कोरोन वायरस से बचाव के नाम पर भारत की पुलिस बकायदा माईक लगाकर घोषणा करती सुनी जा सकती है – अगर घर से बाहर निकले तो तोड़ देंगे शरीर का कोना-कोना, पर तुझको नहीं होने देंगे कोरोना.’ राजनेता व मंत्री को घोषणा करते सुना गया कि जो घर से बाहर निकले उसको गोली मार दी जाये. इन दोनों घोषणाओं का एक ही मतलब है लोगों की हत्या करना. उसके तमाम मानवाधिकारों को पुलिसिया बूट और गन तले कुचल देना.
ऐसा नहीं है कि उपरोक्त सभी घोषणाएं महज लफ्फाजी थी. इस देश में बकायदा इसका पालन किया गया. एक अपुष्ट सूचना के अनुसार लॉकडाऊन से अबतक तकरीबन 15 हजार लोगों की हत्या की जा चुकी है, जबकि किसी भी बीमारी से मरने वालों को कोरोना से हुई मौत बताने के सरकारी आदेशों के बावजूद इस अकथनीय जुल्म से की गई हत्या से बहुत कम है. इन हत्याओं में पुलिस द्वारा पिटाई, आत्महत्या, सड़कों पर चलते हुए भूख से मौतें, भटकती ट्रेनों में भूख से हुई मौतों व लॉकडाऊन के कारण उपजी हत्याओं को जोड़ने पर यह आंकड़ा और ज्यादा बढ़ सकती है.
कोरोना वायरस के नाम पर लूट का विशाल बाजार खड़ा हो गया है. मास्क, पीपीई किट, सेनिटाइजर, वेंटिलेटर, क्वारंटाईन सेंटर, टेस्ट किट आदि के नाम पर कई लाख करोड़ का बाजार बना लिया गया है क्योंकि लोगों को जबरन इसे खरीदने और इस्तेमाल करने के लिए बाध्य किया जा रहा है. वहीं सरकारी राजस्व की प्राप्ति के लिए भूख से मर रहे लोगों को गोदामों में बंद अनाज मुफ्त बांटने के बजाय उसे सड़ा दिया जा रहा है ताकि उससे शराब बनाया जा सके. विदित हो कि लॉकडाऊन में तमाम औद्योगिक व व्यवसायिक संस्थानों को बंद किये जाने के बावजूद शराब का धंधा खुलेआम किया जा रहा था.
दुनिया भर की सरकारें जनता के प्रतिरोध को पलक झपकते खत्म कर दिया. भारत में सीएए-एनआरसी जैसे जनविरोधी कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरी करोड़ों लोगों के प्रतिरोध को खत्म कर दिया और अब एक एक टार्गेट कर जेलों में बंद किया जा रहा है अथवा उनकी हत्यायें की जा रही है. शासकीय दमन को इस कोरोनावायरस के आड़ में छिपाया जा रहा है. बजटों और कानूनों को वगैर किसी प्रतिरोध या बहस के संसद से पारित कराया जा रहा है, राज्यों की विपक्षी सरकारों को गिराने की साजिशें चल रही है.
हालत यह हो गई है कि इस कोरोनावायरस की आड़ में जनता के तमाम सवालों को दरकिनार कर कॉरपोरेट घरानों की सेवा की जा रही है और जनता को भूखों मारा जा रहा है. पुलिस द्वारा लोगों की पीट पीटकर हत्या की जा रही है. ऐसे में कोरोनावायरस जैसी बीमारी का अस्तित्व पर ही संदेह के घेरे में आ जाता है. मो. मुद्दासीर इस बारे मेें बताते हुए कहते हैं –
WHO का मानना है कि Covid-19 का वैक्सीन शायद कभी नही बन सकता और इसका प्रकोप शायद कभी ख़त्म नहीं हो सकता. कुल मिलाकर WHO द्वारा दिया गया ये भाषण अपने आप मे संदेह के घेरे में हैं.
क्या सच में दुनिया भर में Covid-19 से मरने वालों की संख्या या संक्रमित हुए लोगों की संख्या Covid-19 का लक्षण है या रोजमर्रा की ज़िंदगी में होने वाली मौतों में अनगिनत बीमारियों व छोटे-मोटे फ्लू का प्रकोप है ?
