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कामगारों की हर उम्मीद मोदी सरकार से टूट चुकी है

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कामगारों की हर उम्मीद मोदी सरकार से टूट चुकी है

गिरीश मालवीय

दिल्ली के आनंद विहार बस स्टैण्ड पर जमा होती 25-50 हजार लोगों की भीड़ को देखकर अब मोदी सरकार के हाथ-पांव फूल रहे हैं. क्या इस सरकार को यह अंदाजा नहीं था कि यदि 21 दिन का लॉक डाउन आप कर देंगे तो सारे कामकाज बंद हो जाएंगे ? और ये लोग जो दिहाड़ी मजदुर है, जो दिन में कमाते हैं, उसी से रात में खाते हैं, ऐसे लोगों का क्या होगा ? ये क्या करेंगे ? क्या खाएंगे ? कैसे रहेंगे ? आखिर इन 4 दिनों में क्या हुआ है, वह भी जान लीजिए.

लोग बस ट्रेन बंद होने की वजह से पैदल ही 500-800 किलोमीटर दूर अपने घरों की और निकल लिए और मोदी सरकार राज्य सरकारों के साथ चिठ्ठी-पतरी खेलती रही. राज्य सरकारें भी अपनी बस सेवाएं चलाने के लिए केन्द्र से मंजूरी का इंतजार करती रही, मंगलवार को उत्तराखंड सरकार ने एक सार्वजनिक नोटिस जारी कर कहा कि वह दिल्ली में फंसे प्रवासी उत्तराखंडियों को लाने की व्यवस्था करने के लिए तैयार है लेकिन बुधवार रात को देशव्यापी लॉकडाऊन लागू होने के कारण राज्य सरकार ऐसा नहीं कर पाई क्योंकि उसे बस सेवा संचालित करने की अनुमति नहीं मिली.

जबकि लॉकडाऊन की स्थिति में भी 25 फीसदी बसे आवश्यक सेवा के लिए चालू रहती है. देश की निजी विमानन कंपनियों स्पाइसजेट, इंडिगो और गोएयर ने भी प्रवासी कामगारों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए अपनी सेवाएं देने की पेशकश की, गो-एयर और इंडिगो ने सरकार से कहा कि वह कामगारों को उनके गृह राज्यों तक पहुंचाने के लिए अपने विमानों का इस्तेमाल करने को तैयार है. इंडिगो के सीईओ धनंजय दत्ता ने नगर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी को बताया, ‘देश में संकट की इस घड़ी में इंडिगो लोगों की जान बचाने में सहयोग करने के लिए पूरी तरह तैयार है लेकिन सरकार मूक दर्शक बन कर बैठी रही उसने ऐसी उड़ानों की अनुमति देने की कोई मंशा जाहिर नहीं की.

इस बीच यात्रियों की बढ़ती हुई संख्या देख राज्य सरकारो ने जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान की सरकारों ने इन लोगों को अपने घर पहुंचाने का फैसला लिया. योगी सरकार ने एक हजार रोडवेज बसों की व्यवस्था की, इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी जिलों के डीएम, एसपी और एसएसपी को इन बसों को न रोके जाने का निर्देश दिया. गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने शुक्रवार को राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजे पत्र में कहा, ‘मैं इस बात से वाकिफ हूं कि राज्य इस बारे में कई कदम उठा रहे हैं लेकिन असंगठित क्षेत्र के कामगारों खासकर प्रवासी मजदूरों में बेचैनी है. इस स्थिति पर तुरंत काम करने की जरूरत है.’

अभी भी केंद्र सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि इन लोगों का क्या करें. गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की है और उनसे इस वक्त मजदूरों का पलायन रोकने को कहा है. गृहमंत्रालय ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश जारी किया है, जिसके तहत राज्यों से कहा गया है कि मजदूरों के लिए SDRF फंड से राहत शिविरों की व्यवस्था की जाए लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है. यह मजदूर अब शायद इन राहत शिविरों में रहने को तैयार नही होंगे और यदि मोदी सरकार यह कदम 3 दिन पहले उठा लेती तो शायद इन्हें कुछ उम्मीद बंधती. अब कामगारों की हर उम्मीद मोदी सरकार से टूट चुकी है.

