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क्या अब नेपाल के खिलाफ युद्ध लड़ेगी मोदी सरकार ?

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क्या अब नेपाल के खिलाफ युद्ध लड़ेगी मोदी सरकार ?

‘चीन की साजिश में फंसा नेपाल, पछता रहे पीएम ओली! भारत से बातचीत के लिए गिड़गिड़ाया काठमाण्डु’ – न्यूज 24

‘नेपाल के ‘नक्शे’ बाजी की निकली हवा, ठोस सबूत के बिना ही किया था दावा’ – आज तक

भारत सरकार को नेपाली सम्प्रभुता का सम्मान करते हुए अंग्रेजों द्वारा जबरन लादी गई असमान संधियों को रद्द कर, अपनी विस्तारवादी दादागिरी वाली भूमिका छोड़कर, अपने अतीत (2015 की आर्थिक नाकेबंदी) की गुंडागर्दी के लिए माफी मांगकर उसका उचित भू-भाग उसे वापस कर देना चाहिए. नेपाल के साथ यही एक मात्र सही और दोस्ताना तरीका हो सकता है.

गैर जिम्मेदार और मूर्ख मनुवादी भारतीय मीडिया ने देश की अन्दरूनी हालत को तो बर्बाद कर ही दिया है, अब वह अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों को भी बर्बाद करने पर जुट गया है. इस मूर्ख मनुवादी मीडिया ने जिस प्रकार देश के अंदर जातिवाद, धर्म को आधार बनाकर जहर उगलता रहा है और देश को साम्प्रदायिक दंगों को भड़काने की लगातार कोशिश करता रहा है, ठीक उसी तर्ज पर अब उसने नेपाल के साथ किया, जिसका परिणाम नेपाली सेना ने पहली बार किसी भारतीय को गोलियों से भून डाला, जिसमें 1 मारा गया और 4 घायल हुआ.

मोदी सरकार ने 18-18 घंटे और उसकी गिद्ध मीडिया ने 24-24 घंटे काम कर यह हासिल किया है कि हजारों सालों से जिस नेपाल के साथ हमारा घर-आंगन का संबंध रहा है, अब उससे हमारे दुश्मनागत संबंध हो गये हैं. इसके साथ ही अब हमारे तमाम पड़ोसी हमारे विरुद्ध खड़े हो गये हैं.

पाकिस्तान के साथ भारत का कारगिल युद्ध हो या चीन के साथ 1962 का युद्ध हो, हमने बुरी तरह शिकस्त खाई है. यहां तक कि पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध के वक्त भी हमारी सेना ने मूंह की खाई है और हजारों जानें खोई है. क्या अब मोदी सरकार इसका बदला नेपाल से युद्ध कर चुकाना चाहती है ? उससे भी बड़ा सवाल है कि अगर मोदी सरकार नेपाल से युद्ध का ऐलान करती है तो क्या वह नेपाल से भी युद्ध में जीत सकती है ?

उत्तर प्रदेश के महामूर्ख ढोंगी मुख्यमंत्री अजय कुमार बिष्ट उर्फ आदित्यनाथ ने नेपाल को जिस तरह धमकाकर अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर अपनी मूर्खता का ढोल पीटा है, उसका नतीजा भी तुरंत ही नेपाली प्रधानमंत्री ओली के बयान और नेपाली सेना के गोलियों ने दे दिया है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ अन्तर्राष्ट्रीय प्रकरण में गैर जिम्मेदाराना बयान देते हुए नेपाल को धमकाते हुए कहते हैं, ‘नेेपाल को देेश की राजनैतिक सीमाएं तय करने से पहले परिणामों के बारे में भी सोच लेना चाहिए. उन्हें यह भी याद करना चाहिए कि तिब्बत का क्या हश्र हुआ ?’ सवाल उठता है कि क्या अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में बयानबाजी के लिए यह मूर्ख आदित्यनाथ अधिकृत है ?

