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चीनी हमले से अन्तर्राष्ट्रीय मसखरा मोदी की बंधी घिग्गी

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चीनी हमले से अन्तर्राष्ट्रीय मसखरा मोदी की बंधी घिग्गी

नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री बनने से पहले आग उगलते थे. उनकी आंखें लाल रहती थी. हर मामलों में केन्द्र सरकार और उसके प्रधानमंत्री जिम्मेवार होते थे. उनके हजारों मोतियों में से एक मोती पेश है.

हमारे देश के जवान मारे जा रहे हैं. और मैं तो देख रहा हूं हिंदुस्तान सर झुका रहा है. ऐसा दुर्दैव कभी देखा नहीं. भारत इस प्रकार से असहायता का अनुभव करे, इससे बड़ा कोई दुर्भाग्य नहीं हो सकता. और इसके लिए पूरी तरह केंद्र सरकार को जिम्मेदार मानता हूं. उनकी नीतियों को. उनके सारे कार्यकलाप को. उनकी उदासीनता को. यह देश कभी भी माफ नहीं करेगा.

14 फ़रवरी, 2019 को पुलवामा में आतंकी हमला होता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस दिन डिस्कवरी चैनल के लिए फ़िल्म शूटिंग कर रहे थे. फ़िल्म शूटिंग भी लोक कार्य है. जनहित होता है. ख़ैर सारी बातों को समझने के बाद 15 जून को उनका बयान आता है.

सबसे पहले मैं पुलवामा के आतंक के हमले में शहीद जवानों को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. उन्‍होंने देश की सेवा करते हुए अपने प्राण न्योछावर किए हैं. दुःख की इस घड़ी में मेरी और हर भारतीय की संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं.

इस हमले की वजह से देश में जितना आक्रोश है, लोगों का खून खोल रहा है; ये मैं भलीभांति समझ पा रहा हूं. इस समय जो देश की अपेक्षाएं हैं, कुछ कर गुजरने की भावनाएं हैं, वो भी स्‍वाभाविक हैं. हमारे सुरक्षा बलों को पूर्ण स्‍वतंत्रता दे दी गई है. हमें अपने सैनिकों के शौर्य पर, उनकी बहादुरी पर पूरा भरोसा है. मूझे पूरा भरोसा है कि देशभक्ति के रंग में रंगे लोग सही जानकारियां भी हमारी एजेंसियों तक पहुंचाएंगे ताकि आतंक को कुचलने में हमारी लड़ाई और तेज हो सके.

मैं आतंकी संगठनों को और उनके सरपरस्‍तों को कहना चाहता हूं कि वे बहुत बड़ी गलती कर चुके हैं, बहुत बड़ी कीमत उनको चुकानी पड़ेगी.

मैं देश को भरोसा देता हूं कि हमले के पीछे जो ताकते हैं, इस हमले के पीछे जो भी गुनहगार हैं, उन्‍हें उनके किए की सजा अवश्‍य मिलेगी. जो हमारी आलोचना कर रहे हैं, उनकी भावनाओं का भी मैं आदर करता हूं. उनकी भावनाओं को मैं भी समझ पाता हूं और आलोचना करने का उनका पूरा अधिकार भी है.

लेकिन मेरा सभी साथियों से अनुरोध है कि ये वक्‍त बहुत ही संवेदनशील और भावुक पल है. पक्ष में या विपक्ष में, हम सब राजनीतिक छींटाकशी से दूर रहें. इस हमले का देश एकजुट हो करके मुकाबला कर रहा है, देश एक साथ है, देश का एक ही स्‍वर है और यही विश्‍व में सुनाई देना चाहिए क्‍योंकि लड़ाई हम जीतने के लिए लड़ रहे हैं.

पूरे विश्‍व में अलग-थलग पड़ चुका हमारा पड़ोसी देश अगर ये समझता है कि जिस तरह के कृत्‍य वो कर रहा है, जिस तरह की साजिशें रच रहा है, उससे भारत में अस्थिरता पैदा करने में सफल हो जाएगा तो वो ख्‍वाब हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दे. वो कभी ये नहीं कर पाएगा और न कभी ये होने वाला है.

