अभी कुछ समय पहले ही जब भाजपा विधायक के बेटे ने, जो अमेरिका में रह रहा है, अपने सोशल मीडिया पर जब भारतीय समाज पर एक कड़ी टिप्पणी किया था, तब वगैर इस पर विचार किये इसको लेकर पूरे जोर-शोर से शोर मचाया गया था. पर हकीकत यह है कि अमेरिका से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
उसकी अपनी व्यवस्था, कानून, आजादी, अनुशासन वगैरह. परन्तु, जब हमें सीखने की बारी आती है तो अमेरिका के कुछ बुरे पहलू को ही चुनते हैं, उसकी अच्छाइयों से मूंह फेर लेते हैं. अभी ही एक व्यक्ति की पुलिस द्वारा हत्या कर दिये जाने के खिलाफ समूचा अमेरिका ही उठ खड़ा हुआ, पर भारत में हजारों लोगों की हत्या कर दिये जाने के बाद भी सन्नाटा पसरा रहा.
पं. किशन गोलछा जैन (ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ) बता रहे हैं कि अपने अधिकारों के प्रति जागरूक अमेरिकी समाज से हमें क्या कुछ सीखना चाहिए.
आप ये तो जानते ही होंगे कि भारत के ये चुने हुए नेता जनता के कर के पैसे का अपने निजी संसाधनों में दुरूपयोग कर विलासितापूर्ण जीवन-यापन करते हैं लेकिन आपमें से ज्यादातर को यह पता ही नहीं होगा कि अमेरिकन प्रेजिडेंट को भी व्हाइट हाउस में रहने के लिये किराया देना पड़ता है.
सिर्फ रहना ही नहीं बल्कि उनके खाने में होने वाले खर्च का बिल भी अमेरिकन प्रेजिडेंट को अपनी जेब से ही देना पड़ता है जबकि अपने भारत में तो एक विशेष प्राणी एक पद विशेष पर काबिज होने के बाद काजू के आटे की रोटी के साथ 80 हजार रूपये किलो के मशरूम भी जनता के कर के पैसे की खाता है.
अमरीकन प्रेजिडेंट पर होने वाले हर निजी खर्च को उनकी सैलेरी से काटकर उन्हें सैलेरी दी जाती है जबकि यहांं तो मंत्री हो या संतरी जनता के पैसे से अपने बाथरूम तक में एसी लगवाकर एसी की ठंडी हवा खाकर गर्म हवा निकालता है.
अमेरिका में ऐसा इसलिये भी संभव है क्योंकि वहां के नागरिक न सिर्फ पढ़े लिखे और जागरूक हैं बल्कि वहां के संविधान में लिखे नियम कायदों को पढ़ते हैं. जबकि यहांं तो लोगो को धार्मिक किताबों और धार्मिक ठेकेदारों के प्रवचनों से ही फुर्सत नहीं मिलती. जागरूकता या मौलिक अधिकारों की बात तो छोड़िये, वे तो अपने बच्चों तक को धार्मिक मुर्ख बनाने का प्रयत्न उनके जन्म के साथ ही प्रारम्भ कर देते हैं.
अमेरिका में जब एक मांं से उसका अपने बच्चे के प्रति कर्तव्य पूछा जाता है तो वो बताती है कि वो अमेरिका के लिये एक जिम्मेदार नागरिक तैयार कर रही है, जो अमेरिकी कानूनों का पूरी तरह से पालन करे, जबकि यही प्रश्न भारतीय मांं से पूछा जाये तो, तो आपको पता ही है वो क्या कहेगी (पता न हो तो अपनी अपनी माताओं से पूछ लेना भई).
एक भारतीय मांं भारत के लिये एक जिम्मेदार नागरिक नहीं बल्कि एक धार्मिक जाहिल तैयार करती है, जिसमें लैंगिक भेदभाव कूट-कूट के भरा जाता है और फीमेल जेंडर को अपने कमतर और हीन समझने की भावना का तड़का लगाया जाता है, ताकि वो बलात्कार, मेरिटल अब्यूज या जेंडर अब्यूज को अंजाम दे सके. उसी में उसकी मर्दानगी सिद्ध होना समझाया जाता है.
अमरीका में एक पिता से जब उसका दायित्व पूछा जाता है तो वह बताता है कि 5 साल की उम्र से 14 साल तक की उम्र तक उसका दायित्व है अपने बच्चे के प्रति और वो उसी दरम्यान उसे जीने का तरीका सीखा देता है. शायद उसके किसी निर्णय में भी दखल दे देता है परन्तु 14 के बाद वो अपनी पूरी लाइफ अपने तरीके से जीने के लिये स्वतंत्र होता है (माता-पिता उसके किसी भी फैसले में न तो दखल देते है और न ही बिना पूछे कोई मशवरा देते हैं).
लेकिन यहांं भारत में संतान के अधेड़ होकर 2-3 बच्चों का पिता बनने के बाद भी माता-पिता उसके बच्चों तक के जीवन में दखल देते हैं और निर्णय करते हैं कि पौत्र क्या बनेगा और कैसे जियेगा (खुद का पैर कब्र में लटका हुआ होता है, मगर बहु क्या पहनेगी और क्या खाना बनायेगी तक का निर्णय वे करते हैं).
इसी वजह से ही ये नेता लोग इन्हें ऐसा ही रखना चाहते हैं ताकि कभी धर्म की आड़ लेकर तो कभी राष्ट्रवाद के नाम पर उन्हें बेवकूफ बनाकर उन्हें ऐसी भीड़ में निर्मित किया जा सके, जो उनके कहने पर दुसरो की जान भी ले ले और अपनी जान भी दे दे (अगर वे समझदार होकर इन नेताओं से सवाल करने लगे तो इनकी दुकानदारी दो दिनों में बंद हो जाये).
अमेरिका में एक 16 साल का लड़का खुलेआम अपनी गर्लफ्रेंड को अपने माता-पिता के सामने अपने घर में ला सकता है और उसे अपने कमरे में ले जा सकता है. अमेरिकन माता -पिता उससे उसकी गर्लफ्रेंड का नाम तक नहीं पूछते जबकि यहांं भारतीय मांं-बाप के सामने कोई बेचारा अपनी विवाहित पत्नी को भी कमरे में ले जाये तो पुरे मोहल्ले में जाकर खुद ही बता आते हैं कि बेटा इतना बेशर्म हो गया है कि मांं-बाप का लिहाज किये बिना ही अपनी बीवी के साथ कमरे में चला गया (भले ही वो बेचारा फिर अपनी बीवी को कमरे की सफाई के लिये ही लेकर क्यों न गया हो).
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