आदित्यनाथ की इस धमकी का फौरन जवाब भी आ गया. नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने साफ तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान को निंदनीय और आलोचनात्मक करार दिया है. नेपाल के प्रधानमंत्री ओली योगी आदित्यनाथ को भारत की केंद्र सरकार में एक निर्णायक व्यक्ति नहीं मानते हुए कहा, ‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगर वह इस तरह की बात करते हैं, तो यह आलोचना का विषय है. अगर वह नेपाल को धमकी देने की कोशिश कर रहा है, तो वह निंदनीय है. हम इसे नेपाल का अपमान समझते हैं. नेपाल इस अपमान के लिए तैयार नहीं है. मैं योगीजी को याद दिलाना चाहूंगा कि वह खुश नहीं हैं.’

वहीं, दूसरी ओर नेपाली सेना ने 5 भारतीयों को गोली से भून दिया और एक व्यक्ति को नेपाली सेना ने गिरफ्तार कर लिया, जो हजारों साल के इतिहास में पहली बार हुआ है, जिसका श्रेय केन्द्र की मोदी सरकार को जाता है.

मोदी सरकार के घृणा की राजनीति के परवान अब नेपाली जनसमुदाय के हत्थे भारतीय नीति नियंता चढ़ गये हैं, तभी तो जब एक नेपाली सांसद ने नेपाल सरकार के द्वारा जारी नये नक्शे पर जब अपना प्रतिवाद जाहिर किया तब वह पूरी नेपाली आवाम के गुस्से का शिकार हो गई.

इतना ही नहीं नेपाल सरकार के संविधान संशोधन प्रस्ताव को खारिज किए जाने की मांग करने वाली सांसद सरिता गिरि के घर पर हमला हुआ है. उनके घर पर काला झंडा लगाकार देश छोड़ने की चेतावनी दी गई है. इस घटना की जानकारी सांसद ने पुलिस को फोन पर दी, लेकिन पुलिस उनकी मदद के लिए नहीं पहुंची और तो और उनकी पार्टी ने भी उनसे किनारा कर लिया है. यहां तक की मधेशी पार्टी ने भी सरिता गिरि का समर्थन करने से इंकार कर दिया.

सरकार द्वारा नए नक्शे को संविधान का हिस्सा बनाने के लिए लाए गए संविधान संशोधन प्रस्ताव पर अपना अलग से संशोधन प्रस्ताव डालते हुए जनता समाजवादी पार्टी की सांसद सरिता गिरि ने इसे खारिज करने की मांग की है. वहीं, उनकी पार्टी ने उनको तुरंत यह संशोधन प्रस्ताव वापस लेने का निर्देश दिया है. साथ ही प्रस्ताव वापस नहीं लेने पर पार्टी से निलंबित करने की चेतावनी दी है.

इससे भी बढ़कर भारत की गिद्ध मीडिया नेपाल पर जिस तरह हमलावर हो रही है, नेपाल को नस्तेनाबूद करने की धमकी दे रही है, उसका हुक्का पानी बंद करने यानी आर्थिक नाकेबंदी की चेतावनी दे रही है यह ठीक उसी तरह की बात हो गई जो अब तक पाकिस्तान और चीन के खिलाफ किया जा रहा था.

आज नेपाल के साथ हजारों सालों का रिश्ता खत्म हो गया है तो इसके पीछे मोदी सरकार की दादागिरी वाली नीति ही जिम्मेदार है, जो वह हर मौके-बेमौके नेपाली आवाम को नीचा दिखाने का मौका गंवाने नहीं दे रही थी.

नेपाल के साथ रिश्तों की दरार उसी समय पर गई थी जब 2015 में नेपाली संविधान में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की मंशा से मोदी सरकार ने नेपाल पर आर्थिक नाकेबंदी लागू कर दिया था और नेपाल में खाद्यान्न, पेट्रोल जैसी बुनियादी चीज समेत हर प्रकार की चीजों के लिए हाहाकार मच गया था. किसी सम्प्रभुता सम्पन्न राष्ट्र के साथ इस तरह की धोखेबाजी किसी अंतरराष्ट्रीय नियम तो दूर सामान्य मानवता के भी विरुद्ध है.

