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अगर हिमालय न होता …

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Manmeetमनमीत, सब-एडिटर, अमर उजाला

अगर हिमालय न होता तो भारत कैसा होता ? जवाब सीधा है कि उत्तराखंड, हिमाचल, कश्मीर और पश्चिम उत्तर प्रदेश शीत रेगिस्तान होते. पंजाब और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति न होती और मध्य भारत में इतनी गर्मी होती कि वहां पर रहने लायक कुछ भी न होता.

यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेट खिसकने से विशाल समुद्र टेथिस से हिमालय की उत्पत्ति हुई और भारत का वो भूगोल बना जिसमें आज एक अरब 33 करोड़ लोग रहते हैं. इस विशाल टेथिस समुद्र का प्रतिनिधित्व अब केवल लेह से 125 किलोमीटर दूरी पर स्थित पेंगोंग झील करती है, जो तीस प्रतिशत भारत क्षेत्र में है और बाकी का सत्तर फीसद चीन में. लाखों सालों की प्रक्रिया से जब हिमालय का निर्माण हुआ तो उससे तीन प्राकृतिक और भूगोलिक परिघटनायें हुई, जिससे भारत रहने योग्य बना. ये तीन परिघटनायें थी –

  1. मानसून बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न होता है और साउथ वेस्ट होते हुये हिमालय से टकराता है. बादल हिमालय से टकराकर लौटते हैं और जिससे उत्तरी भारत समेत राजेस्थान तक जमकर बारिश होती है, इससे उत्तरी भारत से लेकर मध्य और पश्चिम भारत को नई ऑक्सीजन मिलती है. जीवन खुशहाल रहता है. इस बारिश से तमाम नदियां, जल धारायें, जंगल और भूजल रिचार्ज होते हैं. अगर हिमालय नहीं होता तो ये मानसून के बादल सीधे पश्चिमी चीन होते हुये मंगोलिया से रूस के साइबेरिया में दाखिल हो जाता. मतलब, भारत में जो जून 21 या 22 तारीख को मानसून आता है और सितंबर आखिरी तक रहता है, वो केवल भारत के ऊपर से गुजरते वक्त कुछ बारिश करता और आगे निकल जाता, जिससे मध्य भारत का भूजल रिचार्ज नहीं होते और हिमालय की नदियों में पानी कम रहता. मसलन, जिन इलाकों में नहरों के जरिये खरीफ की फसलें होती हैं, वहां कुछ नहीं होता.
  2. हर साल जनवरी और फरवरी माह में उत्तरी ध्रुव से साइबेरिया होते हुये बर्फिली हवायें मंगोलिया पहुंचती हैं और वहां से चीन के शिंझियांग और तिब्बत होते हुये भारत में दाखिल होती है, जिससे साइबेरिया, मंगोलिया और चीन के शिनझिंगया, गिनगाई, गानसू और तिब्बत की तरह हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश शीत मरूस्थल होते. लेकिन हिमालय होते हुये ये चीन से लौट जाती है, जिस कारण चीन का गोबी मरूस्थल का निर्माण हुआ और आज वो पर्यावरण के हिसाब से शून्य है.
  3. मानसून के अलावा पश्चमी, मध्य और उत्तर भारत में बारिश का एक मुख्य जरिया भू-मध्य सागर से उठने वाली पश्चमी विक्षोभ है, जो हर साल अपने साथ यूरोप के नीचे से भू-मध्य सागर से वाष्पीकरण कर बादल विकसित करता है और फिर ये बादल पाकिस्तान से होते हुये हिमालय से टकराते हैं, जिससे जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर को छोड़ (पोस्ट मानसून) भारत में बारिश होती है और हिमालय और इससे लगते कैचमेंट एरिया में बर्फबारी होती है, ग्लेशियर बनते हैं और फिर 12 महीने गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र सरीखी बड़ी नदियों में पानी रहता है. तापमान गर्मी से ठंडा हो जाता है.

कुल मिलाकर हिमालय का हमारे जीवन में बड़ा योगदान है इसलिये इसे थर्ड पोल या तीसरा ध्रुव भी कहते हैं. एक प्रमाणिक तथ्य ये भी है कि हिमालय की अगर पूरी बर्फ भी पिघल जाये तो भी हिमालय से निकलने वाली कोई भी नदी नहीं सूखेगी. इसके पीछे मौसम विज्ञान केंद्र का शोध है. असल में, हिमालय के ग्लेशियर नदियों को 12 महीने पानी नहीं देते. मसलन, नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी और मार्च में ग्लेश्यिर पूरी तरह से फ्रीज होते हैं. तापमान -20 डिग्री तक हो जाता है तो ऐसे में फिर गंगा, यमुना, सिंधु, सतलुज, ब्रहमापुत्र जैसी नदियों में पानी कहां से आता है ?

मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं कि ये पानी मानसून में विभिन्न जंगलों में स्टोर हुये पानी के जरिये नदियों तक पहुंचता है, उसी तरह से जैसे मध्य भारत में नर्मदा और गोदावरी में 12 महीने पानी रहता है. इन दोनों नदियों में ग्लेशियर से पानी बिल्कुल भी नहीं आता.

मैंने उनसे पूछा कि फिर अगर हिमालय की पूरी बर्फ पिघल जाये तो क्या होगा ? वो बताते हैं फिर होगा ये कि हिमालय क्षेत्र में जबरदस्त गर्मी पड़ेगी और यहां रहना मुश्किल होगा, इसलिये हिमालय को सही संरक्षण की जरूरत है. सबसे पहले इसे पॉलीथिन से बचाना होगा क्योंकि ये ही एक ऐसा प्रदूषण है, जो हिमालय के लिये दीमक है. इसके लिये जागरूकता ही सबसे महत्वपूर्ण जरिया है.

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