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देश की अंदरूनी नीति ही आपकी छवि विदेशों में बनाती है

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देश की अंदरूनी नीति ही आपकी छवि विदेशों में बनाती है

सुब्रतो चटर्जी

जिस तीस्ता शीतलवाड को मोदी सरकार जेल भेजती है, उसे गुजरात दंगों पर रिपोर्टिंग के लिए ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने सम्मान के लिए चुना है. सच की कद्र किए बिना कोई भी देश या समाज कभी आगे नहीं बढ़ता.

यहांं हम दंगाईयों को सर आंंखों पर बिठाकर विश्व गुरु बनने का ख़्वाब पाल रहे हैं. भाजपा के नेताओं द्वारा हत्यारों को माल्यार्पण करने की तस्वीरें दुनिया की नज़रों में भारत की क्या तस्वीर बनाती है, कभी सोचा है ?

हर हत्या और नरसंहार पर बेशर्म ख़ामोशी ओढ़ लेना मोदी जी का स्वभाव है. उनके मौन का सीधा मतलब उनकी सहमति होती है. कुछ लोगों को ये भी लगता है कि ऐसी हत्याएंं उनके द्वारा ही प्रायोजित हैं, जो कि सच है.

राजनीति में व्यक्तिगत आचरण का महत्व 2014 से ख़त्म हो गया है. अब जो जितना ‘नीच’ वह उतना महान ! देवों के देव महादेव ! देश और समाज के निकृष्टतम लोग, जिनका स्थान या तो जेलखाना है या पागल खाना, मीडिया और भ्रष्टतम नौकरशाही और न्यायालय के सहारे करोड़ों मेहनतकश आवाम की नियति के ठेकेदार बने हुए हैं.

मूर्ख होना कोई अपराध नहीं है, अमानुष होना अपराध है. जब भी आप अपराधियों की वकालत करते हैं तो गाहे-बगाहे आप भी अपराधी बन जाते हैं. दोगलापन नहीं चलता; गांंधी और गोडसे के बीच का चुनाव स्पष्ट है.

भीमा कोरेगांंव मामले में झूठे इल्ज़ाम में बंद सारे मानवाधिकार कार्यकर्ता और सफूरा जैसे क़ैदी हमारी व्यवस्था पर कलंक है. आपके देश की अंदरूनी नीति ही आपकी छवि विदेशों में बनाती है, आपकी विदेश यात्राएंं नहीं.

आज चीन के साथ जंग में दुनिया का कोई भी देश हमारे साथ नहीं है. रक्षा मंत्री की रूस यात्रा रूस के व्यापारिक हितों को साधेगा, भले ही यह हमारी सामरिक हितों के लिए हो. अगर सरकार सोचती है कि इस बहाने वह रूस को चीन के विरुद्ध भारत के पक्ष में कर लेगा तो यह बेवक़ूफ़ी है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में उत्कोच नहीं चलता, लेकिन, घूस खाकर देश बेचवा देशभक्तों की इस सरकार को यह बात समझ नहीं आती.

दुनिया भर में इस सरकार के सांप्रदायिक एजेंडा पर थू-थू हो रही है, इसलिए भारत आज अलग-थलग पड़ चुका है. जिस देश में अपने ही जनता के ख़िलाफ़ सरकार जंग छेड़ती है, उस पर कौन विश्वास करेगा, सम्मान तो दूर की बात है.

यूरोप ने नाज़ीवाद का सबसे वीभत्स रूप झेला है. पश्चिमी जगत धुर दक्षिणपंथी हो कर भी नाज़ीवाद का समर्थन नहीं कर सकता. वहांं की जनता विद्रोह कर देगी.

पोस्ट कोरोना काल में पोस्ट ट्रुथ का ज़माना नहीं रहेगा. विश्व भर में राजनीतिक नेतृत्व पर और ज़्यादा मानवीय और समाजवादी होने का दवाब होगा. बढ़ती जन आकांक्षाओं को पूरा करने में जो राजनीतिक विचारधारा समर्थ होगी, वही टिकेगी.

ऐसे बदले हुए परिदृश्य में अगर हम भाजपा और संघ जैसी विचारधाराओं से जुड़े रहे तो हमारी छवि सेप्टिक टैंक के जमाने में सर पर मैला ढोने वाले भंगी की होगी. हमारे प्रधानमंत्री कहते है कि इसमें उनको आध्यात्मिक आनंद आता है, क्या आपको भी आता है ?

अंत में, तीस्ता शीतलवाड को और उनके जैसे सत्य के योद्धाओं को प्रणाम. सत्ता जब सत्य के साथ खड़ी हो तभी सबका कल्याण होगा.

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