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बिगड़ते आर्थिक हालात, FRDI बिल की धमक और खतरे में जमाकर्ताओं की जमा पूंजी

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बिगड़ते आर्थिक हालात, FRDI बिल की धमक और खतरे में जमाकर्ताओं की जमा पूंजी

गिरीश मालवीय, पत्रकार

कल आर्थिक जगत से दो खबरें आईं है जो भारत के बिगड़ते आर्थिक हालात की सही तस्वीर बयान करती है. और यह भी बताती हैं कि FRDI बिल भी बहुत जल्द लाया जाएगा.

परसों आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास ने सरकारी क्षेत्र के बैंक प्रमुखों की एक बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने सबसे पूछा कि आप इतने कम कर्ज़ क्यों बांंट रहे हो ? कर्ज़ वितरण की रफ्तार इतनी धीमी क्यों हो गयी है ?

आरबीआई गवर्नर ठीक कह रहे हैं. आरबीआई ने पिछले शुक्रवार को जनवरी, 2020 के कर्ज वितरण के आंकड़ें जारी किए थे. उस महीने कर्ज वितरण में मात्र 8.5 फीसद की वृद्धि हुई थी, जबकि जनवरी, 2019 में यह वृद्धि 13.5 फीसद की थी.

बैंकों के प्रमुखों ने आरबीआई गवर्नर से कहा कि वे कर्ज देने को तैयार हैं लेकिन बाजार में कर्ज लेने वालों ही कम हो गए हैं. बाजार में मांग नहीं है और उद्योग जगत को ऐसा लग रहा है कि अभी मांग बढ़ने वाली नहीं है. ऐसे में उद्योग जगत नया कर्ज लेने के लिए आगे नहीं आ रहा है. सबसे खराब हालत सर्विस सेक्टर की है, जिसमें कर्ज लेने की रफ्तार बहुत तेजी से घट रही है. एक बैंक प्रमुख ने बैठक में साफ तौर पर कहा कि कर्ज वितरण की रफ्तार आने वाले दिनों में और कम हो सकती है.

एक बात हम सभी जानते हैं कि बैंक जमाकर्ताओं की जमा रकम पर उन्हें कम ब्याज देते हैं और उनकी जमा रकम से लोन लेने वालों को अधिक ब्याज पर पैसा देते हैं. इसी डिफरेंस के पैसे पर बैंक अपना खर्च चलाते हैं. अगर लोन लेना ही कम हो गया है तो स्थिति बहुत बुरी है.

दूसरी खबर ओर भी भयानक है. इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने एक रिपोर्ट जारी की है. उसमें कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में जारी सुस्ती ( मंदी ) के कारण अगले तीन वर्षों में 10.52 लाख करोड़ रुपये का कॉरपोरेट कर्ज एनपीए हो सकता है. यह राशि कुल कॉरपोरेट कर्ज की करीब 16 फीसदी है.

रेटिंग एजेंसी ने जोखिमों का आंंकलन करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों का विश्लेषण किया. इसके बाद निष्कर्ष निकाला कि रियल एस्टेट, ऊर्जा, ऑटो और सहायक क्षेत्र, दूरसंचार व इन्फ्रास्ट्रक्चर सहित 11 क्षेत्रों पर ऋण डिफॉल्ट का सबसे ज्यादा जोखिम है.

एजेंसी ने इस विश्लेषण के लिए 500 बड़े कर्ज वाली कंपनियों की संपत्ति गुणवत्ता और उनकी उत्पादकता व गैर-उत्पादक संपत्तियों का गहन अध्ययन किया है. इससे कंपनियों के रीफाइनेंसिंग जोखिमों का भी खुलासा होता है.

भारत का एनपीए रेशियो ‘हाई एनपीए’ वाले देशों में सबसे ज्यादा है. भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर मशहूर वाणिज्यिक एजेंसी मूडीज ने पिछले साल एक बड़ी चेतावनी देते हुए इसे दुनिया की सबसे असुरक्षित व्यवस्थाओं में से एक करार दिया था.

भारत की अर्थव्यवस्था की हालत पहले से ही बहुत खराब है, मोदी सरकार यह बात मानती हैं या नहीं मानती इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. साफ नजर आ रहा है कि कोरोना वायरस के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी छाने वाली है. भारत की जीडीपी ग्रोथ लगातार 7 तिमाहियों से गिरती जा रही है. सुधार के कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं और इस सबका पहला असर भारत की बैंकिंग व्यवस्था पर ही पड़ेगा.

सरकार पहले ही फैसला कर चुकी है कि प्रमुख सरकारी बैंकों को अब बेलआउट पैकेज नहीं दिया जाएगा इसलिए ही एक बार फिर से मोदी सरकार FRDI बिल लाने जा रही है, जिसका सबसे प्रमुख प्रावधान बेल इन है, जिसके अंतर्गत बैंक द्वारा जमाकर्ताओं के पैसे को बांड या शेयर आदि में बदल कर खुद को दिवालिया होने से बचने प्रबंध करना होगा. खतरे की घण्टी की आवाज लगातार तेज होती जा रही हैं.

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