इस समय बड़ी आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे हमारे पड़ोसी देश को ये भी लगता है कि वो ऐसी तबाही मचाकर भारत को बदहाल कर सकता है; उसके ये मंसूबू भी कभी पूरे होने वाले नहीं हैं. वक्‍त ने सिद्ध कर दिया है कि जिस रास्‍ते पर वो चले हैं, वो तबाही देखते चले हैं और हमने जो रास्‍ता अख्तियार किया है, वो तरक्‍की करता चला जा रहा है.

130 करोड़ हिन्‍दुस्‍तानी ऐसी हर साजिश, ऐसे हर हमले का मुंहतोड़ जवाब देगा. कई बड़े देशों ने बहुत ही सख्‍त शब्‍दों में इस आतंकी हमले की निंदा की है और भारत के साथ खड़े होने की, भारत को समर्थन की भावना जताई है.

मैं उन सभी देशों का आभारी हूं और सभी से आह्वान करता हूं कि आतंकवाद के खिलाफ सभी मानवतावादी शक्तियों को एक हो करके लड़ना ही होगा, मानवतावादी शक्तियों ने एक हो करके आतंकवाद को परास्‍त करना ही होगा.

आतंक से लड़ने के लिए जब सभी देश एकमत, एक स्‍वर, एक दिशा से चलेंगे तो आतंकवाद कुछ पल से ज्‍यादा नहीं टिक सकता है.

साथियो, पुलवामा हमले के बाद अभी मन:स्थिति और माहौल दु:ख के साथ आक्रोश से भरा हुआ है. ऐसे हमलों का देश डटकर मुकाबला करेगा. ये देश रुकने वाला नहीं है. हमारे वीर शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति दी है. और देश के लिए मर-मिटने वाला हर शहीद दो सपनों के लिए जिंदगी लगाता है – पहला, देश की सुरक्षा, दूसरा, देश की समृद्धि. मैं सभी वीर शहीदों को, उनकी आत्‍मा को नमन करते हुए, उनके आशीर्वाद लेते हुए, मैं फिर एक बार विश्‍वास जताता हूं‍ कि जिन दो सपनों को ले करके उन्‍होंने जीवन को आहुत किया है, उन सपनों को पूरा करने के लिए हम जीवन का पल-पल खपा देंगे.

समृद्धि के रास्‍ते को भी हम और अधिक गति दे करके, विकास के रास्‍ते को और अधिक ताकत दे करके, हमारे इन वीर शहीदों की आत्‍मा को नमन करते हुए आगे बढ़ेंगे और उसी सिलसिले में मैं वंदे भारत एक्‍सप्रेस के concept और डिजाइन से लेकर इसको जमीन पर उतारने वाले हर इंजीनियर, हर कामगार का आभार व्‍यक्‍त करता हूं.

ये प्रधानमंत्री मोदी का वह बयान है, जिसे उसने पुलवामा हमले के के बाद दिया था. और आज इतने वक्त बितने के बाद भी देश को केन्द्र की मोदी सरकार यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि पुलवामा में हमले कैसे हुआ ? किसने किया ? आरडीएक्स से भरी गाड़ी कैसे पहुंची ? खुफिया एजेंसियों द्वारा दी गई जानकारी के बाद भी सैनिक सड़क मार्ग से क्यों जा रहे थे ?

उपरोक्त जानकारी पूछने मात्र से मोदी सरकार सवाल खड़े करने वाले को देशद्रोही और आतंकवादी बता कर उस पर ट्रोल्स से हमले कराती है अथवा फर्जी मुकदमें दर्ज कर जेलों में सड़ाया जाता है. वहीं दूसरी ओर पुलवामा हमले के आरोपी गिरफ्तार पुलिस अधिकारी दविन्द्र सिंह को समय पर चार्जशीट दाखिल न करने की बिना पर कोर्ट से जमानत मिल जाती है, जबकि सवाल पूछने वाली एक गर्भवती छात्रा को जेल में बंद कर दिया जाता है.