मोदी सरकार के दुश्चरित्र का इससे भद्दा नमूना और क्या हो सकता है. ऐसे में मजबूरन नेपाली आवाम को चीन की ओर देखना पड़ा. ऐसे मुश्किल हालत में चीन ने भी नेपाल को निराश नहीं किया और भरपूर मदद किया और वह भी बिल्कुल मुफ्त. ऐसे में भारत का चिर सहयोगी नेपाल अगर चीन की ओर न जाता तो निश्चित रुप से उसे आत्महत्या करना होता. ऐसे में नेपाल का चीन के साथ मित्रता करना उसके आत्मसम्मान और जीवन के लिए बुनियादी जरूरत बन गया है. भारत जैसे नीच दादाओं से मुक्ति के लिए नेपाल बधाई के पात्र हैं.

सवाल उठता है कि क्या नेपाल भारत से युद्ध कर सकता है ? सवाल को उलटकर देखिए. क्या भारत नेपाल से युद्ध में जीत सकता है ? प्रथमतः तो इसकी संभावना बेहद कम है कि भारत नेपाल से युद्ध कर अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारेगा. अगर भारत नेपाल के साथ युद्ध करता है तो भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छबि और ज्यादा खराब होगी.

दूसरी नेपाल के गोरखा की 7 रेजिमेंट भारतीय सेना में है. भारतीय सेना में ऐसे सैनिक तैयार किए जाते हैं जो युद्ध के हर मोर्चे पर सफल साबित हो सकें. इन सैनिकों में गोरखा सैनिकों का स्थान ऊपर है. भारतीय थल सेना की रेजिमेंट में बेहद आक्रामक माने जाने वाली गोरखा रेजिमेंट दुश्मनों के लिए काल है. भारत के पूर्व थल सेनाध्यक्ष ‘सेम मॉनेक्शा’ ने कहा था कि ‘अगर कोई आदमी यह कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता या तो वह झूठ बोल रहा होता है या फिर वह ‘गोरखा’ है. यह वही स्वर्गीय सेम मॉनेक्शा है जो 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय थल सेना का नेतृत्व कर रहे थे.

यदि नेपाल के साथ भारत का युद्ध होता है तो निश्चित तौर पर गोरखा रेजिमेंट या तो नेपाल की ओर से भारत के खिलाफ युद्ध करेगा अथवा तटस्थ हो जायेगा. अगर गोरखा रेजिमेंट तटस्थ हो जाता है तब भी भारत की अन्य भ्रष्ट व नैतिक रुप से खोखला हो चुकी भारतीय सेना इमानदार व कर्मठ नेपाली सेना से कितना युद्ध कर सकेगा यह हम पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध में देख चुके हैं जहां भारतीय सैनिकों के गोला-बारूद में आटा भरे होने की खबरें खूब आती थी. अगर कहीं भारत की गोरखा रेजिमेंट ने भी नेपाल की ओर से युद्ध की घोषणा कर दिया तो इसकी पूरी संभावना है कि गाल बजाने वाली भारतीय सेना घुटने टेक दे.

लेकिन इस युद्ध का सबसे खतरनाक पहलू भारत के लिए तब साबित हो जायेगा जब चीन ने अपने नये मित्र नेपाल का साथ देने की घोषणा कर दें. तब तो युद्ध की कल्पना मात्र से ही भारत को सिहर उठना चाहिए. जब भारत पाकिस्तान से युद्ध में नहीं जीत सकता है तब भला वह नेपाल और चीन की संयुक्त सेना से खाक जीतेगा क्योंकि युद्ध गालबजाने और फिल्मों का पर्दा नहीं होता है.

ऐसे में भारत सरकार को नेपाली सम्प्रभुता का सम्मान करते हुए अंग्रेजों द्वारा जबरन लादी गई असमान संधियों को रद्द कर, अपनी विस्तारवादी दादागिरी वाली भूमिका छोड़कर, अपने अतीत (2015 की आर्थिक नाकेबंदी) की गुंडागर्दी के लिए माफी मांगकर उसका उचित भू-भाग उसे वापस कर देना चाहिए. नेपाल के साथ यही एक मात्र सही और दोस्ताना तरीका हो सकता है, युद्ध हमेशा ही भारत के लिए घाटे का सौदा साबित होगा.

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