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तबलीगी जमात : संघी फ़ैक्ट्री सिर्फ़ झूठ फैलाती है

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तबलीगी जमात : संघी फ़ैक्ट्री सिर्फ़ झूठ फैलाती है

इंडिया टीवी पर कानपुर की कोई महिला डॉक्टर बता रही हैं कि उनके अस्पताल में जो तबलीगी भरती हैं, वो अपने हाथ पर थूक कर उसे अस्पताल की रेलिंग और दीवारों पर लगा रहे हैं लेकिन ‘हम लोग फिर भी इनकी सेवा कर रहे हैं.’ एक और अस्पताल ने आरोप लगाया है कि ‘तबलीगी नंगे होकर नर्सों के सामने अश्लील हरकत कर रहे थे और बीड़ी-सिगरेट मांंग रहे थे.

फ़ेसबुक पर धकाधक ख़बर शेयर हो रही है कि एक तबलीगी ने पुलिस पर थूका. एक महिला टीवी एंकर के हवाले से लोग बता रहे हैं कि तबलीगी बस के अंदर से भी उनके ऊपर थूक रहे थे. आगरा के किसी अख़बार ने लिखा है कि तबलीगियों ने भैंसे के गोश्त की मांंग की है और इलाज करने वालों को धमकी दी है.

आज के इस दौर में जब हर आदमी कैमरामैन बना फिर रहा है तो ताज्जुब की बात है इन सभी घटनाओं का एक भी वीडियो कोई नहीं सामने कर रहा है. कानपुर की डॉक्टर साहिबा के अस्पताल में सीसीटीवी तो होगा. नर्सों के साथ अश्लील हरकत वाले अस्पताल में सीसीटीवी तो होगा. तबलीगी नंगे घूमेंगे और अस्पताल के कर्मचारी पकड़ के सुताई नहीं करेंगे ? और वो भी यूपी जैसी जगह में ? जहांं दो मिनट में मुसलमान की लिंचिंग का सबब बन जाता है, वहांं एक आदमी तक नंगे तबलीगियों की वीडियो नहीं बनाएगा ?

अस्पताल में यदि कोई मुसलमान जगह-जगह थूक लगा रहा है वहांं कोहराम नहीं मच जाएगा ? उस अस्पताल में आए अन्य मरीज़ और उनके परिवार वाले वहीं हंगामा नहीं खड़ा कर देंगे ? क्या उस अस्पताल को पूरा फिर डिसइंफ़ेक्ट किया गया ? यदि हांं, तो उसकी किसी ने वीडियो नहीं बनाई ? और टीवी एंकर जिन पर थूका गया, जो वहांं कैमरे के साथ थीं, उनके पास भी वीडियो नहीं है ?

 

तबलीगी जमात के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ संघी आरोप पर जुबैद खान की टिप्पणी

आगरा वाले अख़बार ने लिखा है कि डॉक्टरों ने नाम न छापे जाने की शर्त पर ये बातें बताई हैं. किस बात का डर है डॉक्टर को अपना नाम देने से ? मुसलमानों से डर है ? पुलिस वालों पर थूकने वाला वीडियो वैसे ही झूठ निकल आया. जब लोगों को बताया कि वो झूठ है तो लोग कंधे उचका कर आगे बढ़ गए. किसी के पोस्ट पर कमेंट में एक साहब ने लिखा कि सब्ज़ी की ट्रक में तबलीगी छुप कर भाग रहे थे. मैंने विनती की कि वीडियो भेजिए तो बोले वीडियो तो नहीं देखा है.

संघी फ़ैक्ट्री सिर्फ़ झूठ नहीं फैलाती है, बेशर्मी का कोका कोला भी फ़्री में बांंटती है. लगभग हर कोई बड़े आराम से ये सारी फ़्रॉड ख़बरों को सही मानने को तैयार है. और यदि ख़बर झूठ निकल जाए तो मस्ती से अगले झूठ को सटकाने में लग जाता है.

मेरा भाई जो लखनऊ हाई कोर्ट में वकील है, मुझे कह रहा है कि नर्सों वाले मामले में सीएमओ की चिट्ठी है तो फिर बात सही है. मैं सोच रहा हूंं कि ये भाई तो मेरा वकील है, इसको नहीं मालूम किस तरह दिन रात सरकारी लोग फ़र्ज़ी चिट्ठी बनाते हैं और झूठ बोलते हैं ? किसी कोर्ट में चले जाओ. एक से एक नक़ली चिट्ठियों पर बहस होती मिल जाएगी.

दो महीने पहले दिल्ली पुलिस ने कहा कि हम जामिया की लाइब्रेरी में नहीं घुसे थे. वो झूठ था कि नहीं ? मोदीजी की डिग्री के बारे में तो बाक़ायदा दिल्ली विश्वविद्यालय झूठ बोलता रहा है. पिछले साल सरकार स्वयं बेरोज़गारी के आंंकड़ों के बारे में झूठ बोलती रही. इस साल प्रधानमंत्री कहने लगे की NRC नहीं होगा और डिटेंशन सेंटर नहीं है. वो झूठ नहीं है ? तो सीएमओ की चिट्ठी झूठ नहीं होगी ?

संघियों और संघी मानसिकता वाले हिंदुओं के झूठ लगातार बदलते भी रहते हैं. जब ये तबलीगी क़िस्सा शुरू हुआ तो मेरे एक भाई ने फ़ेसबुक पर हंगामा खड़ा किया कि बग़ैर पासपोर्ट और वीज़ा के ये तबलीगी कैसे आ गए ? ये ख़बर भी झूठी थी. कोई बात नहीं. मक़सद सच लिखना नही है. मक़सद मुसलमानों को बदनाम करना है.

