'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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मोदी-शाह के लिए दिल्ली दंगा क्यों जरूरी था ?

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मोदी-शाह के लिए दिल्ली दंगा क्यों जरूरी था ?

लोकसभा में दिल्ली हिंसा पर बहस हो रही है. गृह मंत्री अमित शाह विपक्ष के द्वारा उठाए गए मुद्दों पर जवाब दे रहे हैं. गृह मंत्री ने कहा कि दिल्ली दंगा को राजनीतिक दंग देने का प्रयास हुआ है. दिल्ली दंगा का सबसे बड़ा कर्णधार अमित शाह अपनी पीठ थपथपाते हुए कहते हैं, ‘हमने 36 घंटे में दंगे रोक दिये.’ 50 से ज्यादा लोगों की हत्या और 500 से ज्यादा लोगों को घायल करने, करोड़ों की सम्पत्ति जला डालने वाले अमित शाह के लिए 36 घंटे महज एक संख्या है. परन्तु जिन्होंने अपनों को खोया, उनके लिए यह 36 घंटे किसी महाविनाश से कम नहीं है.

पर ये दंगे 36 घंटे तक क्यों चले ? आखिर यह दंगा होने ही क्यों दिया गया ? आखिर एक अन्तर्राष्ट्रीय अतिथि ट्रंप की मौजूदगी में ही यह दंगा क्यों हुआ ? सवाल कई सारे हैं पर जवाब सीधा-सा है. दंगा के लिए जरुरी योजना में उलट फेर होना.

मालूम हो कि देश में जब भी कहीं चुनाव होने वाला होता है, सीमा पर सैनिक मरने लगते हैं. देश में देशभक्ति उबाल मारने लगता है. हम पहले भी साफ कर चुके थे कि केन्द्र की मोदी सरकार को दिल्ली चुनाव जीतना उसके लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया था. महाराष्ट्र से हारते हुए झारखंड का भी हारना उसके लिए चिंता का सबब नहीं था क्योंकि वह इन राज्यों की जनता व उसके संसाधनों को बुरी तरह निचोड़ चुका था. जिस कारण वह उन राज्यों में जीत कर भी ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर सकता था. परन्तु दिल्ली में साधन व संसाधनों का भंडार पड़ा था.

अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने केन्द्र की मोदी सरकार और उसका कुत्ता एलजी के तमाम कुचक्रों के बाद भी दिल्ली में अप्रत्याशित तौर पर खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अप्रतिम मापदंड कायम किया. हजारों स्कूलों का निर्माण किया और दिल्ली सरकार के बजट को दोगुना कर 62 हजार करोड़ रुपया कर दिया. नोटबंदी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था लगातार ढहती जा रही है, इससे बचने का एकमात्र रास्ता दिल्ली की सरकार को बनाना और 5 साल में अरविन्द केजरीवाल सरकार के अथक प्रयास से अर्जित इन तमाम संसाधनों को औने पौने बेचकर धन अर्जित करना. दिल्ली की सत्ता हथियाते ही दिल्ली सरकार के 62 हजार करोड़ के बजट को भी हथियाकर अपने आर्थिक संकट से निजात पाने की योजना थी.

इस कारण केन्द्र की मोदी सरकार ने दिल्ली चुनाव के पहले दिल्ली में 500 आतंकवादियों (क्या सटीक आंकड़ा देता है यह मोदी-शाह की सरकार) के दिल्ली में घुसे होने का अफवाह फैलाया था. दलाल मीडिया दिन-रात इसी का गीत गाये जा रहा था. चुनाव खत्म होते ही ये तमाम आतंकवादी वगैर कोई वारदात किये वापस लौट गये.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के ठीक पहले यह दलाल मीडिया आतंकवादियों के दिल्ली में आने का अफवाह तेज कर दिया. हिन्दू-मुस्लिम पसंदीदा मुद्दा बन गया. ऐन मौके पर आतंकवादियों को दिल्ली पहुंचाने वाले डीएसपी दविन्द्र सिंह को आतंकवादियों के साथ जम्मू कश्मीर में पकड़ लिया गया. गिरफ्तारी के वक्त दविंदर सिंह ने कहा था बहुत बड़ा गेम है. इसे खराब मत करो.

