गुरूचरण सिंह
नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते लोगों और कानून के समर्थकों के बीच हुए खूनी संघर्ष में एक सिपाही की खुद पुलिस की गोली से ही मौत, समर्थकों के जलूस के बीचो-बीच चलता ईंट-पत्थर से भरा ट्रक, कपिल मिश्रा का भड़काऊ भाषण और ट्वीट, रागिनी तिवारी की एक समुदाय के खिलाफ गाली-गलौज भरी भाषा वाला वीडियो – ऐसा बहुत कुछ देखने में आया है, जो देश के इतिहास में पहली बार देखने में आया है.
सड़कों पर अक्सर वही लोग उतरते हैं जिन्हें सरकार से कोई शिकायत होती है. जिनकी लिखा-पढ़ी, अनुनय विनय का सरकार पर कोई असर नहीं हुआ होता. हताशा में उनका विरोध मुखरित होता है और एक आंदोलन का रूप ले लेता है. नागरिकता कानून का विरोध भी आज उसी दौर से गुजर रहा है. महिलाओं की अगुआई में शाहीन बाग (और इसी की देखा-देखी देश के कई शहरों-कस्बों में बने शाहीन बागों) में अढ़ाई महीने से धरना-प्रदर्शन करने वाले लोगों के एक हिस्से शाहीन बाग की सड़क का एक हिस्सा खोल दिए जाने से मौजपुरा में अपना नया ठौर तलाश करना पड़ा. शायद ऐसे ही किसी बहाने की तलाश थी कानून समर्थकों को भी. सो वो लोग भी लामबंद हो कर सड़कों पर उतर आए.
लेकिन क्या किसी ने कभी देखा है कि सरकार के समर्थन में भी लोग सड़क पर उतरे हों ? कम से कम मुझे तो याद नहीं आता ऐसा कोई ‘हादसा’ ! समर्थकों को तो खुश होना चाहिए कि सरकार उनका मनचाहा काम कर रही है और लिए गए ऐसे किसी भी निर्णय पर अडिग रहने का जिगरा भी दिखा रही है, फिर उन्हें किसी कार्रवाई के समर्थन में सड़कों पर उतरने की क्या जरूरत है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह गृह युद्ध की पटकथा लिखी जा रही है ! पिछले छ: बरस का अनुभव तो जवाब हां में देने के लिए ही कहता है.
थोड़ी देर पहले ही इनबॉक्स में आज़मगढ़ से अपने एक मित्र देवेंद्र यादव का एक संदेश देखा जिसमें पूजा सिंह के हवाले से उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों में मरने वाले लोगों की संख्या के बारे में गुरू तेग बहादुर अस्पताल की पौने सात बजे सांय तक की ताजा जानकारी दी गई थी. खबरी चैनलों की कहानी और वास्तविकता में इतना अधिक अंतर देख कर सच मानिए स्तब्ध रह गया हूं मैं तो. ‘GTB हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के मुताबिक, अब तक 35 लोगों की मौत हो चुकी है. 9 का पोस्टमार्टम किया जा चुका है. 26 डेड बॉडी Mortuary में है. (Update from GTB Hospital. 25 Feb 2020. 6:45 pm).
लाशों के इसी ढेर पर बने रंगमंच पर हैदराबाद हाऊस में नाटक का एक और दृश्य अभिनीत किया जा रहा था. मोदी जी का अहसान चुकाने आए ट्रंप के साथ एक रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर हुए, दोनों देशों के ‘शक्तिमान’ नेता बगलगीर हुए, चेहरे पर मनोहारी मुस्कान चस्पां की और प्रेस फोटोग्राफरों के सामने बेहतरीन अभिनय कला का प्रदर्शन किया गया !
लेकिन BBC हिंदी के मुताबिक जब एक पत्रकार ने ट्रंप से पूछा, ‘आप यहां हैं और दिल्ली में हिंसक घटनाएं हुईं हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने आपसे सीएए के बारे में क्या कहा है और आप इस धार्मिक हिंसा को लेकर कितने चिंतित हैं ?’ तो उसके जवाब में ट्रंप ने कहा कि ‘उन्होंने मोदी से धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में बातचीत की है.’ मोदी की तारीफ़ करते हुए ट्रंप ने कहा कि मोदी चाहते हैं कि भारत में लोगों को पूरी धार्मिक आज़ादी मिले. यह भी प्रधानमंत्री मोदी धार्मिक आज़ादी के प्रति बहुत ही गंभीर है !
सच कहूं तो मुझे समझ ही नहीं आ रहा कि मैं इस बाबत क्या टिप्पणी करूं. मुझे तो शेक्सपियर की रक्तरंजित त्रासदियों के बीच गंभीर किस्म की कॉमेडी के दृश्य याद आ रहे हैं जो उनके त्रासद प्रभाव को और भी बढ़ा देते हैं. हैदराबाद हाऊस का यह प्रहसन भी मुझे उसी तरह की त्रासद-कॉमेडी लग रहा है, जो हंसाती कम, रुलाती ज्यादा है.
राजनीतिक प्रहसन के इस केक की ‘आइसिंग’ यानि सजावट की छटा देखने को मिली कश्मीर पर मध्यस्थता वाले ट्रंप के चिर परिचित अंदाज में दिए गए बयान में. उन्होंने कहा कि ‘भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर एक बड़ी समस्या है लेकिन भारत और पाकिस्तान इस पर काम करेंगे. अगर मैं कुछ कर सकता हूं तो इसकी मध्यस्थता करना चाहूंगा.’
विलय समझौते के खिलाफ 370 और 35A को हटाने की एकतरफा कार्रवाई करके जम्मू-कश्मीर के दो टुकड़े कर कश्मीर को आंतरिक मामला बताने वाले भक्त लोगों अब ठोको तालियां. बनते रहिए अपने मुंह मियां मिट्ठू लेकिन यह मत कहिए कि पूरी दुनिया और खास कर मोदी जी के परम मित्र ट्रंप भी मानते हैं इसे.
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