मोदी सरकार की हर एक्टिविटी एक पीआर एक्टिविटी होती है इस बात की पुष्टि एक दक्षिण भारतीय मित्र विकनेश ने की है, जो चेन्नई से है. यह पोस्ट विकनेश ने 24 दिसम्बर, 2018 को सोशल मीडिया पर लिखी थी. उन्होंने इस पोस्ट में अपने कॉलेज की एक इवेंट कथा शेयर की है, जिससे पता चलता है कि किस तरह मोदी सरकार अपना पीआर अजेंडा चलाती है. जरूर पढ़िये. मूल पोस्ट इंग्लिश में थी, जिसको मैं हिंदी में पोस्ट कर रहा हूंं – गिरीश मालवीय
प्रतीकात्मक तस्वीर
हम देखते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री अचानक पूछे जाने वाले प्रश्नों का जवाब देने में असमर्थ हैं. मैं अपना उदाहरण आपके सामने रखता हूंं. हम हैकथॉन के समापन समारोह के लिए अहमदाबाद में थे. लंच के बाद हमें बताया गया कि प्रधानमंत्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से छात्रों को संबोधित करेंगे. मुझे लगा कि वह छात्रों से सीधे सवाल करेंगे लेकिन मैं गलत था.
वास्तविक कार्यक्रम से चार घण्टा पहले कुछ अधिकारी आए और हमारे प्रोग्राम को कुछ समय के लिए रोकने के लिए कहा. उन्होंने हर टीम से टीम में जाना शुरू किया और पूछा कि क्या किसी को प्रधानमंत्री जी से कोई सवाल है ? और चूंकि हम दक्षिण भारत से थे इसलिए उन्होंने विशेष रूप से हमारी टीम को निशाना बनाया और हमसे पूछा कि ‘क्या कोई हिंदी जानता है ?’
हमारी टीम में एकमात्र हिंदी भाषी व्यक्ति ‘अग्रवाल’ था, इस कारण उन्हें निराशा हुई. उन्होंने इस आइडिया को ड्राप कर दिया (शायद कोई दक्षिण भारतीय मिलता और हिंदी में तारीफ करता तो ज्यादा असर पड़ता).
प्रोग्राम शुरू होने से 3 घंटे पहले कुर्सियों और स्टूडेंट्स के बैठने के क्रम को उन अधिकारियों ने बदल दिया और हमें ‘रिहर्सल’ के लिए बैठने के लिए कहा गया ( इस बात की रिहर्सल कि प्रधानमंत्री से कैसे सवाल पूछे जाएंं ? )
उसके बाद सभी टीमों में से 3 लड़कियों ओर 2 लड़कों का चयन किया गया और उन्हें आगे की पंक्ति में लाया गया. फिर हर स्टूडेंट को पूछने के लिए एक स्क्रिप्टेड प्रश्न दिया गया और यह भी बताया गया था कि प्रधानमंत्री जी के जवाब देने के बाद आपको कैसी प्रतिक्रया देनी हैं.
यहां तक कि उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ फॉलो अप वाले सवाल-जवाब भी सेट किए और ये भी बताया कि प्रसारण के दौरान कब और कैसा हंसी मजाक करना है.
कमाल यह था कि प्रधानमंत्री के आने से 1 घंटा पहले ही वीडियो कॉन्फ्रेंस शुरू कर दी गयी. हमें बतख की तरह बैठे हुए तीन घण्टे से अधिक वक्त हो गया था लेकिन भाड़े से लाए कुछ लोग ‘मोदी मोदी मोदी’ के नारे लगा रहे थे. हम निराश हो चले थे.
तभी अचानक एक चालीस साल के अंकल मंच पर प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि आप मुझे प्रधानमंत्री मान कर अपना आखिरी रिहर्सल कर सकतें हैं.
इसके बाद हमें अपने मोबाइल फोन स्विच ऑफ करने को कहा गया. मैंने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दृश्यों को देखा. इन चालीस साल के अंकिल ने प्रधानमंत्री की पूरी तरह से मिमिक्री करना शुरू कर दी. उन्होंने पहले से तैयार सवाल पर सटीक स्क्रिप्ट पढ़ते हुए जवाब दिये. यह वही सवाल जवाब थे जिसे प्रधानमंत्री पढ़ने जा रहे थे.
पूरी प्लानिंग इतनी डिटेल में थी कि उन्होंने कोयम्बटूर से एक स्टूडेंट जिसका नाम विकास था, उसे सबसे आगे की लाइन में खींच लिया ताकि प्रधानमंत्री जी मजाक-मजाक में बोल सके कि ‘विकास’ दक्षिण तक पहुंच गया.
अब प्रोग्राम अपने टॉप पर था. प्रधानमंत्री पधार चुके थे. मोदींज्म का जादू सर चढ़ कर बोल रहा था. उन्होंने उन चुटकुलों और सवालों को हटा दिया, जो काम के नहीं मालूम हो रहे थे.
खेल शुरू था. हमने कैमरे बाहर निकलते देखे. अब हम उनके दोनों तरफ दो टेलीप्रॉम्प्टर देख सकते थे. हमारे हॉल में उपस्थित भक्त श्रोताओं को पहले से ही पता था कि प्रधानसेवक क्या बताने जा रहे हैं इसलिए उनका उत्साह चरम पर था.
इस पूरी पीआर की नौटंकी को बहुत सावधानी से तैयार किया गया था और अगले दिन के लिए सुर्खियां तैयार थी कि ‘हमारे प्रधानमंत्री ने छात्रों को एंटरप्रेन्योरशिप के लिए प्रेरित किया.’
दरअसल सच तो यह है कि हमारे प्रधानसेवक के मुंह से निकलने वाली हर चीज स्क्रिप्टेड होती है. असलियत में वह बिना लिखी हुई स्क्रिप्ट के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे सकते और शायद इसलिए अनस्क्रिप्टेड इंटरव्यू का सामना करने या प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की हिम्मत नहीं है.
(इस बात की पुष्टि के लिए आप चाहे तो यु ट्यूब पर करण थापर के साथ किए गए मोदी के इंटरव्यू को देख सकते हैं)
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