थोड़ा सा दिमाग पर जोड़ लगाये तो यह गेम प्लान था दिल्ली चुनाव जीतने के लिए दिल्ली में दंगा फैलाना, ताकि वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो सके. परन्तु दविन्द्र सिंह और उसके साथ के हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों की गिरफ्तारी ने मोदी-शाह के इस योजना पर पानी फिर गया. इसमें सबसे हैरतअंगेज तो दलाल मीडिया की चुप्पी थी. आतंकवादी हमले की आशंका से दिल्ली वालों को चीख चीखकर दहलाती दलाल मीडिया दविन्दर और दिल्ली आने वाले आतंकवादियों की गिरफ्तारी से सन्नाटे में आ गया.

तब दिल्ली विधानसभा चुनाव में मोर्चा संभाला असली आतंकवादियों ने यानी मोदी-शाह और उसके गुण्डा गिरोह ने. खुलेआम दिल्ली पुलिस के सहयोग से इन नेताओं ने साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाना शुरू किया. जहरीले बोल बोले जाने लगे. खुद गुंडा और हत्यारा अमित शाह करंट लगाने और गोली मारने जैसे आपराधिक बोल बोलने लगा. इससे दिल्ली चुनाव बेहद ही तनावपूर्ण हो गया.

इस सबसे भी भाजपा दिल्ली की जनता के विवेक पर आश्वस्त नहीं हो पा रहा था. तब उसकी अगली योजना ईवीएम था. ईवीएम के साथ छेड़छाड़ पर भाजपा इतना आश्वस्त था कि उसने 48 सीटों के साथ सरकार बनाने की दावेदारी करने लगा. पर इसे मोदी-शाह का दुर्भाग्य ही कहा जाये कि आम आदमी पार्टी को पड़े वोटों के आंकड़ों का सही से अंदाजा नहीं लगा सका और आम आदमी पार्टी 62 सीटों के साथ चुनाव जीत गई. अगर मोदी-शाह आम आदमी पार्टी के पक्ष में पड़े वोटों का ठीक-ठीक आंकड़ा निकाल पाती तो निश्चित तौर पर भाजपा दिल्ली की सरकार में होती.

मेरा यह स्पष्ट मानना है कि अगर भाजपा दिल्ली में सरकार बना पाती तो वह दिल्ली सरकार के खजाने को लूटकर यस बैंक को इतनी जल्दी डूबने नहीं देती. उसका इस्तेमाल लोगों को लुटने के लिए कुछ दिन और करती. बकौल संजय सिंह ‘अगर आपके पास पिस्टल है तो आप बैंक लूट सकते हो और अगर आपके पास बैंक है तो आप सबको लूट सकते हो.’ भाजपा-संघ की यही नीति है.

साम्प्रदायिक दंगे और भाजपा

भाजपा-संघ के अस्तित्व का आधार नफरत और हिंसा है. झूठ बोलखर मुकर जाना, बेईमानी करना और फिर खुद को ईमानदार बताना, देशद्रोही गतिविधियों में संलग्न होना फिर देशभक्त होने का ढोंग करना इसकी पुरानी नीति है.

समाचार चैनल आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने 2018 में सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया कि, ‘2017 के आंकड़ों के अनुसार देशभर में 822 दंगे हुए. इनमें सबसे ज्यादा 195 दंगे उत्तर प्रदेश में हुए. दंगों के भड़कने की पीछे वजह धार्मिक, जमीन-जायदाद और सोशल मीडिया को बताया गया है. उन्होंने आगे बताया, ‘दंगों का आंकड़ा पिछले दो साल में बढ़ा है. 2016 में देशभर में कुल 703 दंगे हुए थे. जबकि 2015 में 751 दंगे हुए.’

आंकड़े की बात करें तो वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश मेें 195 दंगा, कर्नाटक मेें 100 दंंगे, राजस्थान में 91 दंगे, बिहार में 85 दंंगे, मध्य प्रदेश में 60 दंगेे भाजपा-संघ ने भड़काये थे. बता दें इसमें एक कर्नाटक को छोड़कर शेष सभी जगह भाजपा का शासन था.

