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मैं भारत के भाल पर एक निर्लज और गलीज कलंक हूं

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मैं भारत के भाल पर एक निर्लज और गलीज कलंक हूं

मैं भी आत्महत्या करता
लेकिन मैं पांचवीं माले पर नहीं
जमीन पर हूं

मैं फिलहाल जिस फूटपाथ पर रहता हूंं
उसका किराया कभी कभार
पुलिस की मार है

सर्दी गर्मी बारिश जैसी
आसमानी बेरुखी है
मेरे बैंक खाते में
भूख है, जहालत है, बीमारी है
मेरे सगे संबंधियों में
मेरी तरह बीमार और भूखे
कुछ कुत्ते हैं
मैं भारत के भाल पर
एक निर्लज और गलीज कलंक हूं

विधिवत मुझे
कब का मर जाना चाहिए था
फिर भी मैं जी रहा हूं
आत्महत्या अक्सर आदमी करता है
और मैं किसी एंगिल से
आदमी नहीं हूं

सुशांत, तुम्हारी बदकिस्मती
कि तुम आदमी थे

  • राम प्रसाद यादव

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ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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