अंग्रेजी में एक शब्द है ‘Scapegoat’ मतलब बलि का बकरा. पुराने जमाने में यहूदी पुजारी सांकेतिक रूप से लोगों के पाप बकरे के ऊपर डाल देता था और उसको जंगल में छोड़ देता था. इस तरह से scapegoat शब्द उसके लिए प्रयोग किया जाता है, जिसके ऊपर किसी और की गलती का दोषारोपण किया जाता है. ये शब्द आया भी यहूदी धर्म से था और आधुनिक इतिहास में सबसे पहले scapegoat भी यहूदी ही बने.
पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी की हालत बहुत खस्ता हो गई थी. अर्थव्यवस्था डूब चुकी थी, लोगों के पास काम नहीं था. एक तरफ भुखमरी थी, दूसरी तरफ राजनैतिक उठापटक चल रही थी. उस वक़्त पदार्पण हुआ हिटलर का. हिटलर ने एक तरफ जर्मनी को 5 ट्रिलियन की इकोनॉमी के सपने दिखाए, दूसरी तरफ जर्मनी की सारी दिक्कतों के लिए यहूदियों को ज़िम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया. उस ने कहा कि ‘जर्मनी का सारा पैसा यहूदियों ने छिपा रखा है, सारी नौकरी यहूदी खा गए हैं’ और फिर यहूदी बन गए scapegoat.
लेकिन फिर भी जर्मन यहूदियों से उतनी नफ़रत नहीं करते थे इसलिए हिटलर ने एक प्रोपेगैंडा विभाग बनाया. उसके दो हिस्से थे, एक सिनेमा, दूसरा समाचार. सिनेमा विभाग में ऐसी फिल्में बनाई गई, जिनमें यहूदी विलेन होते थे, बेईमान होते थे, गद्दार होते थे. कुछ ऐसा ही पैटर्न आप आज कल बॉलीवुड में देख सकते हैं – केसरी, पानीपत, तानाजी वगैरह.
दूसरी तरफ समाचार विभाग था, जो यहूदियों के बारे में फेक न्यूज प्रकाशित करता था. यहूदियों को जर्मनी विरोधी ठहराता था. ये पैटर्न आप भारतीय मीडिया में भी देख सकते हैं जो मुस्लिमों के खिलाफ लगातार फेक न्यूज चला रहे हैं. इस प्रोपेगैंडा के बाद वहां की जनता यहूदियों से बेइंतेहा नफ़रत करने लगी और बाद में यहूदियों के साथ जो हुआ वो इतिहास है.
भारत में भी सरकार महामारी को समय से रोकने में असफल रही. दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था जो पहले ही गड्ढे में थी, अब पाताल में जा रही है. ऐसे में सरकार को चाहिए था एक scapegoat, जिसके ऊपर अपनी गलती की ज़िम्मेदारी डाली जा सके और मुस्लिमों से अच्छा scapegoat कौन होगा.
लेकिन scapegoating की ये प्रक्रिया यहीं नहीं रुकती. ये प्रक्रिया फिर नरसंहार पर ही जा कर रुकती है, उस से पहले नहीं. एक विद्वान ने कहा था कि फासीवाद को एक दुश्मन चाहिए, अगर उसका कोई दुश्मन नहीं भी होता तो वो एक दुश्मन बना लेता है, क्योंकि बिना दुश्मन के उसका अस्तित्व ही खतरे में आ जाता है. चाहे फासीवाद नाज़ीवाद बन कर यहूदियों को दुश्मन बनाए, या संघवाद बन कर मुस्लिमों को या पूंजीवाद बन कर कम्युनिस्टों को.
और सबसे दुख की बात है कि फासीवाद का कोई Ctrl+Z का शॉर्टकट नहीं होता, जिससे उसको undo
किया जा सके. ये एक बार आता है तो बलि ले कर ही जाता है. आप कितना ही ज़ोर लगा लें, ये अब रुकेगा नहीं. नाज़ी भारत में आपका स्वागत है.
– विनिता सहगल
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