ऐसा नहीं है कि केवल 2017 में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा दंगे भड़के हों. यह राज्य 2016 में भी दंगों के मामले में सबसे ऊपर था. 2016 के आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक में 101, महाराष्ट्र में 68, बिहार में 65, राजस्थान में 63 दंगे हुए थे.

2017 में देश में कुल 822 साम्प्रदायिक घटनाएं हुईं जिनमें 111 लोग मारे गए और 2384 लोग घायल हुए. इनमें 2017 में यूपी में 195 दंगों की घटनाओं को रिपोर्ट किया गया जिनमें 44 लोगों की हत्या हुई और 542 घायल हुए. तथ्य बतलाते हैं भाजपा का दंगे से साथ चोलीदामन का संबंध है.

दिल्ली में भाजपा का दंगा अभियान

समाचार पत्र द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में हिंसा काफी हद तक उन क्षेत्रों में केंद्रित रही है, जहां भाजपा हाल के विधानसभा चुनावों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में एक शातिर और ध्रुवीकरण अभियान के तहत जीतने में कामयाब रही. पूर्वोत्तर दिल्ली में 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने आठ सीटों में से पांच सीटें जीतीं, जहां दंगे हुए. दिल्ली पूर्वोत्तर सीट का प्रतिनिधित्व लोकसभा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी द्वारा किया जाता है.

दिल्ली के एक पुलिस आयुक्त ने कहा, ‘इन इलाकों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण चुनाव में बिगड़ गया था क्योंकि भाजपा के कई नेताओं ने नफरत फैलाने वाले भाषण दिए थे. नफरत का बीज तब बोया गया था और वह फूटने का इंतजार कर रहा था. भाजपा नेता कपिल मिश्रा के भड़काऊ बयानों ने रविवार से पहले से ही सांप्रदायिक प्लॉट को तैयार कर दिया.’

सेवानिवृत्त आयुक्त ने कहा कि पिछले दो दिनों में, हथियारबंद भीड़ ने जाफराबाद, मौजपुर, घोंडा, चांदबाग, बाबरपुर, गोकुलपुरी, यमुना विहार और भजनपुरा में मुस्लिम इलाकों को निशाना बनाया. ये सभी क्षेत्र पूर्वोत्तर दिल्ली के विधानसभा क्षेत्रों में आते हैं, जो भाजपा ने जीते थे.

पूर्वोत्तर में घोन्डा, करावल नगर, गांधी नगर, रोहतास और विश्वास नगर की विधानसभा सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी. दक्षिण पूर्व में बदरपुर, उत्तर पश्चिम में रोहिणी और पूर्व में पूर्वोत्तर दिल्ली में लक्ष्मी नगर में भाजपा की शेष तीन सीटों के लिए खाता है.

‘सांप्रदायिक हिंसा एक स्पष्ट पैटर्न दिखाती है. सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र सभी करावल नगर, घोंडा, रोहतास और गांधी नगर विधानसभा क्षेत्रों में स्थित हैं.’ उक्त सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा.

27 जनवरी को, यह बाबरपुर से शाह ने मतदाताओं से ऐसे ‘क्रोध’ के साथ ईवीएम बटन दबाने का आग्रह किया था कि शाहीन बाग में ‘करेंट’ लगे, जो नई नागरिकता के खिलाफ सबसे लंबे समय तक महिलाओं की अगुवाई वाली जगह थी. बाबरपुर अब पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है.

गृह मंत्रालय की सीट नॉर्थ ब्लॉक में तैनात एक आईपीएस अधिकारी ने कहा कि पूरे प्रकरण में दिल्ली पुलिस की भूमिका संदिग्ध और पक्षपातपूर्ण रही है. कई परेशान करने वाले वीडियो पुलिसकर्मियों को कथित तौर पर हिंसा करने और उसे बढ़ावा देते दिखाए गए हैं. कई मामलों में उन्हें जानलेवा मॉब करते हुए देखा जाता है, जबकि कुछ मामलों में वे हिंसा में भाग भी लेते हैं. आम आदमी ने  पुुलिस बल पर पूरी तरह से विश्वास खो दिया है.

