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मज़दूर वर्ग के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स की स्मृति में

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मज़दूर वर्ग के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स की स्मृति में

संजय श्याम, पत्रकार

कार्ल मार्क्स, जिनका जन्म 5 मई 1818 को हुआ था, इस दौर के सबसे महान चिन्तक थे. उनके क्रांतिकारी विचारों ने दुनिया के मजदूरों को मुक्ति का रास्ता दिखाया और समाजवाद के लिए संघर्ष की प्रेरणा प्रदान की. वर्ष 5 मई 2018 को कार्ल मार्क्स का 200 वां जन्म दिवस था. महान नेताओं का जन्म दिवस या मृत्यु दिवस और उनसे जुड़े ऐतिहासिक क्षणों की जयंती का समय एक आदर्श परिस्थिति होती है, जब उनके द्वारा किये गये काम और उनके योगदानों का मूल्यांकन करते हुए वर्तमान समय में उसकी प्रासंगिकता पर गहन चर्चा और बहस की जाये.

कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा लिखित ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ का प्रकाशन फरवरी 1848 में हुआ था, जिसकी 170 वीं जयंती फरवरी 2018 में मनाई गई. इसके ठीक पहले 2017 की शरद ऋतु में पूंजी की 150वीं जयंती मनाई गई थी, जिसके प्रथम खण्ड का प्रकाशन 1867 में हुआ था.

कहा जाता है कि उनके विचारों ने मानवजाति के इतिहास में सबसे ज्यादा प्रभाव डाला है. मार्क्स के विचार व्यापक और बहुआयामी हैं. उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद के विचार को विकसित किया जिसका तीन मुख्य घटक तत्व थे :

1. द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद,
2. राजनैतिक अर्थशास्त्र और
3. वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त.

संक्षेप में, उन्होंने ठोस परिस्थिति का ठोस विश्लेषण किया. इस तरह के विश्लेषण के आधार पर मार्क्स ने इतिहास की सही व्याख्या की, पूंजीवाद की बारीकियों को उजागर किया तथा समाजवादी और साम्यवादी क्रांति की जरूरत को रेखांकित किया.

उन्होंने अर्थनीति, राजनीति, दर्शन, इतिहास, संस्कृति, समाजशास्त्र, विज्ञान और अन्य विषयों पर विस्तार से लिखा. उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद की नींव रखी और सर्वहारा महिला आन्दोलन व पर्यावरण आन्दोलन के लिए वैज्ञानिक आधार प्रदान किया. उन्होंने नस्लवाद-विरोधी और जाति-विरोधी जैसे आन्दोलन को भी देखा.

लेकिन उनका मजबूत किला केवल उनके विचार नहीं थे. वे अलग-अलग देशों के विभिन्न ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा गठित प्रथम वर्किंगमेन एसोसिएशन (कामगार संघ, जिसे प्रथम कम्युनिस्ट लीग कहा जाता था) में सक्रिय थे. उन्होंने जर्मन वर्क्स एसोसिएशन का गठन किया (हालांकि वे उस समय बेल्जियम में रह रहे थे). कम्युनिस्ट लीग की ओर से ही मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र लिखा था. इस प्रकार, उन्होंने सर्वहारा अन्तर्राष्ट्रवाद के सिद्धान्त को व्यवहार में लागू किया था, जिसे उन्होंने पूंजीवादी राष्ट्रवाद के विरोध में प्रतिपादित किया था.

इस सभी गतिविधियों के लिए मार्क्स को व्यक्तिगत रूप से भारी कुर्बानी देनी पड़ी थी. उन्हें और उनके परिवार को प्राय: हमेशा गरीबी और पुलिस दमन का सामना करना पड़ा था. उन्हें कई बार देश निकाला का सामना करना पड़ा (दो बार फ्रान्स से और एक बार बेल्जियम से) और आखिरकार राज्यहीन व्यक्ति के रूप में इंगलैण्ड में रहना पड़ा था, क्योंकि इंगलैण्ड ने उन्हें नागरिकता प्रदान करने से इन्कार कर दिया था, जबकि प्रशिया ने उनकी नागरिकता को बहाल करने से मना कर दिया था.

इस प्रकार, उन्हें अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में अपना काम जारी रखना पड़ा था. ऐसे कठोर जीवन के कारण उनकी पत्नी और परिवार को भारी कष्ट उठाना पड़ा था. इसकी वजह से उनके सात में से चार बच्चे बहुत कम उम्र में ही मर गये थे.

कार्ल मार्क्स ने अर्थशास्त्र, इतिहास, समाजशास्त्र जैसे विभिन्न क्षेत्रों में जिन विचारों का प्रतिपादन किया, कई लोग उसकी सच्चाई को स्वीकार करते हैं, फिर भी वे कहते हैं कि क्रांति के उनके विचार सही नहीं हैं और यह उनके अन्य विचारों में समाहित नहीं है, साफ तौर पर यह कहना गलत है. कार्ल मार्क्स के विचारों का सारतत्व क्रांति के बारे में उनकी अवधारणा है. यह उनके कामों की जीवनरेखा है (क्रांति के विचार के बिना मार्क्स के विचार कुछ भी नहीं हैं).

