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दलित यानि दलाल राष्ट्रपति का चुनाव और आम आदमी

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अंग्रेजों के गुलाम भारतवासी इंगलैण्ड के राजा-रानी के तर्ज पर भारत में भी बतौर मुखौटे राष्ट्रपति पद का निर्माण किया है. इसके लिए पंचवर्षीय चुनाव के जरिये इन राजा-रानी का चुनाव किया जाता है. देश में बतौर शासक पार्टी भारतीय जनता पार्टी जानती है कि भारत में राष्ट्रपति पद का देश की नीति-निर्माण में कोई वजूद नहीं है, यही कारण है कि वह राष्ट्रपति पद के लिए बतौर लाॅलीपाॅप दलित उम्मीदवार को बड़े ही जोर-शोर से उतारा है. अगर हम अटलबिहारी बाजपेयी के शासनकाल में चयनित उम्मीदवार को याद करें तो वे देश के प्रख्यात वैज्ञानिक अब्दुल कलाम आजाद को उम्मीदवार के तौर पर बनाया था.

अगर हम उस वक्त को याद करें तो वह दौर था जब गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में कत्लेआम मचाया था. हजारों मुसलिम महिलाओं के साथ बलात्कार और दरिंदगी की गई थी. गर्भवती मुस्लिम महिलाओं को जिंदा जला डाला गया था. बच्चों को जिन्दा आग में जला डाला गया था. दुकानों को खुलेआम लूट लिया गया था. नौजवानों को काट डाला गया था. पूरा देश वरन् यहां तक कि विश्व मानव समुदाय एकबारगी इस दरिंदगी से सिहर उठा था. उसी दौर में मुस्लिम समुदाय की सहानुभूति हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने लोकप्रिय वैज्ञानिक ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आजाद को राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया और वे देश के राष्ट्रपति बने. पर जैसाकि सर्वविदित है, नीति-निर्माण में भारतीय जनता पार्टी अब्दुल कलाम आजाद के किसी भी फैसले को कभी नहीं माना और गठबंधन की सरकार चलाने के बावजूद राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के आपत्तियों को दरकिनार करता गया.

आज जब भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल किये हुए है और उसके लगातार एक के बाद एक जनविरोधी नीतियों के कारण देश तबाही के कागार पर जा पहुंचा है. काॅरपोरेटपरस्त नीतियों के कारण देश का जी.डी.पी. 6 अंक तक गिर चुका है. भ्रष्टाचार अब सदाचार में बदल चुका है. भाजपा सहित आर.एस.एस. के तमाम संगठन दिन रात देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो चुका है. सेना तक को राजनैतिक हित साधने के औजार में तब्दील किया जा चुका है. नये रोजगार मिलने के बजाय छंटनी और सृजित पदों को खत्म कर बेरोजगारी की विशाल पैदावार उगाई जा रही है. जनता की बुनियादी समस्या रोटी-कपड़ा-मकान-शिक्षा और चिकित्सा की समस्या को हल करने के बजाय देश को भावनात्मक तौर पर बरगलाया जा रहा है. जनता को भावनात्मक तरीके से ब्लैकमेल कर गाय, गोबर, गोमुत्र, सेना, हिन्दुत्व, राम आदि के जरिये उसे अफीम की मदहोशी में धकेला जा रहा है और विशाल पैमाने पर अंबानी-अदानी जैसे काॅरपोरेट घरानों की सेवा में देश की विशाल धनराशि को उसके चरणों में झोंका जा रहा है.

हिन्दुत्ववादी ताकतों के नाम पर दलितों को देश भर में पीटा जा रहा है. उनके घरों को जलाया जा रहा है. उनकी खुलेआम हत्यायें हो रही है. उनके पिटाई की जाती है और उसके विडियों बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित किया जा रहा है. मुसलमानों को आतंकबादी बताया जा रहा है और छात्रों को देशद्राही साबित किया जा रहा है. अपने जल-जंगल-जमीन की बात करने वाले आदिवासियों को नक्सलवादी और माओवादी बताकर गोली से उड़ाया जा रहा है. शिक्षण संस्थानों में दलित-आदिवासियों के बच्चे न पढ़ सके इसके लिए आरक्षण को समाप्त किया जा रहा है.

ऐसे माहौल में जब देश का प्रधानमंत्री मोदी विदेश में अंबानी घरानों का व्यापार बढ़ाने के लिए विदेश दौरों में जुटे हुए हैं. हिन्दुत्ववादी ब्राह्मणवादी ताकतों के आतंक तले देश का दलित समुदाय आतंकित है. ऐसे माहौल में देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव में दलित राष्ट्रपति के बतौर अपने पुराने परखे हुए एजेंट रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद के बतौर नामित किया है. मालूम हो कि रामनाथ कोविंद भाजपा से सांसद भी रहे और भ्रष्टाचार की गंगोत्री में मलाई भी खूब काटी है. पर मजेदार बात यह है रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाने के पीछे भाजपा की मंशा भाजपा और उसके ब्राह्मणवादी आंतक से पीड़ित देश की आम दलितों का मनोवैज्ञानिक तौर पर अफीम के नशे में डाल कर देश को अंबानी-अदानी घरानों के हाथों में गिरबी रखना है. देश के प्रसिद्ध ऐतिहासिक रेलवे स्टेशनों को कौड़ी के मोल बेचकर मोदी ने इसकी शुरूआत तो कर ही दी है.

इसी वक्त जब आम आदमी पार्टी देश के काॅरपोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ देश की आम आदमी की बुनियादी जरूरतों रोटी-कपड़ा-मकान-शिक्षा और चिकित्सा जैसे सवालों को हल करने में लगी है, राष्ट्रपति पद जैसे मुखौटे के चुनाव प्रक्रिया से भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इसे अलग करने का प्रयास किया है. इस प्रक्रिया के जरिये अंबानी-अदानी की एजेंट भाजपा और कांग्रेस दोनों ने देश को यह संदेश दिया है कि राष्ट्रपति के बतौर आम आदमी की मूलभूत समस्या देश के शासक वर्ग के लिए कोई मायने नहीं रखता और वह महज अंबानी-अदानी के लिए काम करने वाले अपने-अपने एजेंटों को ही राष्ट्रपति के पद पर देखना चाहता है. जनता चाहे तो अपने राष्ट्रपति स्वयं चुन सकती है, इस दलित-दलाल राष्ट्रपति के जगह पर.

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2 Comments

  1. S. Chatterjee

    June 28, 2017 at 12:12 pm

    There’s a hidden agenda to subvert democracy and Constitution with the help of a pliable President. Dark days are ahead.

    Reply

    • Rohit Sharma

      June 28, 2017 at 1:18 pm

      Right

      Reply

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