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इतिहास की सबसे भयंकर मंदी की चपेट में भारत

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इतिहास की सबसे भयंकर मंदी की चपेट में भारत

अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कल भारत की आर्थिक प्रगति को -4.5% पर लाकर खड़ा कर दिया, पहले यह 1.9% थी. दुनियाभर के देशों की आर्थिक प्रगति का अनुमान लगाते हुए IMF ने भारत की सबसे ज़्यादा रेड मारी है.

यथार्थ यह है कि भारत इतिहास की सबसे भयंकर मंदी की चपेट में पहुंच चुका है. अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कल दो अहम बात कही –

  1. पूरी दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी मंदी झेल रही है. इससे उबरना इस बात पर निर्भर है कि सरकारें अपनी नीतियां कैसे तैयार करती हैं. भारत पर भी यह लागू होती है.
  2. IMF के मुताबिक भारत में लॉक डाउन लंबा चला. कोरोना से रिकवरी की दर धीमी रही और देश मंदी में डूब गया.

IMF ने हालांकि अगले वित्त वर्ष में भारत के 6% ग्रोथ की रफ्तार पकड़ने की उम्मीद जताई है, लेकिन खुद उसे भी नहीं पता कि यह हो पायेगा या नहीं.

कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत मंदी में ही नहीं, बल्कि उससे भी बुरी स्थिति यानी अवसाद (डिप्रेशन) में चला गया है.

JNU के सहायक प्रोफेसर सुरोजित दास का मानना है कि आने वाले दिनों में भारत की ग्रोथ -15% तक जा सकती है.

जाने-माने अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने साफ कर दिया है कि देश की 75% जीडीपी अप्रैल में ही खत्म हो गयी थी. मई में 65% जीडीपी धुल चुकी है. एक्सपोर्ट, इन्वेस्टमेंट और उपभोग- ग्रोथ के ये 3 बड़े इंजन ठप हैं. अरुण कुमार के अनुसार अगले 3-4 साल तक हालात नहीं सुधरने वाले.

इसी वित्त वर्ष की बात करें तो 204 लाख करोड़ की इकॉनमी 130 लाख करोड़ पर आ गिरी है. सरकार को टैक्स से मिलने वाला राजस्व जीडीपी की तुलना में 16% से गिरकर 8% होने जा रहा है.

इन हालात में सरकार को अपने कर्मचारियों के लिए सैलरी जुटाना भी मुश्किल हो सकता है. दिख भी रहा है, सरकार ने DA और इंक्रीमेंट रोक दिए हैं.

देश में 20 करोड़ लोग नौकरी खो चुके हैं. अगर एक परिवार में 4 लोगों को भी उन पर आश्रित मानें तो 80 करोड़ लोग भूख, तंगहाली के शिकार होने जा रहे हैं.

इन सभी लोगों को विश्व बैंक की ग़रीबी रेखा के बराबर 1.99$ की जगह 0.99$ की यानी आधी मज़दूरी का भी भुगतान करना हो तो सरकार के पास 18 लाख करोड़ होने चाहिए. मतलब सरकार को 15 लाख करोड़ जुटाने होंगे.

इसी तरह स्वास्थ्य के लिए 2 लाख करोड़ और छोटे उद्योगों के लिए 6 लाख करोड़ को भी जोड़ लें तो सरकार को लगभग 24 लाख करोड़ की ज़रूरत होगी.

इतना पैसा जुटाना मतलब जीडीपी का 50% खर्च करना. कुमार का आंकलन कहता है कि देश के अमीरों की भी दो-तिहाई संपत्ति जाने वाली है. स्टॉक मार्केट और रियल एस्टेट, दोनों में निवेश घाटे का सौदा होगा.

यानी बेहद बुरे हालात हैं. 2019-20 के स्तर तक इकॉनमी को पहुंचने में 4 साल भी लग सकते हैं. तब तक भूख, बेबसी, बेरोज़गारी लाखों जान ले लेगी.

कोई कह रहा था कि ये दुनिया खत्म होने वाली है. हो जाये. ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है !

  • सौमित्र राय

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ROHIT SHARMA

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