गिरीश मालवीय, पत्रकार
आखिर यस बैंक इस बुरी स्थिति में कैसे पहुंच गया कि खाताधारकों के पैसे निकालने पर रोक लगा दी गयी ? इस स्थिति का आखिर जिम्मेदार कौन है ? सीधी और साफ बात है कि यस बैंक की इस स्थिति का जिम्मेदार रिजर्व बैंक है, जिसने बतौर नियामक अपनी ड्यूटी ठीक से नहींं निभाई.
आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि यही रिजर्व बैंक जो आज खाताधारकों पर प्रतिबंध लगा रहा है, ठीक एक साल पहले यस बैंक के प्रबंधन को क्लीन चिट बांंट रहा था. फरवरी, 2019 में यस बैंक ने स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया कि ‘उसे आरबीआई की तरफ से 2017-18 की रिस्क असेसमेंट रिपोर्ट मिल गई है. उसे बैंक द्वारा घोषित एनपीए के आंंकलन में कोई अंतर नहीं मिला और न उसमें किसी तरह की गड़बड़ी का जिक्र है.’ रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रॉविजनिंग के दौरान किसी तरह की गड़बड़ी नहीं पाई गई है.
फरवरी, 2019 में आरबीआई की तरफ से फंड डायवर्जन और प्रॉविजनिंग के मामले में क्लीन चिट मिलने के बाद यस बैंक के शेयरों में जबरदस्त उछाल देखा गया था. मजेदार बात यह भी है कि जब स्टॉक एक्सचेंज को यह जानकारी दे दी गई तो रिजर्व बैंक को होश आया. उसने कहा कि यह रिपोर्ट सार्वजनिक करना नियमों का उल्लंघन है.
एक बात और. कल देश का मीडिया चिल्ला-चिल्ला कर यह बता रहा था कि यस बैंक अनिल अम्बानी की कम्पनियों, कैफे कॉफ़ी डे, जेट एयरवेज, कॉक्स एंड किंग्स, सीजी पावर आदि को लोन दे चुका था इसलिए डूब गया लेकिन यस बैंक के सबसे बड़े कर्जदार का किसी ने नाम तक लेना उचित नहीं समझा और वो है इंडिया बुल्स.
यस बैंक की इस हालत का बड़ा जिम्मेदार इंडिया बुल्स भी है. यस बैंक के साथ इंडिया बुल्स के रिश्ते कुछ ज्यादा ही प्रगाढ़ है. आज तक ने कुछ दिनों पहले ही खुलासा किया था कि यस बैंक के कुल नेटवर्थ का एक चौथाई इंडियाबुल्स समूह में फंसा हुआ है. यस बैंक का कुल नेटवर्थ करीब 27,000 करोड़ रुपये है, यस बैंक के इसमें 6,040 करोड़ रुपये दांव पर लगे हैं.
2009 से 2019 तक यस बैंक ने इंडियाबुल्स को लोन दिया. इसके अलावा 14 कंपनियों को 5,698 करोड़ का लोन दिया गया. इनमें से कई कंपनियों की नेटवर्थ निगेटिव थी. कई कंपनियों का कोई कारोबार ही नहीं था. इसके साथ ही इंडियाबुल्स ने यस बैंक के पूर्व प्रवर्तक राणा कपूर और राणा कपूर के परिवार से जुड़ी 7 कंपनियों को 2,034 करोड़ का लोन दिया. इन 7 कंपनियों ने रिटर्न फाइल नहीं की. आज शायद इसी सिलसिले में कल देर रात राणा कपूर के ठिकानों पर छापेमारी भी की गयी है.
साफ है कि जब ये सारे घपले घोटाले चल रहे थे तो रिजर्व बैंक और मोदी सरकार आंंख मीच कर बैठी हुई थी. और अब जब पानी सर से ऊपर गुजर रहा है तो अब उसे होश आ रहा है.
यस बैंक का बचना मुश्किल लग रहा है. सरकार द्वारा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के माथे पर बंदूक रखकर उससे 49 फीसदी शेयर खरीदने को बोला जा रहा है. अभी तक जो योजना सामने आई है उसके तहत बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का एक कंसोर्टियम एसबीआई के नेतृत्व में यस बैंक में निवेश कर सकता है. इसमें भी एसबीआई यस बैंक में सिर्फ 2450 करोड़ रुपये निवेश की हामी भर रहा है, जबकि जरूरत बहुत ज्यादा की है.
आपको यह बात अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए आज से पहले जितने भी बैंकों को बचाया गया है, उन्हें किसी न किसी बड़े बैंक में मर्जर कर के बचाया गया है. लेकिन यस बैंक के स्टेट बैंक में मर्जर की कोई योजना नहीं है. भारतीय स्टेट बैंक ने भी स्पष्ट किया है कि यस बैंक का स्टेट बैंक के साथ विलय नहीं होगा.
एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा, ‘एसबीआई शुरू में 2,450 करोड़ रुपये का निवेश करेगा. बाद में यह निवेश अंतिम मूल्यांकन, निवेशकों की रूचि और पूंजी की जरूरत के आधार पर 10,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है.” यह कब होगा ? कैसे होगा ? यह देखना है.
येस बैंक को संकट से निकालने के लिए तुरन्त 20 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है. आपको मालूम होना चाहिए कि यस बैंक में एसबीआई के निवेश की घोषणा के बाद एसबीआई के शेयर्स में 12 फ़ीसदी की गिरावट आ गई थी. ऐसे में कौन-सा निवेशक इसमे ओर पैसे लगाने को तैयार होगा ?
मार्केट को खबर है कि यस बैंक अब डूबता हुआ जहाज है इसलिए सरकारी बैंक को उसे बचाने को आगे किया जा रहा है. भारत में डूबते बैंक को सिर्फ़ सरकारी कंपनियां ही बचा सकती है. उसके बाद भी यहांं प्राइवेटाईजेशन की महिमा झांझ मंजीरे बजा कर सुनाई जाती है.
अच्छा जरा सोचिए कि अब एसबीआई के अलावा ऐसी कौन सी सरकारी संस्था है जो यस बैंक में निवेश करने को तैयार होगी ? एलआईसी को तो खुद सरकार बेचने की घोषणा कर चुकी है. अपुष्ट सूत्रों के द्वारा बताया जा रहा है कि यस बैंक की कुछ प्रतिशत हिस्सेदारी एलआईसी के पास पहले से है, तो फिर कैसे एलआईसी से इस डूबते जहाज यस बैंक में निवेश करने को कहा जाएगा ?
दरअसल सच तो यह है जिस प्रकार अमेरिका में 2008 में लेहमैन संकट आया था, भारत का मौजूदा संकट भी कुछ वही रूप अख्तियार कर चुका है. यहांं भी अमेरिका की तरह सबसे पहले NBFC के डूबने से शुरुआत हुई है. सबसे पहले IL&FS डूबा है फिर DHFL, फिर इंडिया बुल्स, लगभग ढाई लाख करोड़ की रकम इन कंपनियों में फंसी हुई है. मार्च क्लोजिंग के चक्कर में सभी वित्तीय संस्थाओं को जिसमे बैंक भी शामिल है, अपनी एन्युअल रिपोर्ट जारी करनी है. इसी कारण यस बैंक भी निपट गया है और दूसरे प्राइवेट बैंक भी कतार में है.
नोटबन्दी और GST के बाद अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगातार धीमी हो रही है. सुस्त होती अर्थव्यवस्था और डूबते वित्तीय संस्थान – बैंक ऐसा कॉकटेल बना रहे हैं जो बेहद खतरनाक है. और इस संकट से निपटने में मोदी सरकार अक्षम साबित होने जा रही हैं.
यस बैंक का संकट जितना ऊपर से नजर आ रहा है दरअसल उससे कहीं ज्यादा बड़ा है, अभी तो शुरुआत हुई हैं.
सोशल मीडिया पर पत्रकार कृष्ण अय्यर लिखते हैं – यस बैंक के मामले में क्यों नहीं मोदी और निर्मलाजी को गिरफ्तार किया जाए ? गिरफ्तारी तो बनती है.
● बैंक के कर्जदारों की लिस्ट में मोदी के दोस्त अनिल अम्बानी, एस्सेल ग्रुप, DHFL जैसे लोग हैं.
● अनिल अम्बानी मोदी का खास है, जिसने सबसे पहले मोदी को PM बनाने कि बात की थी और राफेल का किस्सा तो जगजाहिर है. गिरफ्तार करो.
● एस्सेल ग्रुप जी ग्रुप का है. सुभाष चन्द्रा राज्यसभा के सदस्य हैंं. एस्सेल ग्रुप मालिक को गिरफ्तार करो.
● DHFL का मालिक वाधवान का खुद का 1 लाख करोड़ का घोटाला है. पर वाधवान को बेल मिल चुकी है, गिरफ्तार करो.
● इसके अलावा एक RKW डेवेलपर को 600 करोड़ का लोन है, जो इकबाल मिर्ची से जुड़ा हुआ है. गिरफ्तार करो.
● इन सब लोगों ने बीजेपी को कितना चन्दा दिया, ये मालूम करना बहुत आसान है. अपराधियों से चन्दा लेने के जुर्म में तड़ीपार अमित शाह, तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष भी गिरफ्तार हो.
● निर्मलाजी कहती है 2017 से उन्हें सबकुछ मालूम है तो कुछ किया क्यों नहीं ? क्या कारण था ? जांच के लिए निर्मलाजी को भी गिरफ्तार किया जाए.
इस पूरे घोटाले के तार बीजेपी के टॉप लीडरशिप से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है. आज मोदी फिर रोया है TV पर. अपशकुन हो चुका है. कुछ बड़ा होने वाला है.
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