क्या ऐसा नहीं लगता कि सैनिटाइजर को रोजमर्रा की ज़िंदगी में शामिल करने का एक खेल खेला गया है ? क्या ऐसा नहीं लगता दुनिया भर के बेवकूफ देशों से मोटे रकम खींचने का एक खेल खेला गया ? और बहुत सारे देशों के सरकारों द्वारा इस बीमारी के भय के नाम पे अरबों का घोटाला करने का संयत्र रचा गया ?
हम कौन-से मशीन पर विस्वास कर रहे हैं ? दुनिया भर में एकाएक टेम्परेचर नापने की मशीन अचानक से कैसे पहुंंच गई ? जो इससे पहले कभी किसी देश में प्रयोग में ही नहीं लाया गया. क्या ऐसा नहीं लगता इस नए मशीन में एक समय में दुनिया भर में सप्लाई करने का बहुत बड़ा बिज़नेस डील किया गया ?
क्या आप ये नहीं पूछ सकते कि जब नई बीमारी की पहचान करने का मशीन बना सकते हो तो वैक्सीन कैसे नहीं ? क्या आप ये नहीं पूछ सकते दुनिया भर में इस बीमारी को टेस्ट करने की मशीन एक समय में एक जैसी कैसे उपलब्ध कराई गई ? क्या ऐसा नहीं लगता इस बीमारी को भयवाह दिखाने के लिए बहुत सारे डॉक्टर्स को बली का बकरा बनाया गया ताकि लोगों में एक खतरनाक भय बन सके ?
कुल मिलाकर Covid-19 एक रहस्यमयी व्यापारिक खेल से ज्यादा कुछ नज़र नहीं आ रहा. मुझे ऐसा लग रहा है मानो दुनिया को अंडरकंट्रोल करने का एक मॉक टेस्ट हो और इस खेल को रिमॉन्ट द्वारा संचालित किया जा रहा हो. आपको क्या लगता है WHO दुनिया के साथ कौन-सा खेल, खेल रहा है ?
वहीं, संजय मेहता सवाल खड़े करते हुए अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखते हैं –
- यह किसी बीमारी से ज्यादा हमारे IQ का सवाल बनकर रह गया है.
- दुनिया की पहली ऐसी बीमारी है जिसमें पुलिस, प्रशासन, सरकार, नौकरशाह, नेता, मंत्री सब लगे हुए हैं.
- यदि Covid_19 महामारी है तो यह आस – पास दिखायी क्यों नहीं देता ? आपके आस – पास तो सब ठीक है !
- सिर्फ टीवी, मीडिया में ही कोरोना क्यों है ? आपके गली मुहल्ले में तो सब ठीक – ठाक है !
- क्या कोई महामारी सिर्फ टेस्टिंग के इंतजार में फैलने से रुकी रहती है ?
- आखिर इस बीमारी को खोजना क्यों पड़ता है ? यह बीमारी खुद सामने क्यों नहीं आती ?
- जब इम्यूनिटी ठीक – ठाक रहने से बीमारी से संक्रमित होने का खतरा कम है तब तो इम्यूनिटी बढ़ाने का प्रयास प्रमुखता में होना चाहिए ? लेकिन इम्यूनिटी बढ़ाने का प्रयास प्रमुखता में नहीं है, क्यों ?
- प्रमुखता में ग्लव्स, सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजर, पीपीई किट क्यों है ?
- जब आप खुद कह रहे हैं इम्यूनिटी अच्छा रहने से संक्रमित होने पर भी आदमी स्वतः ठीक हो जाएगा, फिर इम्यूनिटी बढ़ाने का राष्ट्रव्यापी अभियान कीजिए न ? डराने का अभियान बंद कीजिए.
- आखिर ऐसा क्यों है जहांं ज्यादा अस्पताल है, वेंटिलेटर है, जहांं लोग अस्पताल में ज्यादा भर्ती हुए, वहीं ज्यादा मौतें अस्पतालों में हुई ?
- करोड़ों – करोड़ मजदूर घर लौट गए और अभी सब गांंवों में हैं. अभी भी गांंवों में सब ठीक है. लाखों – लाख मजदूरों का 14 दिन का incubation period भी पूरा हो गया, गांंवों में न के बराबर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है, न लोग मास्क पहन रहे हैं. फिर भी सब ठीक कैसे है ?
- जब यह महामारी है तो अस्पतालों में पहले से भी कम भीड़ क्यों है ? सामान्य/ पुराने रोग वालों का इलाज करने से पूर्व Covid_19 जांच करने की आपाधापी क्यों ? हर मौत को Covid_19 बताने की बाध्यता क्यों है ?