कल रात लिस्ट में छिप कर बैठे हुए बहुत से बीजेपी के आईटी सेल के कार्यकर्ताओं के चेहरे से नकाब खिंच गया. कल शाम से दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. रात होते-होते प्रवासी कामगारों का सैलाब बस अड्डे से लगी सड़क पर था. इस घटना को देशी क्या, विदेशी मीडिया भी दिखाने लगा. हम जैसे लोग जो प्रवासी कामगारों के पलायन पर पिछले तीन-चार दिनों से लगातार लिख रहे थे, उनकी पोस्ट पर आकर भी यही लोग अफसोस प्रकट कर रहे थे, कि इनकी मदद की जानी चाहिए. लेकिन रात को एक ट्वीट आया और सारा माहौल एक सेकंड में बदल गया. ट्वीट था बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय का.

मैंने इसके बाद ऐसे-ऐसे लोगों के चेहरे से नकाब हटते देखा, जिनके बारे में मैं सोचता था कि यह लोग कम से कम स्वतंत्र सोच के मालिक हैं. अचानक जैसे कोई ट्रिगर-सा दबा और दनादन हर तरफ से लिस्ट में मौजूद लोग ठीक उसी आशय की पोस्ट सोशल मीडिया पर करने लगे, जो भाषा इस ट्वीट में थी. आश्चर्यजनक रूप से सब एक ही भाषा बोलने लगे. यह कुछ वैसा ही था जैसे जंगल में एक सियार हुआ हुआ चिल्लाता है तो जंगल के अलग अलग हिस्से में मौजूद सियार भी उसकी आवाज में आवाज मिला कर हुआ-हुआ चिल्लाते हैं. ठीक वैसे ही अलग-अलग शहरों में बैठे आईं टी सेल के सियार अपने चीफ सियार के सुर से सुर मिलाकर हुया-हुआ करने लगे.

दिल्ली में प्रवासी कामगारों की बढ़ती भीड़ का जिम्मेदार केजरीवाल को ठहराया जाने लगा. उन पर आरोप लगाया गया कि केजरीवाल दिल्ली से प्रवासी मजदूरों कोे भगा रहे हैं और दिल्ली से उत्तर प्रदेश बॉर्डर की तरफ धकेल रहे हैं, जबकि 26 मार्च को ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ट्वीट कर चुके थे कि यूपी सरकार ने कामगारों की मदद के लिए 1000 बसों का इंतजाम किया हुआ है. इसके अलावा भी प्रवासियों की मदद के लिये एक प्रशासनिक आदेश जारी किया था, जिसमें बिहार उत्तराखंड के प्रवासी कामगारों की हर तरह से मदद की जाएगी.

आप ऐसा आदेश दे और आप बोले कि कोई घर से न निकले, ये दोनों बातें एक साथ कैसे संभव है ? दिल्ली की लगभग 60 फीसदी आबादी पूर्वांचल से आकर बसे कामगारों की है. यहां उन्हें काम नही मिलेगा. लॉकडाऊन लंबा खिंच सकता है, यह कोई भी सहज बुद्धि से अंदाजा लगा सकता है. इसके अलावा गांवों में यह रबी की फसल का सीजन है. वहां एक बार फिर भी रोजगार मिल सकता है, अन्न मिल सकता है, यह बात सभी के जहन में रही होगी इसलिए मजदूर बड़ी संख्या में पलायन कर गए.

बस अड्डे की भीड़ यह बता रही थी कि लोग परेशान हो चुके हैं, सरकारी दावे पर उन्हें अब यकीन नहीं रहा. कल पब्लिक इनकी बात सुनने को तैयार नहीं थे. राहत शिविर की बात हो या मकान मालिकों द्वारा किराया नहीं लिया जाएगा, इस बात पर कोई यकीन नही कर रहा था. कल यही भीड़ जब थाली बजा रही थी तो बहुत भली लग रही थी, आज उसी भीड़ को दोष दिया जाने लगा.

रात में रिपब्लिक चैनल खोल कर देखा तो बिलकुल वही भाषा बोली जा रही थी जो हमारे तथाकथित मित्र बोल रहे थे. बिल्कुल सेम भाषा और ऐसा भी नहीं है कि भीड़ सिर्फ दिल्ली के आनन्द विहार बस अड्डे पर ही थी, हर वो बड़ा शहर जिसके आसपास ऐसे औद्योगिक क्षेत्र थे, वहां के बस अड्डे पर या शहर से बाहर जाने वाले नाकों पर ऐसी ही भीड़ थी, लेकिन चैनलों पर केवल आनंद विहार की चर्चा थी इसलिए लोगों का ध्यान उसी पर रहा. एक बात तो अच्छी तरह से समझ में आ गयी कि ये लोग रंगे सियार थे और अब इनका रंग उतर चुका है.

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