पर इसे मौजूदा 4 रुपये से बढ़ाकर 12 रुपये तक किया जा सकता है.

यह काम सरकार एक झटके में करने के बजाय अलग-अलग चरणों में भी कर सकती है. तब ऐसा संकेत दिया गया कि सरकार आने वाले समय में जरूरत पड़ने पर कभी भी पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ा सकती है. लेकिन देश की जनता यह कहां जानती थी कि मार्च में जो फैसला भविष्य के लिए बताया जा रहा था, उस भविष्य की तस्वीर जून में ही नजर आने लगेगी. तेल की बढ़ती कीमतों से व्यवसायी चिंतित हैं, क्योंकि उनके लिए कच्चे माल की आपूर्ति से लेकर माल ढुलाई तक सब महंगा हो गया है. इसका असर उपभोक्ताओं पर भी बढ़ रहा है. विपक्ष भी इस संकटकाल में तेल की कीमतों के बढ़ने पर सवाल उठा रहा है लेकिन इन तमाम चिंताओं को अनसुना करते हुए सरकार राजकोष भरने में लगी है. और अब ऐसा लग रहा है कि राजकोष केवल राज के लिए है, जनता के लिए नहीं. अगर जनता के लिए राजकोष होता तो लाखों-करोड़ों लोग यूं दुश्वारियों में न जीते.

(देशबन्धु के संपादकीय से साभार)

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