- दुनिया भर के सावधानियों के उपाय बताए जाते हैं लेकिन आपके इम्यूनिटी को बढ़ाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया जाता है.
- आपको पूरे तंत्र, सरकार, सत्ता से डराया जाता है और बीमारी को बढ़ा-चढ़ा कर खतरनाक दिखाया जाता है.
- आपको मास्क नहीं पहनने पर पीटा जाता है, जुर्माना लगाया जाता है लेकिन इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए कहीं कुछ नहीं दिया जाता है.
- पूरी दुनिया में आपको बीमारी दिखाई जाती है लेकिन आपके मुहल्ले में सब ठीक – ठाक पाया जाता है.
- 95 प्रतिशत से ज्यादा लोग ठीक हो जाते हैं, फिर भी आपको मौत – बीमारी के नाम पर डराया जाता है.
- हज़ारों – हज़ार लोग लॉकडाउन के कारण सड़कों पर मर गये हैं, अवसाद से आत्महत्या कर लेते हैं, भूखे मर जाते हैं, नौकरी चली जाती है, इसके बावजूद भी सरकार अपना चुनावी एजेंडा ही चलाती रहती है.
- देश के डॉक्टरों पर भरोसा न करके विदेशी दिशनिर्देशों को माना जाता है, मनवाया जाता है. पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है.
- विदेशी गाईडलाईन के आधार पर अप्रमाणिक उपायों को बताया जाता है, जिससे आपके शरीर का कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है.
अंत में, यह कोई महामारी नहीं है. सिर्फ कह देने से महामारी नहीं हो जाएगी. मौत, बीमारी पहले भी थी, अभी भी है, आगे भी रहेगी. आप किसी भी मौत को कोविड बता कर डरा देंगे और कह देंगे की देखो इतने मर रहे हैं तो हम क्यों मानें ?
व्यापार, सरकार और वैक्सीन के खेल में आम आदमी को इस तरह पीस कर चटनी बना देना अन्याय की पराकाष्ठा है. बड़े स्तर पर आवाज का नहीं उठाया जाना यह बतलाता है कि हम भारतीय मानसिक तौर पर भयानक रूप से नियंत्रित कर लिए गए हैं.
सत्ता और सरकार जो चाहेगी वही होगा. चाहे आप बर्बाद हो जाएं, रोजी – रोजगार छीन जाए, कर्ज में डूब जाएं लेकिन सरकार आपकी कुछ नहीं सुनेगी. पता नहीं ऐसा क्यों महसूस होता है कि पिछले 5 – 7 बरस में हमलोग और बेवकूफ और डरपोक हो गए हैं.
वहीं, महेन्द्र कुमार जैन लिखते हुए कहते हैं कि सोचने वाली बात है, अगर कोरोना संक्रमित बीमारी है तो परिंदे और जानवर को अभी तक कैसे नहीं हुआ ? यह कैसी बीमारी है जिसमें सरकारी लोग और हीरो ठीक हो जाते हैं और आम जनता मर जाती है .. ? कोई भी घर में या रोड पर तड़प कर नहीं मरता, हॉस्पिटल में ही क्यों मौत आती है..?
यह कैसी बीमारी है, कोई आज पॉजिटिव है तो कल बिना इलाज कराए नेगेटिव हो जाता है..? कोरोना संक्रमित बीमारी है, जो जलसे में / रैली में / और लाखों के प्रोटेस्ट में नहीं जाता, लेकिन गरीब नॉर्मल खांसी चेक कराने जाए तो 5 दिन बाद लाश बनकर आता है..?
गजब का कोरोनावायरस है, जिसकी कोई दवा नहीं बनी फिर भी लोग 99% ठीक हो रहे हैं..? यह कौन सी जादुई बीमारी है, जिसके आने से सब बीमारी खत्म हो गई. अब जो भी मर रहा है कोरोना से ही मर रहा है.???
यह कैसा कोरोना है हॉस्पिटल में गरीब आदमी के जिस्म का महंगा पार्ट निकालकर लाश को ताबूत में छुपा कर खोल कर नहीं देखने का हुक्म देकर बॉडी दिया जाता है..? है कोई जवाब ? अगर है जरूर देना. अगर नहीं है तो सोचना कोरोना की आड़ में क्या चल रहा है ?
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