बहरहाल केन्द्र की मोदी सरकार पुलवामा हमले में मारे गये 44 जवानों की लाश पर चढ़कर, राष्ट्रवाद की अंधी हवा चला कर एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हो गये हैं और देश के सबसेे बड़े राष्ट्रवादी बन गए, जिस पर अब कोई सवाल खड़े नहीं कर सकता.

परन्तु अब जब चीन ने भारतीय सीमा में घुसकर 20 (सरकारी आंकड़े के अनुसार) भारतीय सैनिकों की पीट पीटकर हत्या कर दी और 10 सैन्य अधिकारी को गिरफ्तार कर चीन ले गये, तब केन्द्र की इसी मोदी सरकार की घिग्गी बंघ गई. और फिर कई दिन बाद केन्द्र सरकार का रिकार्डेड बयान आया –

साथियों, भारत माता के वीर सपूतों ने गलवान वैली में हमारी मातृभूमि की रक्षा करते हुये सर्वोच्च बलिदान दिया है.

मैं देश की सेवा में उनके इस महान बलिदान के लिए उन्हें नमन करता हूं, उन्हें कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धांजलि देता हूंं. दुःख की इस कठिन घड़ी में हमारे इन शहीदों के परिजनों के प्रति मैं अपनी समवेदनाएं व्यक्त करता हूंं.

आज पूरा देश आपके साथ है, देश की भावनाएं आपके साथ हैं. हमारे इन शहीदों का ये बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. चाहे स्थिति कुछ भी हो, परिस्थिति कुछ भी हो, भारत पूरी दृढ़ता से देश की एक एक इंच जमीन की, देश के स्वाभिमान की रक्षा करेगा.

भारत सांस्कृतिक रूप से एक शांति प्रिय देश है. हमारा इतिहास शांति का रहा है. भारत का वैचारिक मंत्र ही रहा है- लोकाः समस्ताः सुखिनों भवन्तु. हमने हर युग में पूरे संसार में शांति की, पूरी मानवता के कल्याण की कामना की है. हमने हमेशा से ही अपने पड़ोसियों के साथ एक cooperative और friendly तरीके से मिलकर काम किया है. हमेशा उनके विकास और कल्याण की कामना की है.

जहां कहीं हमारे मतभेद भी रहे हैं, हमने हमेशा ही ये प्रयास किया है कि मतभेद विवाद न बनें, differences disputes में न बदलें. हम कभी किसी को भी उकसाते नहीं हैं, लेकिन हम अपने देश की अखंडता और संप्रभुता के साथ समझौता भी नहीं करते हैं.

जब भी समय आया है, हमने देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने में अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है, अपनी क्षमताओं को साबित किया है. त्याग और तितिक्षा हमारे राष्ट्रीय चरित्र का हिस्सा हैं, लेकिन साथ ही विक्रम और वीरता भी उतना ही हमारे देश के चरित्र का हिस्सा हैं.

मैं देश को भरोसा दिलाना चाहता हूंं, हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएंगा. हमारे लिए भारत की अखंडता और संप्रभुता सर्वोच्च है, और इसकी रक्षा करने से हमें कोई भी रोक सकता. इस बारे में किसी को भी जरा भी भ्रम या संदेह नहीं होना चाहिए. भारत शांति चाहता है. लेकिन भारत को उकसाने पर हर हाल में निर्णायक जवाब भी दिया जाएगा. देश को इस बात का गर्व होगा की हमारे सैनिक मारते मारते मरे हैं. मेरा आप सभी से आग्रह है की हम दो मिनट का मौन रख के इन सपूतों को श्रद्धांजलि दें.

घिग्गी बंधे इस मोदी हालत तब और ज्यादा खराब हो गया है जब चीन ने साफ तौर पर बता दिया है कि अगर चीन के साथ मोदी सरकार ने युध्द किया तो उसे युद्ध तीन मोर्चों पर करनी होगी. पहला चीन खुद, दूसरा चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान और तीसरा राजनैतिक तौर पर सबसे खतरनाक नेपाल के साथ, जिसके साथ केन्द्र की मोदी सरकार ने जानबूझकर अपना संबंध खराब कर लिया है, जिसका प्रमाण भारतीय नागरिक पर नेपाली सेना गोलियों की बौछार से दे दिया है.