मेरे एक दूसरे भाई बात-बात पर लिखते रहे हैं कि कश्मीर में तीन लाख पंडित मारे गए. मैंने एक दिन सरकारी आंंकड़े मांंग लिए तो एक नहीं दे पाए. जब मैंने उनको बताया कि 219 कश्मीरी पंडितों के मारे जाने के आंंकड़े हैं, तो एक बार भी नहीं बोला सॉरी, आगे ध्यान रखूंगा. दूसरा झूठ सरकाने में आगे लग गए.

अभी पिछले हफ़्ते मेरी किसी पोस्ट पर लिखा उन्होंने कि कांग्रेस तो 28-30% वोट पाकर सरकार बनाती थी. मैंने आधे घंटे चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मगज़मारी की और सारे आंंकड़े जमा किया. नेहरू को तो कभी चालीस फ़ीसदी से कम वोट मिले ही नहीं. राजीव गांंधी 1984 में 49 फ़ीसदी वोट झटक गया था. मुझे ख़ुद आश्चर्य हुआ ये पढ़ कर कि 1998 और 1999 में जो वाजपेयी पीएम बने थे दरअसल कांग्रेस का वोट शेयर बीजेपी से अधिक था. ये सब लिखा उनको. कोई जवाब नहीं आज तक उनका आया है.

मैं सोचता हूंं ये मेरे हिंदू भाइयों को क्या हो गया है ? क्या झूठ के सहारे हम सच्चे हिंदू बन सकते हैं ? क्या हम लोग भूल गए हैं कि हमें गांंधी जी ने सिखाया था कि सच बोलने की कोशिश करते रहो ? क्या इतना ब्रेनवॉश हो चुकी हमारी क़ौम का कि हम सच ही पहचानना भूल गए हैं ?

कई लोग लिखते रहते हैं कि आज का भारतीय हिंदू हिटलर के ज़माने के जर्मन लोगों की तरह हो गया है. ये सही बात है. आज से आप पचास साठ साल पहले तक के अमेरिका में देखें तो गोरे लोग अनाप-शनाप आरोप लगा कर कालों पर अत्याचार करते थे और उनकी लिंचिंग करते थे. पुलिस-वकील-अदालत सब गोरों के थे और वो उनका साथ ही देते थे. फ़र्ज़ी आरोप लगाते थे कि अमुक काले ने चोरी की, या गोरी लड़की को सीटी मारी, या बलात्कार किया, इत्यादि.

दुनिया के कई समाज ऐसे हैं जो अल्पसंख्यकों के बारे में गंदी से गंदी बातें फैलाते हैं और उसका प्रचार करते हैं, और नफ़रत पैदा होने के बाद उन अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करते हैं. पाकिस्तान में ऐसा दुष्प्रचार वहांं के अल्पसंख्यकों के बारे में किया जाता है. किसी को भी पकड़ कर कह देते हैं कि इसने पैगंबर मुहम्मद साहब के बारे में ग़लत बोला, और फिर सब उसकी जान के प्यासे जाते हैं.

मैंने ख़ुद अपने पूरे बचपन अपने रिश्तेदारों और अड़ोस-पड़ोस के हिंदू परिवारों में मुसलमानों के बारे में गंदी से गंदी बातें सुनी हैं कि ये मुसलमान कसाई होते हैं, किसी का भी गला काटने में इनको रत्ती तकलीफ़ नहीं होती है. यहांं तक सुना कि ये मुसलमान पाख़ाना करने के बाद साबुन से हाथ तक नहीं धोते. ऐसी ही नफ़रत की खेती चल रही है.

अभी तक एक भी सबूत मेरे सामने नहीं आया है कि तबलीगी जानबूझकर कोरोना फैला रहे थे, या छुप रहे थे, या नंगे घूम रहे थे, या बीड़ी मांंग रहे थे, या पुलिस को मार रहे थे, या ऐसा कुछ भी कर रहे थे. ये सबूत भी नहीं आया है कि ये अपने साथ कोरोना लेकर आए. कोरोना ऊपर वाले ने सीधे इनके अंदर नहीं डाला. इनमें भी किसी और इंसान से आया होगा. कोई नहीं कह सकता कि वो कहांं से आया. और एक आख़िरी बात. आपको मालूम ही नहीं कि तिरुपति या शिरडी या अयोध्या में या अनगिनत अन्य जगहों पर जो हिंदुओं की भीड़ जमा हुई तो वहांं कोरोना फैला कि नहीं क्योंकि आप टेस्टिंग ही नहीं कर रहे हैं तो पता कैसे चलेगा ?

श्रीमद्भागवत गीता का श्लोक है —

क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।।

अर्थात् — क्रोध से इंसान की मति मारी जाती है और बुद्धि का नाश होता है. और जब बुद्धि का नाश होता है तो उस इंसान का ही सर्वनाश हो जाता है.

मुसलमानों से ऐसी नफ़रत हो चुकी है हमें कि हम हिंदू भी इसी राह पर चल निकले हैं. इसके दुष्परिणाम बहुत भयानक होने वाले हैं हमारे लिए. ठीक वैसे ही जैसे हिटलर के जर्मनी में उसके सम्मोहन में फंसे करोड़ों के हुए थे.

  • अजीत साही

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