‘कोरोना वायरस से डरें नहीं, सतर्क रहें. बिहार सरकार आप सबकी सहायता हेतु तत्पर है, जो भी जरूरी मदद है, वह की जा रही है. आप सब से अनुरोध है कि आप सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें. सचेत रहें सुरक्षित रहें.’
– नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार (सूचना एवं जन-सम्पर्क विभाग, बिहार, पटना द्वारा जनहित में जारी), 13 अप्रैल, 2020.
आज पूरी दुनिया के लिए एक ही मंत्र है- सोशल डिस्टेंसिंग और अनुशासन का पूरा पालन करना। मुझे उम्मीद है कि भाजपा का हर कार्यकर्ता खुद की रक्षा करते हुए, अपने परिवार को भी सुरक्षित करेगा और इसे देश को भी सुरक्षित करेगा। इसी सिद्धांत पर हमें चलना है: पीएम मोदी #BJPat40
— BJP (@BJP4India) April 6, 2020
This #WorldHealthDay, let us also ensure we follow practices like social distancing which will protect our own lives as well as the lives of others. May this day also inspire us towards focusing on personal fitness through the year, which would help improve our overall health.
— Narendra Modi (@narendramodi) April 7, 2020
कोरोना से बचाव के लिए…
फिजिकल (शारीरिक) डिस्टेन्सिंग जरूरी है !!!
या
सोशल (सामाजिक) डिस्टेन्सिंग ?#समाज_बांटने_की_साजिश ?.— Navendu Singh. नवेन्दु सिंह. (@singh_navendu) April 4, 2020
गिरीश मालवीय
‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द गलत है समाज विज्ञानियों और डब्ल्यूएचओ का मानना है कि कोरोना वायरस के चलते एक-दूसरे से दूर रहने को ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ कहने से लोगों में गलत संदेश जा रहा है. डब्ल्यूएचओ ने भी अपनी प्रेस रिलीज में सोशल डिस्टेंसिंग की जगह ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ शब्द इस्तेमाल करने की बात कही है. डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल अपने ट्वीट में भी फिजिकल डिस्टेंसिंग ही लिख रहे हैं.
एक प्रेस रिलीज में डब्ल्यूएचओ की महामारी विशेषज्ञ मारिया वान करखोव के हवाले से कहा गया है कि ‘सोशल कनेक्शन के लिए जरूरी नहीं है कि लोग एक ही जगह पर हों, वे तकनीक के जरिए भी जुड़े रह सकते हैं. इसीलिए हमने इस शब्द में बदलाव किया है ताकि लोग यह समझें कि उन्हें एक-दूसरे से संपर्क तोड़ने की नहीं बल्कि केवल शारीरिक तौर पर दूर रहने की जरूरत है.’
लेकिन उसके बावजूद भारत में सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है और लॉ इंफोर्समेंट एजेंसिया इसे ध्येय वाक्य मानकर बैठ गई है. समाज वैज्ञानिकों का कहना है कि महामारी में सर्वाइव करना है तो लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के बजाय अपने सामाजिक संबंध मजबूत रखने होंगे.
सोशल डिसटेंसिंगनकी जगह सही शब्द, भौतिक या फ़िज़िकल दूरी या डिसटेंसिंग शब्द का इस्तमाल होना चाहिये। क्योकि सोशल डिसटेंसिंग समाजिक दूरी बनाने की बात की आवश्यक्ता नही बल्कि ऐसे समय दूरी कम करने की होती है १-२ सरे की मदद करने की होती है, ताकी वाईरस राक्षस को हराया जा सके।
— Naresh Jain (@ncjain50) April 8, 2020
अमेरिका की नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस और पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर डेनियल अल्ड्रिच शुरू से ही ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द के इस्तेमाल पर ऐतराज जताते रहे हैं. अपने शोधपत्र में प्रोफेसर डेनियल अल्ड्रिच ने युद्ध, आपदा और महामारियों से उबरने में सामाजिक संबंधों की भूमिका पर एक शोध किया है. उनका कहना है कि ‘आपातकाल में उन लोगों के बचने की संभावना ज्यादा होती है, जो सामाजिक तौर पर सक्रिय होते हैं. इस पत्र में कहा गया है कि बचने वालों में से एक बड़े तबके का कहना था कि वे इसलिए बचे क्योंकि किसी ने सही वक्त पर आकर उनके दरवाजे पर दस्तक दी या फिर समय रहते उन्हें फोन कर चेता दिया. यानी कि इस तरह के लोगों को जल्दी और आसानी से मदद मिल सकती है.
कड़वा सच तो यह भी है कि अधिक जनसंख्या घनत्व वाले इलाकों में सोशल डिस्टेंसिंग की बात करना दिवास्वप्न है, जहांं 1 कमरे में 8 लोग रहते हो, एक ही टॉयलेट इस्तेमाल करते हो, वहांं सोशल डिस्टेंसिंग सिर्फ छलावा है.
कोरोना वायरस से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ठीक शब्द नहीं है। सोशल डिस्टेंसिंग मतलब सामाजिक दूरी। क्या समाज से समाज की दूरी उचित है? सही शब्द है फिजिकल डिस्टेंसिंग अर्थात शारीरिक दूरी। आइये, फिजिकल डिस्टेंसिंग या शरीरिक दूरी शब्द का ही इस्तेमाल करें। @ChouhanShivraj @JagranNews https://t.co/0qOztM8e8B
— Sanjay Mishra (@sanjaymishra6) April 13, 2020
दरसअल सोशल डिस्टेंसिंग ‘एकला चलो रे’ सरीखा गलत संदेश देता है. यह यह सामुदायिक तौर पर कट कर रहने की सलाह देता है. यदि आपको इस्तेमाल करना ही था तो आप ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ का भी इस्तेमाल कर सकते थे, राजनीतिज्ञों ने भी इस बारे में बोलना शुरू कर दिया है. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा है कि ‘कोरोना से लड़ने के लिए ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की बजाए ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ शब्द पर जोर दिया जाए.’
दरअसल सोशल डिस्टेंसिंग शब्द आगे चलकर खतरनाक परिणाम देगा, और यह आगे चलकर सामाजिक ढांचे के धराशायी होने की वजह बन सकता है.
मीडिया सोशल डिस्टेंसिंग का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है, और अभी से इस शब्द के इस्तेमाल से समुदायों के बीच घृणा का वातावरण सृजित हो गया है, यह शब्द भाईचारा जैसे शब्द के विलोम शब्द के रूप मे इस्तेमाल किया जा रहा है, आगे चलकर हमे इस शब्द के प्रयोग के लिए जरूर अफसोस महसूस होगा.
Read Also –
राष्ट्र के नाम सम्बोधन’ में फिर से प्रचारमन्त्री के झूठों की बौछार और सच्चाइयां
नियोक्ताओं-कर्मियों के आर्थिक संबंध और मोदी का ‘आग्रह’
क्या कोठरी में बंद जिंदगी हिप्पी संस्कृति को जन्म देगी ?
भारत में कोरोना फैलाने की साजिश मोदीजी की तो नहीं ?
लॉकडाऊन : भय, भूख और अलगाव
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]