नेपाल के साथ युद्ध की हालत में मोदी सरकार की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि नेपाल के साथ युद्ध की सूरत में स्वतः ही देश के अंदर एक चौथा मोर्चा खुल जायेगा, वह है गोरखा रेजिमेंट की. विदित हो कि भारतीय सेना में गोरखा रेजिमेंट की 7 रेजिमेंट है, जिसकी संख्या 35 हजार है. सबसे बड़ा सवाल तो यही उठ जायेगा कि ये गोरखा रेजिमेंट क्या अपनी मातृभूमि पर हमला करेगा ? क्या वह दुश्मन देश (युद्ध की हालत में) भारत की तरफ से युद्ध करते हुए अपने ही देशवासियों की हत्या करेगा ?

गोरखा रेजिमेंट के बगैर भारतीय सेना यूं भी आधी मनोबल की हो जायेगी. अगर कहीं गोरखा रेजिमेंट के सिपाहियों ने नेपाल की ही ओर से लड़ने लगे तब तो चौथाई मनोबल भी सेना के पास नहीं बचेगा. और इस चौथाई मनोबल वाली सेना के सहारे क्या भारत एक साथ तीन मोर्चे पर युद्ध लड़ने की कूबत रखता है ? भारतीय सेनाध्यक्ष का कहना है भारत एक साथ दो मोर्चे पर युद्ध नहीं लड़ सकता है, पर यहां तो तीन मोर्चे हैं. जवाब आप स्वयं ढूंढ़ लें.

अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय दोनों ही मोर्चे पर केन्द्र की मोदी सरकार की साख शून्य हो चुकी है. एक अय्याश मसखरे से ज्यादा मोदी का और कोई पहचान नहीं है. यही कारण है कि 6 सालों लाखों करोड़ रुपये पानी की तरह बहाने और विश्व का परिक्रमा करने के बाद भी आज भारत के साथ कोई भी देश खड़ा नहीं है. अमेरिकी सरपरस्ती में मोदी सरकार ने भारत का भरोसेमंद सहयोगी रुस तक से अपना नाता तोड़ चुका है.

ऐसे वक्त में मोदी का एकमात्र सहयोगी बना है गिद्ध मीडिया और उसके चाटूकार पत्रकार, जिसने मोदी को बचाने के लिए नंगई पर उतारु होकर भारतीय सेना पर ही आरोप लगाना शुरू कर दिया है. गिद्ध मीडिया की एक दलाल एंकर सेना पर सवाल उठाते हुए कहती है –

यह सवाल उठाना कि चीनी सेना हमारी जमीन पर आ गई और हम सोते रहे, यह सरकार पर सवाल नहीं होता है. यह सेना पर ही सवाल होता है क्योंकि पेट्रोलिंग की ड्यूटी सरकार की नहीं होती है सेना की होती है. और हमारे देश की सेना को, हमारे अर्थ सैनिक बलों को भी इतनी आजादी है कि वे जो पेट्रोलिंग ड्यूटी कर रहे हैं, उसके लिए किसी पॉलिटिकल मास्टर से कमांड नहीं लेते. अगर आइटीबीपी के हटने के बाद वहां भारतीय सेना भी पहुंची और आप कहते हैं कि चीन ने हड़प लिया है हमारी जमीन तो यह फिर भारतीय सेना पर ही सवाल हो जाता है.

भारतीय मीडिया की निर्लज्जता और दलाली की इससे बड़ी और कोई मिसाल नहीं हो सकती. सेना के नाम पर कसमें खाने वाले गिरोह आज मोदी जैसे निर्लज्ज मसखरा के बचाव में इस कदर उतर पड़ना बताता है कि देश एक बड़े खतरे से गुजर रहा है. इसके साथ ही दलाल मीडिया गिरोह का इस कदर सक्रिय हो जाना यह भी दर्शाता है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग मोदी सरकार युद्ध करने नहीं जा रहा है बल्कि वह चीन के साथ बड़े पैमाने पर आर्थिक समझौता यानी देश को बेचने का समझौता करेगा और बिहार-बंगाल के चुनाव में इसको भुनायेगा.

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