नागरिक अधिकार कार्यकर्ता राकेश शर्मा ने कहा कि दंगा एक सुनियोजित कृत्य था क्योंकि भाजपा की योजनाओं में पूर्वोत्तर दिल्ली का महत्वपूर्ण स्थान था. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में पूर्वांचली मतदाता थे, जिनमें ज्यादातर बिहार से आए प्रवासी मजदूर थे. उन्होंने कहा, ‘अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ लक्षित हिंसा का मकसद इस साल के अंत में बिहार चुनाव से पहले ब्राउनी पॉइंट हासिल करना था. कोर बीजेपी मतदाता विरोधी सीएए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कुछ कार्रवाई चाहते थे.

एक समूह ने मीनार पर चढ़कर मंगलवार दोपहर एक भगवा ध्वज और तिरंगा लगाया था. बाद में, अशोक नगर में मस्जिद के कुछ हिस्सों को आग लगा दी गई, जो सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक था. जाफराबाद के निवासियों ने कहा कि ‘हिंदू पड़ोसियों ने मुसलमानों की रक्षा की थी. यह बहुत आश्वस्त करने वाला है कि हिंदू मुसलमानों को शरण दे रहे हैं और हमारे साथ कुछ और भी लोग गश्त कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दंगाई बाहर से प्रवेश न करें और हमारे घरों पर हमला न करें. इन विभाजनकारी समयों में दिल और मानवता दिखाने के लिए हम उनके बहुत आभारी हैं.’ जाफराबाद के निवासी फैजल खान ने कहा.

मुस्तफाबाद में हिंदू परिवारों में छिपे चार मुस्लिम परिवारों को बहुसंख्यक समुदाय द्वारा सतर्क किए जाने के बाद पुलिस ने बचा लिया. दिल्ली पुलिस के सूत्रों और चश्मदीदों के मुताबिक, दंगाइयों मेंं स्थानीय लोग नहीं दिख रहे थे और उन्हें बाहर से लाया गया होगा.

भाजपा को दिल्ली में दंगे की जरूरत क्यों पड़ी ?

ऊपर बता चुका हूं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार उसके लिए घातक साबित हुआ था. दिल्ली को लूटकर अपनी ढहती अर्थव्यवस्था को संभालने की उसकी योजना फेल हो गई. इसका गुस्सा उसने दिल्ली की जनता पर निकाला और दंगा भड़काया. 50 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया. 500 से अधिक घायल हो गये, हजारों करोड़ की सम्पत्ति जल कर राख हो गई. इसमें सबसे मजेदार तथ्य यह है कि यह दंगा उसी क्षेत्र में भड़का या भड़काया गया जहां से भाजपा ने चुनाव जीता, इसके वाबजूद दिल्ली में भाजपा को दंगाई नहीं मिल सके और उसने इसके लिए दंगाईयों को बकायदा पैसा देकर उत्तर प्रदेश से आयात किया. इस दंगा का वक्त भी ऐसा ही चुना जब अन्तराष्ट्रीय अतिथि ट्रंप भारत में मौजूद थे. वजह थी इस दंगा को काफी हद तक मीडिया में आने से रोकना क्योंकि मीडिया के लिए ट्रंप के आबोभगत में जुटना थ, परन्तु दंगा इस कदर भड़क उठा कि दलाल मीडिया के लिए भी इस खबर को दबाना मुश्किल हो गया, परन्तु इससे भाजपा का मकसद पूरा हो गया.

दंगों के इन 36 घंटों में लगा ही नहीं कि मोदी-शाह कहीं भी जिन्दा है. कई बार तो संदेह होने लगा कि कहीं मोदी-शाह को भी तो दंगाईयों ने मार तो नहीं दिया. पअसल में दिल्ली का दंगा आगामी बिहार और पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर मोदी-शाह के इशारे पर आयोजित किया गया था. पर देश का यह दुर्भाग्य है कि मोदी-शाह जिन्दा बच गया और रोता नजर आया. कपिल मिश्रा को ‘वाई’ श्रेणी सुरक्षा दिया गया, और देश की जनता को बकायदा धमकी भी दी गई कि अगर आगामी बिहार और पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट नहीं दिया गया तो वहां भी इसी तरह दंगा भड़काया जायेगा. गेंद अब देश के आम आदमी के पाले में है कि वह भाजपा जैसे दंगाईयों से किस तरह निपटती है.

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