आइए, हम सब मिलकर कार्ल मार्क्स को सही अर्थों में याद करने का प्रयत्न करें. आइए, हम सर्वहारा अन्तर्राष्ट्रवाद की भावना को बुलन्द रखने, जनवाद और आजादी के लिए, समाजवाद और साम्यवाद के लिए लड़ने तथा कार्ल मार्क्स ने जैसी दुनिया की दृष्टि प्रदान की है, वैसी दुनिया के लिए संघर्ष करने के अपने प्रण और उत्साह नये सिरे से दुहरायें. ‘र्क्रांतिकारी पार्टियों व संगठनों के अंतरराष्ट्रीय समन्वय (आईकोर)’ ने सभी कम्यूनिस्ट क्रांतिकारियों से अपील की है कि कार्ल मार्क्स के 200वें जन्म दिवस पर ”मार्क्स द्वारा दिखाये गये क्रांतिकारी रास्ते पर चलने के लिए, नौजवानों को प्रेरित करने के लिए’ तथा ‘दुनिया को समाजवाद और साम्यवाद की दिशा में बदलने’ के नारे की रूह को बुलन्द करने के लिए मार्क्स के विचारों को प्रचारित करें.

आज नव-उदारवाद के तहत, पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था अपने लम्बे इतिहास में सबसे बदतर और दीर्घकालिक संकट से गुजर रही है. सामाजिक जीवन के सभी परिक्षेत्र, जिसमें विज्ञान और तकनीकी की ताजा उन्नत्ति भी शामिल है, मुट्ठीभर कॉरपोरेट अबरपतियों के कब्जे में है. गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, विस्थापन, सम्पत्तिहरण, गैर-बराबरी, असुरक्षा, युद्ध का खतरा, पर्यावरण का विनाश, सांस्कृतिक अध:पतन इत्यादि अत्यन्त बुरी स्थिति में पहुंच गये हैं .

एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में पूंजीवाद-साम्राज्यवाद आज काल-दोष का शिकार है. इस अनुकूल वस्तुनिष्ठ परिस्थिति के बावजूद, वामपंथी और कम्युनिस्ट आन्दोलन कमजोर है और इस स्थिति में नहीं है कि वह मजदूरों और उत्पीड़ित जन समुदायों के खदबदाते असंतोष को क्रांति के रास्ते में नेतृत्व प्रदान कर सके.

वामपंथी और प्रगतिशील नेतृत्व की एक मुख्य कमजोरी यह है कि वह पूर्ववर्ती समाजवादी प्रयोगों से उचित सबक लेने में तथा इसके अनुरूप राजनीति का विकास करने में अक्षम है. अन्य चीजों के अलावा, मुख्यत: भूतपूर्व समाजवादी देशों के नौकरशाही और केन्द्रीकृत राज्य तंत्र के नाम पर (जिसका नवीनतम प्रतीक चीन का नौकरशाही राजकीय इजारेदार पूंजीवाद है), मुक्त बाजार के प्रवक्ता और नव-उदारवाद के वैचारिक पैरोकार उत्तर-आधुनिकतावादी मार्क्सवाद पर जोरदार हमला कर रहे हैं.

मार्क्सवादी पाठों से यांत्रिक और कठमुल्लावादी ढंग से चिपके रहने के साथ-साथ, ऐतिहासिक और सामाजिक विशेषताओं और परिस्थितियों के अनुरूप मार्क्सवाद का विकास करने में अक्षम रहने से भी दुश्मन खेमे को ‘मार्क्सवाद की मौत’ का ऐलान करने का बल मिला है. इसके साथ ही, ‘विचारधारा का अन्त’, ‘इतिहास का अन्त’, ‘उत्तर-वैचारिक राजनीति’, जैसी चरम-दक्षिणपंथी भविष्यवाणी करने के लिए अनुकूल माहौल बना है.

वहीं यह ऐसा समय भी है जब सभी जगहों पर मजदूर और उत्पीड़ित जनता संघर्षरत हैं. आज दुनिया में अनौपचारिक और असंगठित तबकों की बड़े पैमाने पर गोलबन्दी भी देखी जा रही है. किसान, महिलाएं, प्रवासी, शरणार्थी और उत्पीड़ित जातियां, वर्ग व तबके अपनी दावेदारी कर रहे हैं, जैसा कि भारत में देखा जा रहा है. यह दिनों दिन साफ होता जा रहा है कि मौजूदा नव-उदारवादी व्यवस्था के अन्तर्गत चौतरफा संकट का समाधान नहीं किया जा सकता है। इस नाजुक मोड़ पर मार्क्स के महान योगदान को पढ़ना और भी महत्वपूर्ण हो गया है.

जैसा कि बहुत से लोग गलत समझते हैं, मार्क्सवाद विचार का कोई अमूर्त संकलन नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक और व्यवहारिक दोनों है. यह कोई चीज थोपता नहीं है, बल्कि वस्तुनिष्ठ रूप से मौजूद सामाजिक संबंधों से शुरुआत करता है. इससे पार पाने की प्रक्रिया में मार्क्सवाद का आगे विकास होता है.

कोई मसीहा नहीं होता है; जनता को स्वयं राजनैतिक चेतना से लैस होकर अपने अस्तित्व को बदलना है. आज जब हम मार्क्स के जन्मदिवस पर उन्हें पुन: याद कर रहे हैं तो यह उनके लेखों के अमूर्त पाठ के बजाय चेतना को बढ़ाने का प्रयास होना चाहिए. ‘दुनिया के मजदूरों व उत्पीड़ितों एक हों.’

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