विनय ओसवाल, वरिष्ठ पत्रकार
जिस बीमारी के विषाणुओं ने विश्व में 1,55,000 लोगों को निगल कर नर्क में भेज दिया हो, उसकी भयावहता को बताने की जरूरत नहीं. उसी बीमारी के विषाणुओं को किन-किन देशों के, कौन-कौन लोग हिंदुस्तान की धरती पर लेकर आ सकते हैं, समय रहते उस ओर आंखें मूंदी रखना और बाद में भी इस बात की पड़ताल न करना कि किन-किन देशों के कौन-कौन लोग हिंदुस्तान की धरती पर इसे ले आये बल्कि गैर-जिम्मेदाराना तरीके से देश भर में ‘कोरोना’ फैलाने की तोहमत मुसलमान धर्म के अनुयायियों के एक छोटे से सम्प्रदाय के धर्म प्रचारकों ‘तब्लीगी जमायत’ के सर मढ़ देना, निश्चित ही किसी एक अकेली संस्था (मीडिया) का षडयंत्र नहीं हो सकता. यह एक उच्च स्तरीय षडयंत्र है, जिसमें देश की अनेकों एजेंसियां जिनके कंधों पर आपत्तिजनक मैटर मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित किये जाने पर रोक लगाने, दोषी संस्थानों को दण्डित कराने आदि की जिम्मेदारी है, यह सब करती क्यों नही दिख रहीं ? उनकी आंखें क्यों मिचि हुई हैं ? क्या इस सब में सत्ता की भी कोई परोक्ष भूमिका रही है ? यह तब तक नहीं कहा जा सकता है, जब तक इस बात की न्यायायिक जांच न हो और उसके परिणाम ऐसा स्पष्ट संकेत न दें.
देखने में यह भी आ रहा है कि मुस्लिम समाज के कुछ लोग विवेक हीन आचरण कर अपने समाज को कलंकित भी कर रहे है. इनकी मूर्खतापूर्ण हरकतों के कारण पूरी कौम बदनाम हो रही है. समझदार मुस्लिम भाइयों को इस पर अंकुश लगाने पर गम्भीर विचार करना चाहिए.
कोरोना के विषाणुओं के दुष्प्रभाव से हम भले ही मुक्त हो जाएं परन्तु कोरोना की पीठ पर बैठ कर नफरत के विषाणुओं ने देश की बहुसंख्या के दिमाग में यह बात ठीक से बैठा दी है कि ‘जमातियों’ ने ही जानबूझ कर हमारे देश में जगह-जगह धर्म प्रचारक के रूप में फैल कर और स्थानीय मस्जिदों में छुप कर जगह-जगह इस रोग को फैलाया है.
जगह जगह के प्रशासनिक अधिकारी भी गैर जिम्मेदाराना तरीके से टिप्पणियां करते रहे हैं. मीडिया कर्मी ‘मस्जिद से जमाती पकड़े गए’, ‘मुस्लिम बाहुल्य इलाके के घरों से पकड़े गए’, एक समुदाय के लोगों ने पकड़ने गई पुलिस पार्टी पर हमला अथवा पथराव किया, बीमारों को घरों से निकाल अस्पताल ले जाते चिकित्सा कर्मी और पुलिस बल के जवान हुए जख्मी, आदि-आदि खबरें टीवी पर दिन भर दिखाई और सुनाई जाती रही है.
लॉकडाउन में घरों में कैद इंसान विवश है इन्हें देखने सुनने के लिए, अखबारों में बड़ा स्थान घेरती ऐसी खबरें पढ़ने के लिए. मनोचिकित्सकों, विश्लेषकों का भी मानना है कि ऐसे विषाक्त माहौल में लॉकडाउन के कारण लम्बे समय तक घरों में कैद रहने से उनके दिल और दिमाग में ‘मुस्लिम जमातियों’ के प्रति घृणा ने गहरी पैठ बना ली है, और अवसर मिलने पर जघन्य नरसंहार जैसे अपराध कारित करा सकती है. देश में ऐसे प्रदूषित विचारों से गहरे संक्रमित हो गए अधिसंख्य लोग हैं, वे नरसंहार जैसे घृणित कर्म के कर्ता भले ही न बने, कट्टर समर्थक तो बन ही सकते हैं.
देश में पांंव पसार चुकी नफरत के इस माहौल में मैसूरु के सांध्यकालीन दैनिक ‘स्टार ऑफ मैसूर’ ने अपने 6 अप्रैल के अंक में संक्रमण फैलने वालों को डलिया में रखे सड़े सेव की संज्ञा देकर इन्हें ठिकाने लगाने और अच्छे सेव को सड़ने से बचाने का उपाय बता, अनचाहे नफरत फैलाने के माध्यम बन गए और इस माहौल में उसने पलीता लगाने का काम ही किया है हालांकि इसके लिए उसे खेद भी व्यक्त करना पड़ा है.
यह खेद व्यक्त करना भी कुत्सित प्रयासों को रोकने के लिए बने कानूनों की वैसे ही धज्जियां उड़ाने जैसा है, जैसा लॉकडाउन के दौरान खरीददारी को बाजारों में उमड़े लोग ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के प्रधानमंत्री के निर्देशों की सड़कों पर धज्जियां उड़ाते दिखते हैं. मैं जब समाज को इंसानों की ‘जमात’ समूह के रूप में देखता हूंं तो धर्म की फौलादी दीवारें भी रेत के ढेर-सी बिखर जाती हैं. प्लीज, नफरत के विषाणुओं को, जो कोरोना के विषाणुओं से हजारों गुना तेजी से संक्रमण फैलाता है, को तो फैलने से रोकिए.
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