गुरुचरण सिंह
Scientific Socialist Unity के वाट्सअप पर एक संदेश में बताया गया है इन चार बड़े फैसलों के बारे में जिनमें से अंतिम दो की ही पुष्टि कर पाया हूं क्योंकि लिखने का मन तो किसी और ही विषय का बनाया था और शोध के लिए समय भी कम था.
खैर, चारों का संबंध कोरोना वायरस से है, इसलिए यही उचित लगा कि कम से कम यह आपकी जानकारी में भी होना चाहिए. यह भी सही है कि बदली हुई राजनीतिक-प्रशासनिक संस्कृति में इन फैसलों के अलावा कुछ और की उम्मीद लगाना भी अपनी ही मूर्खता का ढिंढोरा पीटना होगा. मेरे एक मित्र कामरेड सुब्रतो चैटर्जी में तो इतनी कडुवाहट भर चुकी हैं कि वह इसे ‘सुप्रीम कोठा’ तक कहने लगे हैं ! न्यायालय में अत्यधिक आस्था रखने वाले लोगों के साथ अक्सर यही होता है; आम आदमी की तरह व्यावहारिक जो नहीं होते ऐसे लोग ! अक्सर व्यक्तिगत नफे-नुकसान का हिसाब नहीं लगा पाते इसीलिए उनकी प्रतिक्रिया भी उतनी ही मुखर होती है.
- कोरोना महामारी को सांप्रदायिक रंगत देने वाले मीडिया संस्थानों पर कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका पर कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया कि ‘प्रेस को रोक नहीं सकते.’
सैद्धांतिक रूप से तो सही ही कहा है उसने कि प्रेस रोका नहीं जा सकता, संविधान सम्मत है यह बात ! लोकशाही का चौथा पाया जो ठहरा. सरकारी कामकाज पर तीक्ष्ण नज़र रखने वाला एक ‘स्वतंत्र’ प्रतिष्ठान लेकिन प्रेस जब हिटलरी पैटर्न के तहत फेक न्यूज़ छापने लगे, सरकार का भौंपू बन कर काम करना आरंभ कर दे, तो भी क्या वह संविधान सम्मत है ?
आप कहेंगे उसके लिए प्रेस काउंसिल है न, वहीं जा कर शिकायत करें. अरे भैया, उसमें भी तो इसी प्रेस के नुमाइंदे बैठे हैं. वही अगर शिकायत सुनती तो कानून के व्याख्याता के पास क्यों आना पड़ता ? जहां संविधान मौन होता है, वहीं तो जरूरत होती है सुप्रीम कोर्ट की सांविधिक पीठ की !
- कोरोना के खतरे से निपटने के लिए भारतीय स्वास्थ्य सेवा का राष्ट्रीयकरण करने के लिए केंद्र सरकार को किसी भी प्रकार का निर्देश देने से इंकार !
वैसे इस तरह की किसी गुहार में कुछ भी गलत था कहां ? क्या कोरोना वायरस को राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं किया गया है ? राष्ट्रीय आपदा का राष्ट्रीय समाधान निकालने के लिए और एक ही कंट्रोल रूम से एक जैसी कार्रवाई भला क्यों नहीं हो सकती ?
हां यह दूसरी बात है कि मौजूदा निजाम शासन के सभी सूत्र अपने हाथ में रखने की जबरदस्त इच्छा के बावजूद किसी भी तरह के राष्ट्रीयकरण के खिलाफ है. मान लीजिए कुछ गलत सलत हो जाए तो उसका ठीकरा फोड़ने के लिए राज्यों का सिर तो सलामत रहना ही चाहिए न !
- PM CARES Fund के गठन की वैधता पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका खारिज.
इस याचिका का एक मुख्य मुद्दा यह है कि पीएम केअर्स फंड में दी जाने वाली राशि को कॉरपोरेट मंत्रालय CSR यानि कॉर्पोरेट-सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत मानता है जबकि मुख्यमंत्री फंड में दी जाने वाली राशि के साथ ऐसा नहीं है.
क्या यह विरोधाभास नहीं है ? सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों का स्वेच्छा से एक दिन का वेतन कटाना, ‘भामाशाहों’ का दिल खोल कर और दूसरे लोगों का सामर्थ्य के मुताबिक योगदान प्रधानमंत्री राहत कोष में हुआ करता था और उसे तो CSR भी नहीं माना जाता. इसी को ले कर विपक्ष सवाल उठा रहा था.
पीएम केयर्स फंड को लेकर की गई याचिका को पूरी तरह से गलत बताते हुए चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा है कि ‘यह कोई टैक्स वसूली का मामला नहीं है !’ कोर्ट ने अपील करने वालेे व्यक्ति पर नाराजगी जताते हुए कहा कि ‘इसके लिए हम आपके ऊपर कॉस्ट भी लगा सकते हैं !’
- सुप्रीम कोर्ट ने ‘सभी के लिए निजी अस्पतालों में कोरोना के मुफ्त जांच’ पर दिए गए फैसले को ही पलट दिया है. उसमें बदलाव करते हुए उसने अब इसे केवल ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ और ‘कम आय वर्ग’ तक सीमित कर दिया है !
‘आयुष्मान भारत’ योजना जब लागू की गई थी, तभी एक विस्तृत रिपोर्ट लिखी हमने इस बाबत. फिलहाल तो बस इतना जान लें यह योजना पैनल में चुने हुए ‘सुपर स्पेशियलटी अस्पतालों’ में उन लोगों के कैशलेस इलाज के लिए है जिन्होंने स्वास्थ्य बीमा करवा रखा है. स्वास्थ्य बीमा के पैनल में शामिल किसी भी अस्पताल से आयुष्मान भारत योजना में बिना पैसे दिए (कैशलेस) इलाज होता है. आम बीमारी के ईलाज के लिए तो वहां घुसने भी नहीं दिया जाता !
रही ‘कम आय वर्ग’ तक फ्री जांच को सीमित रखने की बात तो कोरोना वायरस व्यक्ति व्यक्ति में भेद करता है क्या ? यूके के प्रधानमंत्री, मंत्री और कनिका कपूर जैसी सेलेब्रिटी को भी नहीं छोड़ता ! इतनी बड़ी आबादी है हमारी और जांच किट या पीपीई किट ऊंट के मुंह में जीरे की तरह !
सब कुछ किताबों में ही नहीं लिखा होता, बहुत से समाधान तो सामान्य बुद्धि से भी निकाले जा सकते हैं.
Read Also –
ताइवान ने पारदर्शिता, टेक्नालॉजी और बिना तालाबंदी के हरा दिया कोरोना को
कोराना की लड़ाई में वियतनाम की सफलता
राष्ट्र के नाम सम्बोधन’ में फिर से प्रचारमन्त्री के झूठों की बौछार और सच्चाइयां
मौजूदा कोराना संकट के बीच ‘समाजवादी’ चीन
कोरोना वायरस के महामारी पर सोनिया गांधी का मोदी को सुझाव
स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करके कोरोना के खिलाफ कैसे लड़ेगी सरकार ?
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]