Home गेस्ट ब्लॉग प्रतिवाद की जनतांत्रिक आवाजों पर दमन ‘सब याद रखा जाएगा…’

प्रतिवाद की जनतांत्रिक आवाजों पर दमन ‘सब याद रखा जाएगा…’

11 second read
0
0
1,018

प्रतिवाद की जनतांत्रिक आवाजों पर दमन 'सब याद रखा जाएगा...'

संजय श्याम, पत्रकार

राजसत्ता हमेशा निरंकुश होती है शोषणकारी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए. अपने नफा-नुकसान के हिसाब से कानून को और सख्त करती रहती है. वह नौकरशाहों के इशारे पर नाचती रहती है. यह कोई नई चीज नहीं है. अंग्रेजों के समय में इस व्यवस्था ने जनता को लूटा, निचोड़ा, लाठियों -गोलियों से बेदर्दी से शिकार किया और बड़े-बड़े कीर्तिमान स्थापित किए.

तथाकथित आजादी के बाद लूट, छूट, शोषण, भ्रष्टाचार पर आधारित व्यवस्था में केवल एक परिवर्तन आया. बकौल भगत सिंह गोरे साहबों के स्थान पर भूरे साहबो का कब्जा हुआ. इससे लूट -शोषण का न केवल वही ढांचा बना रहा, बल्कि मौजूदा व्यवस्था की हर हालत हिफाजत करने में कितने जालियांवाला बाग को भारतीय नौकरशाही ने अंजाम दिया, इसकी कोई गिनती नहीं है.

स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के स्थान पर उदारीकरण – निजीकरण और खुला बाजार की नीति लागू होने के बाद जिस तरह से महंगाई बढ़ी, बेरोजगारी बढ़ी, अमीरी-गरीबी की खाई चौड़ी हुई. मजदूरों – किसानों की समस्याएं बढ़ी, उसी हिसाब से सरकार ने नौकरशाही को चुस्त-दुरुस्त किया है. चुनावी मदारियों के आंदोलन से उसे कोई खतरा नहीं है परंतु ऐसे आंदोलन, जिसके न केवल संकेत मिल रहे हैं बल्कि कहीं-कहीं उभर रहे हैं या भविष्य में जिनकी बहुत संभावना साफ दिख रही है जिनका नेतृत्व क्रांतिकारी है या जनता का सच्चा प्रतिनिधि है, यह व्यवस्था के लिए खतरनाक है. नौकरशाही को इस तरह गठित किया जा रहा है कि वह सरकारी नीतियों को लागू करें. निरंकुश नौकरशाही व्यवस्था की जरूरत है.

03 जून, 2020 को प्रतिवाद की जनतांत्रिक आवाजों पर दमन के खिलाफ ‘सब याद रखा जाएगा…’. अभियान के तहत देशव्यापी प्रदर्शन था. इसी कड़ी में बिहार की राजधानी पटना में कल दो कार्यक्रम निर्धारित थे. पहला कार्यक्रम दोपहर में जेपी गोलंबर, श्री कृष्ण विज्ञान केंद्र के पास जन अभियान, बिहार के द्वारा आयोजित था और दूसरा कार्यक्रम शाम में 4:00 बजे बुद्ध स्मृति पार्क के पास सीएए-एनआरसी-एनपीआर विरोधी मोर्चा की ओर से  आयोजित था. दोनों कार्यक्रम में खासी संख्या में लोग जमा हुए और नागरिक अधिकारों के लिए काम कर रहे लोगों को गिरफ्तार किए जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया.

प्रदर्शन में शामिल लोगों ने कहा कि सरकार आम आदमी के हक में काम करने वालों का दमन कर रही है और वह जनतांत्रिक आवाजों को हर हाल में दबाना चाहती है. यह शर्मनाक है कि लॉकडाउन का फायदा उठाकर पिछले दो महीनों में दिल्ली पुलिस जो सीधे गृह मंत्री अमित शाह के नियंत्रण में है, ने जामिया के छात्र सुफूरा जरगर, मीरान हैदर, आसिफ इकबाल तन्हा, जेएनयू की छात्राएं नताशा नरवाल और देवांगना कलिता व इशरत जहां ,खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा, सरजील इमाम, शिफा उर रहमान जैसे कार्यकर्ताओं और अन्य सैकड़ों युवाओं को गिरफ्तार कर लिया है . सीएए के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शनों को दंडित करने के उद्देश्य से यह सब किया जा रहा है. अभी गिरफ्तारियों का सिलसिला खत्म नहीं हुआ है .

मालूम हो कि सीएए विरोध में पढ़े-लिखे मुस्लिम युवाओं और उसमें खास तौर पर युवतियों और बुजुर्ग महिलाओं की विशाल कतार सामने आई थी. यह बिल्कुल स्पष्ट था कि वे धर्मनिरपेक्षता और जनतंत्र के सिद्धांतों के आधार पर अहिंसक सत्याग्रह के जरिए नागरिक अधिकारों तथा नागरिक समानता की लड़ाई लड़ रहे थे. पिजड़ा तोड़ जैसे मंचों की गैर-मुस्लिम कार्यकर्ताओं को इस मुहिम में उपकथा की तरह जोङ दिया गया है. इस अभियान में उनकी भूमिका वही है जो भीमा कोरेगांव मामले में कथित शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी की है.

सच तो यह है कि मोदी ने केंद्र की सत्ता पर बैठते ही सभी देशवासियों के लिए अच्छे दिन लाने के जुमले का जोर-शोर से प्रचार प्रसार किया परंतु इसके उलट उसका काम रहा. जनता से झूठ बोलना, अंधराष्ट्रवाद का जहर फैलाना, धर्म की आड़ में अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत फैलाना, जनतांत्रिक व प्रगतिशील शक्तियों को खत्म करने के लिए पहले की तुलना में अधिकाधिक दमनकारी कानून बनाना.

जेपी गोलंबर पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदर्शन जब समाप्ति की ओर था तब कई गाड़ियों में प्रशासन की टीम आई और प्रदर्शन को तुरंत बंद करने का दबाव बनाने लगी, जिसका लोगों ने जमकर विरोध किया. तू-तू-मैं-मैं के बीच प्रदर्शन नियत समय 1:00 बजे दिन में समाप्त हुआ.

बुद्ध स्मृति पार्क पर आयोजित कार्यक्रम में भी वहां नियुक्त दंडाधिकारी ने कार्यक्रम को जबरन रोकना चाहा, इसके बावजूद कार्यक्रम चलता रहा. लोकतांत्रिक अधिकारो की मांग और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध की आवाज को बंद करने और दमन तेज करने के लिए नौकरशाही का करिश्मा देखिए – लेकिन हम हैं कि मानते ही नहीं. क्यों मानें ?

साथी आदित्य कमल की रचना देखिए –

दर्द जब आदमी का हद से गुजर जाएगा,
ये नहीं सोच वो बंदूकों से डर जाएगा,
उसे पता है बोलने की सजा क्या होगी,
मगर वो चुप रहा तो जीते जी मर जाएगा.

Read Also –

प्रभु शासन के छह साल, बेमिसाल
पुलिसिया जुल्म के खिलाफ अमेरिका से यह भी सीख लो
आजाद भारत में कामगारों के विरुद्ध ऐसी कोई सरकार नहीं आई थी
लंबी लेख पढ़ने की आदत डाल लीजिए वरना दिक्कतें लंबे लेख में बदल जायेगी
हिन्दुत्व का रामराज्य : हत्या, बलात्कार और अपमानित करने का कारोबार
क्या भारत में नरसंहार की तैयारी चल रही है ?

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…