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लकड़बग्घे की अन्तर्रात्मा !

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27 जुलाई को बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि वह अपनी अन्तर्रात्मा की आवाज पर ऐसा कर रहे हैं. प्रसंग लालू प्रसाद यादव के कुनबों पर नरेन्द्र मोदी के “तोता” सीबीआई की लगातार छापेमारी और बेनामी सम्पत्तियों का “पकड़ा” जाना है, जिसे भ्रष्टाचार से अर्जित माना जा रहा है.  इसके उपरांत मोदी के तोते ने एक मामले में लालू प्रसाद यादव के उपमुख्यमंत्री पुत्र तेजस्वी यादव का नाम एफआईआर में दर्ज कर दिया, जिससे नैतिकता के धनी अवसरवादी नितीश कुमार की अन्तर्रात्मा दहाड़ने लगी और उसने मुख्यमंत्री पद से फौरन इस्तीफा देकर बिहार विधानसभा भंग कर दिया.

सवाल उठता है कि क्या लकड़बग्घे की भी अन्तर्रात्मा होती है ? अगर हां, तो उसकी आवाज क्या होती है ? यह हम बिहार के लकड़बग्घे नितीश कुमार के मामले में नजदीक से देख और समझ सकते हैं.

2004 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौटी कांग्रेस पार्टी जब सोनिया गांधी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश करने की सोची तब उसे भारतीय जनता पार्टी के नंगे विरोध का सामना करना पड़ा. भाजपा के ही सुषमा स्वराज ने ‘‘विदेशी महिला’’ के प्रधानमंत्री बनने के खिलाफ अपने सिर मुंडा लेने तक की हिस्ट्रीआई अभियान चलाने लगी. ऐसे में भारत की राजनीति में पहली बार ‘अन्तर्रात्मा की आवाज’ की बात सुनी गई और देश को मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री के हाथों में सौंप दिया गया.

मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री घोषित करने का यह कदम सोनिया गांधी के द्वारा भारतीय संसदीय राजनीति में दिया गया एक सधा जवाब माना गया जिससे एकबारगी सारे विरोधी चित्त हो गये. परन्तु जैसा की लकड़बग्घा का स्वभाव होता है, वह हर लोकप्रिय नारों का इस्तेमाल अपने शिकार को भ्रमित करने के लिए करता है. इन लकड़बग्घों ने गाय, गोबर, गोमूत्र, गोरक्षा, श्रीराम, मंदिर, भारत माता, देशभक्ति, वंदे-मातरम् आदि जैसे शब्दों और प्रतीकों को अपनाकर देश की जनता को भ्रमित कर लोगों को आतंकित करना और खून बहाना और अपना तथा अपने शार्गिदों – अंबानी और अदानी जैसे काॅरपोरेट घरानों – का पेट भरना है. देश भर में आये दिन दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, मुसलमानों पर हमले करवा रहा है. समाज को विभाजित कर देश को लूटने और बेचने पर आमादा है.

इन लकड़बग्घों ने ‘‘अन्तर्रात्मा की आवाज’’ जैसी नारों का भी बखूबी इस्तेमाल करना सीख गया. इसका शानदार उदाहरण राजनीतिक अखाड़े के बड़े लकड़बग्घे बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने बिहार और देश की जनता के सामने पेश कर दिया है.

भारतीय संसदीय राजनीति के बड़े लकड़बग्घों में से एक नीतिश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से अपनी ‘‘अन्तर्रात्मा की आवाज’’ पर इस्तीफा दे दिया. इस लकड़बग्घे के इस्तीफा देने के साथ ही बिहार विधानसभा भंग हो गया और अगले ही दिन नितीश कुमार ने महाभ्रष्ट और देशद्रोही भाजपा के साथ मिलकर आनन-फानन में नई सरकार का गठन कर लिया.

इन लकड़बग्घों ने शानदार तर्क गढ़ा और लालू प्रसाद यादव व उनके कुनबे के भ्रष्टाचार से आजिज होकर अपनी ‘‘अन्तर्रात्मा की आवाज’’ पर इस्तीफा दे दिया. मौजूदा भारतीय जनता पार्टी वाली मोदी की केन्द्र सरकार के द्वारा प्रयोजित यह प्रक्रिया कोई अचरज नहीं है और न ही लकड़बग्घे नितीश कुमार का यह अवसरवादी सोच, जिसे वह अपनी अन्तर्रात्मा की आवाज का नाम दे रहे हैं.

जहां तक भ्रष्टाचार के साथ नीतीश कुमार के कभी समझौता नहीं करने की बात है, शिवानंद तिवारी इसे उनका राजनीतिक ढोंग करार देते हैं. वह सवाल करते हैं कि यह कैसी नैतिकता और ईमानदारी है जो सज़ायाफ्ता लालू प्रसाद के साथ चुनावी गठबंधन को तो जायज ठहराती है और भ्रष्टाचार के पुराने मामले में महज प्राथमिकी दर्ज किए जाने को गठबंधन तोड़ने का आधार बना देती है.

बिहार विधानसभा चुनाव में भारी पराजय से तिलमिलाये भारतीय जनता पार्टी देश भर में विपक्षी पार्टी के सरकार को विभिन्न तरीके से अस्थिर करने की लगातार नापाक कोशिश में लगी हुई है. उत्तराखण्ड, मणिपुर आदि राज्यों में सत्तासीन विपक्षी पार्टियों के विधायकों की खरीद-फरोख्त कर विपक्षी सरकार को गिरा कर खुद की सरकार बनाने के लिए अनेक हथकंडे केन्द्र की मोदी सरकार और उसके सहयोगी तड़ीपार अमित शाह अपनाते आ रहे हैं. बिहार के संदर्भ में सीबीआई और विधायकों की खरीद फरोख्त दोनों का इस्तेमाल किया गया.

राजनीतिक प्रेक्षकों की सुनें तो यह संयोग मात्र नहीं था कि एक तरफ भाजपा नेता सुशील मोदी ने अचानक लालू प्रसाद के कुनबे के कथित भ्रष्टाचार के मामलों को ‘दस्तावेज़ी सबूतों’ के आधार पर उजागर करना शुरू कर दिया और उधर सीबीआई, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय जैसी केंद्र सरकार की एजेंसियां लालू प्रसाद के कुनबे के भ्रष्टाचार के विरुद्ध सक्रिय हो गईं.

निश्चित तौर पर बिहार में हुए तख्तापलट से भ्रष्ट और अंबानी के एजेंट नरेन्द्र मोदी को फायदा होता दीख रहा है जो इस बात को रेखांकित करने के लिए काफी है कि इन रक्तपिपाशु  लकड़बग्घों के खिलाफ संघर्ष कितनी निर्ममता और कठोरता से चलाना होगा.

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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