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कोराना की लड़ाई में वियतनाम की सफलता

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सभी जानते हैं कि बुद्धि दिमाग में होती है, परन्तु कुछ लोगों की बुद्धि टखनों में होती है. भारत इसका सर्वोत्तम उदाहरण है. भारत सरकार की बुद्धि उसके टखनों में है, जिस कारण इसकी बुद्धि काम नहीं कर रही है. वियतनाम जैसे छोटे पर बहादुर देश ने अपने बुद्धि का इस्तेमाल कर अमेरिका की शक्तिशाली सेना को परास्त कर दिया था और उसे वहां से वापस भाग जाने पर मजबूर कर दिया. उस समय वियतनाम के राष्ट्रपति होची मिन्ह एक तम्ब्बू में रहकर यह कहते हुए यह लड़ाई लड़ी कि ‘हमारे लिए भारी भरकम आवास तथा कार्यालय पर खर्च करने की जरूरत नहीं.’ परन्तु यह बात भारत के वर्तमान शासकों के पल्ले पड़ ही नहीं सकती.

आज जब COVID 19 के विश्वब्यापी प्रकोप से विश्व की महाशक्ति समेत भारत जैसे देश के शासक त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, वियतनाम पर COVOD 19 के कम से कम प्रभाव पड़ना, हमारे अय्याश शासकों के लिए सीखने की चीज हो सकती है. पर हमारे शासकों को जनता के लिए कुछ भी सीखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसे जनता से कोई लेना देना है ही नहीं.

कोराना के बचाव कार्य में वियतनाम के कुशल प्रबंधन के साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण कारण है कि वहां की मेहनतकश श्रमाधारित जीवन ब्यतीत करने वाले जनमानस की इम्यूनिटी क्षमता बहुत ही ऊंची है, जैसा कि सदियों से भारतीयों की भी इम्यूनिटी क्षमता प्लेग, मलेरिया, इन्फ्लुएंजा इत्यादि सहते आने और ताजा पका भोजन खाने के कारण हुई है. इसके साथ ही यदि भारत में भी वियतनाम की ही तरह विदेशों में रहनेवाले भारतीयों के वापस लाने में समुचित एहतियात बरता गया होता तो आज जो मजदूर वर्ग के सामने विकट समस्या आई है, इससे बचा जा सकता था. वियतनाम इस समस्या से कैसे निपटा है, इसी विषय पर सोशल मीडिया में अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज द्वारा लिखित लेेेख प्रसारित हो रहा है ‘महाबली नहीं बुद्धिमान होना जरूरी है.’ पाठकों के लिए पेश है.

कोराना की लड़ाई में वियतनाम की सफलता

चीन के बगल में छोटा सा देश वियतनाम है. यह चीन से लगभग 10 गुना छोटा है और इसकी आबादी लगभग साढे नौ करोड़ है. आप इसे कुछ-कुछ ऐसे समझ सकते हैं जैसे भारत के बगल में नेपाल है. वियतनाम भी एक कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित देश है. इसकी सीमाएं भी चीन से उसी तरह से खुली हुई है, जैसे भारत की नेपाल के साथ. दोनों देशों के लोगों की आवाजाही भी उसी तरह से है जैसे भारत-नेपाल के बीच है.

पूरे वियतनाम में कुल 1000 वेंटीलेटर भी उपलब्ध नहीं है और न ही उसकी स्वास्थ्य सुविधाएं चीन जैसे उच्च स्तर की है. विएतनाम में प्रति 10000 व्यक्ति पर मात्र 8 डॉक्टर उपलब्ध है. फिर भी पूरी दुनिया में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वियतनाम एक मॉडल स्टेट के रूप में उभर कर सामने आया है. उसने अमीर देश दक्षिण कोरिया के मॉडल से इतर सिर्फ प्रोएक्टिव तरीकों को अपनाकर कोरोना को मात दे दी है.

9 अप्रैल की तारीख तक पूरे वियतनाम में एक व्यक्ति भी कोरोना से मारा नहीं गया है और मात्र 300 के लगभग व्यक्ति ही इससे प्रभावित है. ऐसा नहीं है कि वियतनाम अपने रोगियों की संख्या को चीन की तरह छुपा सकता है क्योंकि यहां फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई पाबंदी नही हैं. आइए जानते हैं वियतनाम ने ये किया कैसे ?

  • सबसे पहले सभी स्कूलों को जून तक के लिए बंद कर दिया गया.
  • सरकार ने 1 फरवरी से ही चीन से आने जाने वाले सभी फ्लाइट्स को बैन कर दिया. सड़क मार्ग तो तभी से बंद थे जब जनवरी में चीन के वुहान में 27 फ्लू जैसे केस देखे गए थे.
  • 13 फरवरी से सभी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई.
  • देश के उस हिस्से को पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिया गया जहांं वुहान से आये हुए श्रमिक रुके थे.
  • पूरे देश मे मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया।
  • फिजिकल डिस्टेंसिंग के नियमों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराया गया.
  • जनवरी महीने तक जितने लोग विदेशों से आये थे, उन सबको खोजकर क्वैरेन्टाइन किया गया.

इन सब तरीकों का ही नतीजा है जो उनका देश बिना लॉकडाउन अपनी आर्थिक गतिविधियों को चालू रखे हुए है. मेरा एक दोस्त जो वियतनाम स्थित एक यूरोपियन केमिकल फैक्ट्री का मैनेजर है, उसने मुझे कल ही बताया उसके फैक्ट्री में पूरे जोर-शोर से काम हो रहा. फर्क बस इतना है कि डिमांड कम होने से थोड़ा प्रोडक्शन कम हो गया है.

वियतनाम की सफलता का राज वही है जो केरल का है. केरल के स्वास्थ्य मंत्री ने कल एक इंटरव्यू में कहा कि निपाह के अनुभव के बाद हम वुहान की खबर आने के बाद तैयार बैठे थे. जैसे ही वुहान से 4 एमबीबीएस के छात्र केरल लौटे, उनका एक्शन प्लान हरकत में आ गया. केरल में भी कोरोना से सिर्फ दो लोग मरे हैं. वहांं भी फरवरी से ही तैयारियां शुरू हो गई थी. नतीजा सबके सामने है.

ये दोनों उदाहरण हमें बताते हैं कि आपको किसी भी आपदा से निपटने के लिए महाबली होना जरूरी नहीं है, हां, संवेदनशील और बुद्धिमान होना जरूरी है. थाली-ताली, दिया-बाती जैसे शो-बाजी करने से अच्छा है कि आप इस तरह के कार्यों को करें.

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